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Ghanshyam Malawat

और कितना भाग ओगे #Gif

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जब तक है जान  #gif और कितना भाग ओगे

Sumit Hansarian

उठ और लगातार भाग #विचार

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Pratibha Singh

mai और तुम भाग -3

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( मैं और तुम भाग -3)

हजारों बार कलम उठी कोई प्रेम गीत लिखू 
पर मेरा प्रेम तो दुख  का वो टुकड़ा था 

जिसको मुझे दुनियां से छुपाना था 

उसी दुनियां से 
जिसे तुम मेरे लिए छोड़ गए थे 

वही दुनियां जिसने मुझे बिना समझे 
दोषी घोषित कर दिया था 

अब मैं भी बदल गया था 

तुम्हारे जाने के बाद 
अपने पुराने संघर्ष जीना  शुरू कर दिया था 

सुना है तुम्हारी दुनियां को 
मेरे  ये संघर्ष भी रास नहीं आते 

लेकिन तुम संदेह न करना मेरे प्रेम पर 

मैं बहुत खुद्दार हूं 
कम से कम टूटकर तो तुम्हारे पास कभी नहीं आऊंगा 

हो सकें तो दुआ देना 
कि मेरी कलम की स्याही खत्म न हो कभी 

ताकि ज़ब दर्द उबाल भरे तो
 अंतर की पीड़ा लिखकर सह  लूँ 


क्यूकी पीड़ा से  ज्यादा प्रेम में कुछ 
मैंने पाया ही नहीं 

तुम्हारे जाने के बाद 
कभी मन से हँसा ही नहीं 

पथरीली आंखे और दिन रात 
तुम्हे सोचने वाला मन 

कभी स्थिर नहीं रहा  ही नहीं 

पल में टूट जाता है 
पल में ही जुड़ जाता है 

अब प्रेम का कोई झरोखा आता भी है 
तो मैं गुजर जाने देता हूं 

क्यूकी अब बिखरने से डर लगता है 
और बिखर कर सिमटने  की सामर्थ्य 

तुम्हारे साथ ही खो दी थी 
तुम जानते हो न.. mai और तुम भाग -3

Pratibha Singh

मैं और तुम भाग -2

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(मैं और तुम. भाग -2) 

कांपते होंठ खोयी   आँखे 

कभी कह ही नहीं पायी 
अपना दर्द किसीसे

 भला कहती भी किससे

 पहले मन की उम्मीदें 
बहुत विशाल थी  तुमसे 

समय के साथ यें विशालता 
न्यून हो गयी

 और मैंने जाने दिया तुम्हे 
और करता भी क्या 

: मेरे प्रेम में इतनी ताकत नहीं थी 
जो तुम्हे वापस ला पाता 
u
न ही मेरे चेहरे में वो नूर था 
जो तुम्हे सम्मोहित कर पाता 

मेरे हस्त रेखाएं भी तो स्पष्ट न  थी 
जो तुम मेरा नसीब बन पातीं 

फिर मैंने स्वीकार कर लिया 
कि प्रेम योग्यता से नहीं 
किस्मत से मिलता है 

प्रेम तो चेहरा देखकर पैदा होता है 
टेस्ट पेपर की सुंदर लिखावट से नहीं 

ज़ब भी मुझे तुम्हारी यादें 
तोड़ती है
 
तो  अक्सर कोई बात नहीं कोई बात नहीं कहकर 
आँखो से बहते बेहया आंसू समेटने का असफल प्रयास करता हूं मैं और तुम भाग -2

Pratibha Singh

tum और मैं भाग -1

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( तुम और मैं )
भाग -1

तुम्हे बहुत चाहा था मैंने 

खुद से भी ज्यादा

प्रेम जितना था मुझमें 
उससे भी  कहीं ज्यादा

तुम्हारी एक आवाज 
सुनने की खातिर 

मैंने कई दिनों तक 
इंतज़ार किया था

 तुम मेरे थे  ही नहीं 
यें जानकर भी 

तुमसे 
अपने जीवन से बढ़कर प्रेम किया था

: अगर प्रेम की कोई पराकाष्ठा है 
तो उस पराकाष्ठा की सीमा तक 

सिर्फ तुम्हे जानने के बाद तुमको ही देखा

 मेरे उसी निस्वार्थ प्रेम को 
ज़ब लोगों ने लालच कहा

 तब मन पहली बार टूटा था tum और मैं भाग -1

Pratibha Singh

मैं और तुम भाग -2

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(मैं और तुम. भाग -2) 

कांपते होंठ खोयी   आँखे 

कभी कह ही नहीं पायी 
अपना दर्द किसीसे

 भला कहती भी किससे

 पहले मन की उम्मीदें 
बहुत विशाल थी  तुमसे 

समय के साथ यें विशालता 
न्यून हो गयी

 और मैंने जाने दिया तुम्हे 
और करता भी क्या 

: मेरे प्रेम में इतनी ताकत नहीं थी 
जो तुम्हे वापस ला पाता 
u
न ही मेरे चेहरे में वो नूर था 
जो तुम्हे सम्मोहित कर पाता 

मेरे हस्त रेखाएं भी तो स्पष्ट न  थी 
जो तुम मेरा नसीब बन पातीं 

फिर मैंने स्वीकार कर लिया 
कि प्रेम योग्यता से नहीं 
किस्मत से मिलता है 

प्रेम तो चेहरा देखकर पैदा होता है 
टेस्ट पेपर की सुंदर लिखावट से नहीं 

ज़ब भी मुझे तुम्हारी यादें 
तोड़ती है
 
तो  अक्सर कोई बात नहीं कोई बात नहीं कहकर 
आँखो से बहते बेहया आंसू समेटने का असफल प्रयास करता हूं मैं और तुम भाग -2

Pratibha Singh

मैं और तुम भाग -2

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(मैं और तुम. भाग -2) 

कांपते होंठ खोयी   आँखे 

कभी कह ही नहीं पायी 
अपना दर्द किसीसे

 भला कहती भी किससे

 पहले मन की उम्मीदें 
बहुत विशाल थी  तुमसे 

समय के साथ यें विशालता 
न्यून हो गयी

 और मैंने जाने दिया तुम्हे 
और करता भी क्या 

: मेरे प्रेम में इतनी ताकत नहीं थी 
जो तुम्हे वापस ला पाता 
u
न ही मेरे चेहरे में वो नूर था 
जो तुम्हे सम्मोहित कर पाता 

मेरे हस्त रेखाएं भी तो स्पष्ट न  थी 
जो तुम मेरा नसीब बन पातीं 

फिर मैंने स्वीकार कर लिया 
कि प्रेम योग्यता से नहीं 
किस्मत से मिलता है 

प्रेम तो चेहरा देखकर पैदा होता है 
टेस्ट पेपर की सुंदर लिखावट से नहीं 

ज़ब भी मुझे तुम्हारी यादें 
तोड़ती है
 
तो  अक्सर कोई बात नहीं कोई बात नहीं कहकर 
आँखो से बहते बेहया आंसू समेटने का असफल प्रयास करता हूं मैं और तुम भाग -2

Prakash Shukla

"मैं और मेरी तन्हाई"चौथा भाग

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"मैं और मेरी तन्हाई"चौथा भाग
वह दिन आ ही गया जब उससे मेरा सामना हुआ वह अपनी सहेली के साथ मेरे पास आई और बोली "तुम क्लास में ही रहते हो या बाहर "उसके ये शब्द सुनकर तो मैं नि:शब्द सा रह गया पर पता नहीं वह किस मिट्टी की बनी थी उसने मेरा हाथ पकडा़ मुझे क्लास से बाहर ले गई और मुझे बताने लगी कि मेरा साइंस का प्रोजेक्ट नहीं पूरा है मेरी मदद कर दोगे कया? मैं बेसुध खडा़ सुन रहा था सुन क्या रहा था आवाज कानों तक पहुँच रही थी पर अन्दर हलचल के कारण जगह नहीं मिली उसकी सहेली भी उसका साथ दे रही थी उसकी हाॅ में हाॅ मिला रही थी मैने भी उसके प्रोजेक्ट बनवाने में सहायता करने का वादा कर दिया लेकिन मुझे होश नहीं रहा मैं तो बस यह सोंच कर बेसुध रहा कि उसने मुझसे सामने आकर बात की बस यही मेरे लिए काफी था
                          मैने वादा तो कर दिया था कि प्रोजेक्ट बनाने में मैं उसकी मदद जरूर करूँगा जिसको अगले ही दिन जमा करना था लेकिन मुझे कुछ भी याद न था मैं भूल चुका था छुट्टी होने के बाद मैं अपने घर अपने ख्यालों में मगन और वह भी निश्चिन्त होकर अपने घर को चली गई अगले दिन जब हम स्कूल में पहुँचे तो वह मुझसे पूँछने आई कि मेरा प्रोजेक्ट का क्या हुआ फिर मैं
                            
   *प्रकाश* "मैं और मेरी तन्हाई"चौथा भाग

Prakash Shukla

"मैं और मेरी तन्हाई" छठा भाग

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"मैं और मेरी तन्हाई" छठा भाग
मैने एक योजना बनाई उसमे उसकी सहे ली का रोल महत्वपूर्ण था उसकी सहे ली भी मान गई 
                     उस लड़की को समझना मेरे लिए बहुत जरूरी था वाकइ वह अनसुलझी सी कहानी बन गई थी मेरे लिए मैं भी उसे सुलझाना चाहता था कि उसका व्यवहार मेरे साथ कैसा था 
                     मैने और उसकी सहेली ने मिलकर योजना मे काम किया हम लोग जब स्कूल में अगले दिन मिले तो उसके बाद मैने लगभग पाँच दिनों की छुट्टी ले ली जिससे मैं यह जान सकूँ कि वह मेरे बारे में क्या सोंचती है 
                      पहले दिन जब मैं स्कूल नहीं पहुँचा तो उसने मेरे बारे में मेरे दोस्तों से व अपनी सहेली से पूँछा तो उसे पता चला कि मैं बीमार हूँ आज नहीं आ सकता हो सकता है वह कल आ जाए
                       दूसरे दिन भी ऐसा ही हुआ उसने मेरे बारे में फिर सबसे पूँछा और मेरे बारे में वही जानकारी मिली
                        तीसरे दिन वह स्कूल गई तो उसने वही सवाल फिर से पूँछा पर उसको वही जवाब मिला लेकिन आज उसके माथे पर सिकन का अहसास मेरे दोस्तों व उसकी सहेली को हुआ वह कुछ परेशान भी थी
                           चौथे दिन भी जब उसने मुझे स्कूल में नहीं देखा तो वह उदास थी
                            पाँचवे दिन उससे रहा नहीं गया जब उसने स्कूल में मुझे नहीं देखा तो उसने आधे दिन की छुट्टी लेकर सीधे 
    *प्रकाश* "मैं और मेरी तन्हाई" छठा भाग

Prakash Shukla

"मैं और मेरी तन्हाई" आठवाँ भाग #कहानी

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"मैं और मेरी तन्हाई" आठवाँ भाग
अगले दिन हम सभी अपनी क्लास में थे जो टाॅस्क मिला था उसमें हमारे ग्रुप मौखिक बोलकर बनाए गए जिसे सर ने कहीं नोट नहीं किया बस तब क्या था उसे तो जैसे मौके की तलाश रहती हो उसने तुरन्त अपना दिमाग चलाया पाँच पाँच सदस्यों के ग्रुप बनाए गए और सर चले गए टास्क हम सब को ग्रुप के साथ मिलकर पूरा करना था किस्मत से उसे ग्रुप का सदस्य नहीं बनना था वह तो निरीक्षक बनकर घूमने लगी और उसका जहाँ मन लगता उसी ग्रुप में बैठ जाती मस्ती करती फिर दूसरे ग्रुप की तलाश करती वह मनमौजी उसका जहाँ भी मन आता वह जाती 
                  हमें टाॅस्क मिला था" पर्यावरण बचाओ का" और हमारा ग्रुप भी ऐसा बनाया गया था जिसमें चार सदस्य बकलोल थे और मैं भी कुछ वैसा ही था हमें माॅडल बनाना था पर हमारा ग्रुप तो शोध कर रहा था हम बैठे रहे और करीब काफी समय बीत चुका था सर के आने का वक्त था हम नहीं जानते थे कि हमारा माॅडल समय पर बनकर तैयार होगा कि नहीं पर कहते हैं न" जाको राखे साइयाँ मार सके न कोय " वह आ ही गई उसने हमारे चेहरे में जो बारह बजे थे उसे पढ़ लिया उसने हमारी मदद की हमने भी उसकी मदद से पर्यावरण बचाओ पर माॅडल तैयार कर लिया था पर उसी समय सर आ गए और उन्होंने हमारे ग्रुप में छ: सदस्य देखे जिससे उन्हें झटका लगा और उसे आॅफिस बुलाया गया फिर
                                    *प्रकाश* "मैं और मेरी तन्हाई" आठवाँ भाग
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