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Nandan
काहे हमरे जीवन की बगिया उजारी काहे तुमसे प्रीत लगा लियेन भारी हम तो तुम्हारी आँखन मा दीपक बन चमके काहे हमरा दीपक बुझाए दियेव प्यारी प्रेम की डोर कुछ ऐसी बंधी रहे कि नाचि-नाचि मोर जैसे पंख उतारी अब ना प्रेम जानी और नाए तुमका समय की बिरहा पकड़ लिहिस भारी मिलिबा तुमका अब कउनो जनम मा देखि केरे पल्ला न झारि लियेउ प्यारी...... अवधी भाषा में कुछ कहने की कोशिश
DEV FAIZABADI
कहै सुनै का 'देव' अही। जैसन चुस्का सेव अही। ज्यादा कै ना बात करब, बस एक्कै अध्धा पेव अही । देव फैजाबादी #just for fun, enjoy the life # कहै सुनै का... # अवधी भाषा में # 🤔 ऐसा नहीं रे बाबा..
Sonam Pandey
राम अनुज "रामा"
अवधी भाषा में कुछ लिखने का प्रयास किया है अच्छा लगे तो शेयर करें .. #shayari #hindipoetry #hindishayari #urdushayari #awadhi
i am Voiceofdehati
पिता और पुत्र बैठ के एक साथ रामायण देख रहे थे रामायण में एक दोहे को सुनकर बाप ने बेटे से उस दोहे का अर्थ पूछा बेटा बोला मुझे संस्कृत नहीं आती.. यह सुनकर पिता शांत हो कुछ देर सोचने के बाद बोले ठीक है बेटा टीवी बंद कर दे, मुझे भी संस्कृत नहीं आती.... पिता को यह महसूस हुआ कि हमारी अवधी भाषा मात्र जुबां वाली भाषा रह गई, हकीकत में हमारी अवधी तो इस युवा पीढ़ी में तो लुप्त हो चुकी है। पहले स
Jai Prakash Verma
पहिले जईसन अब कहां रहा होली उ हुड़दंग और अबीर गुलाल के टोली चार दिन पहिले ही बन जात रहा माहौल पुरान कपड़ा पहिने मिल जात रहे दुय चार बकलोल अब तौ जव कहूं केहूं का देव रंग लगाए तो होई जात है कायं काय ठाय ठाय फिर दूसरे दिन कचहरी मा मुकदमा विचारत हैं मोहल्ला मां भी सब एक दूसरे के घर निहारत हैं पहिले वै आवै तब हम जाई - वै फेंकै अबीर तो हम गुलाल लगाई पहिले होली शाम के रहत रहा इंतजार पहिन के नवा कपड़ा दावत के भरमार सबके घर के गुझिया खाए के मुंह बिचकावे पापड़ मा सूजी और साबूदाना के चुनाव करावे अब तो सबके यहां वहै रेडीमेड गुझिया जोन है शर्मा जी के हुवां वहै वर्मा जी के हियां अब तो बस व्हाट्सएपवे पर देत है रंग बहाय उ होली के याद बहुत आवत है भाय देवियों और सज्जनों प्रणाम एवं प्रिय ठलुआ वृंद बात हो होली की और अवध की बात ना हो या अवधी रस ना छेड़ा जाए तो आनंद अधूरा ही रह जाता है। इस
i am Voiceofdehati
वाह क्या हवा है^_________^ (भाषा---अवधी) एक तौ भादौ, दूजे मघा तीसर बहत तेज पुरवईया चौथे भरा है पानी चहुंओर हर तरफ कजरी कै है शोर काली घनी अंधेरी रात उपर से होई रही बरसात केउ न समझै बाढ़ पीड़ित कै हाल ताने है बंधा पर पन्नी औ तिरपाल छोड़ी कै घर और दुआर, लै कै भागत हैं परिवार इ एक दिन कै न हुअय हाल,यहय होत है साल हर साल नेता बैठे हैं पांच सितारम उनका लागय इ सब खुबसूरत नजारा उनका चिंता है बस जीतय का चुनाव लागी कय कैसेव दाहीने बांव केउ मरय चाहे जियव बैठे लियंय मजा वै यही हवा कै जउन वादा करिन रहा जनता से उ सब उड़ीगा यही हवा मा ।। #बाढ़_पीड़ितों की मजबूरी व नेताओं के राजनीतिक हथकंडों को दर्शाती यह अवधी भाषा की कविता। बाढ़- यह शब्द सुनकर ही डर लगता है सभी अपने घरों में
Adarsh Dwivedi
पोल खोली, कुछ न बोली, डोलि जाई, का करी, ओनकी जफड़ी मा कसत इज्जत बचाई, का करी? बूँद भै जानै न हमरी जात कै औकात जे, वहि समुंदर की लहर कै गीत गाई, का करी? फूस की मड़ई मा बनि बारूद हम पैदा भए, आग देखी तौ भभकि के बरि न जाई, का करी? छाँव की खातिर पसीना खून से सींचा किहे, झोंझ से माटा झरैं तौ मुँह नोचाई, का करी? पूत जौ पूछै बमकि के बाप से तू का किह्या, ऊ बेचारा हाथ मलि के रहि न जाई, का करी आद्या प्रसाद 'उन्मत्त' (अवधि) ©Adarsh Dwivedi अवधी ग़ज़ल