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Nimisha Mishra HI
जैसे आपके लिए कोई खास हो जाता है ,तब आप उसके किसी काम के नही रह जाते, वैसे ही आप उसके लिए निर्थक और अनुपयोगी हो जाते हैं।.... "जीवन बोध " ©MishraNimisha® जैसे आपके लिए कोई खास हो जाता है ,तब आप उसके किसी काम के नही रह जाते, वैसे ही आप उसके लिए निर्थक और अनुपयोगी हो जाते हैं।.... शुभ संध्या
Rakhi Jain
जब जब चुप रहते हैं माँ बाप तब तब जलती है बेटियाँ..... तोड दो जंजीरे लोकलाज की.... फिर मे भी तो देखूं कैसे जलती है बेटियाँ😌 Open For Collab🔓 Use👉 #कोरे_काग़ज़_पर_मस्ती #आगमुझमेंभीहै #yqdidi #yqbaba YourQuote Didi YourQuote Baba Best YQ Hindi Quotes #YourQuote
Divyanshu Pathak
यूँही उगने वाले फूलों को फल बनते देखा है कि नहीं।अधिकतर विषैले और अनुपयोगी होते हैं।हाँ एक बात जो ख़ास होती है वह ये कि विशेष योग्यता अर्जित
पूनम रावत
Vandana
सूखे पत्ते सा वो हवा में उड़ चला जो कभी ठंडी छांव बनके बरसा था बरगद की घनेरी लटे,पीपल की छांव, कितने मन्नत के धागों से बांधे चारों तरफ घूमें कितने पाँव,,, कितनी चौखटों की साज सज्जा बने अंत में गये किस
Kulbhushan Arora
उगना..खिलना...संवरना.... बिखर जाना यही है जिंदगी की मुख्तसर सा अफसाना बरगद की घनेरी लटे,पीपल की छांव, कितने मन्नत के धागों से बांधे चारों तरफ घूमें कितने पाँव,,, कितनी चौखटों की साज सज्जा बने अंत में गये किस
N S Yadav GoldMine
{Bolo Ji Radhey Radhey} अध्याय 2 : सांख्ययोग श्लोका 22 वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि। तथा शरीराणि विहाय जीर्णा न्यन्यानि संयाति नवानि देही।। अर्थ :- मनुष्य जैसे पुराने कपड़ोंको छोड़कर दूसरे नये कपड़े धारण कर लेता है, ऐसे ही देही पुराने शरीरोंको छोड़कर दूसरे नये शरीरोंमें चला जाता है। जीवन में महत्व :- यह गीता में कई प्रसिद्ध श्लोकों में से एक है, जिसमें यह समझाया गया है कि कैसे आत्मा अपने शरीर को छोड़ देती है और अन्य शरीरों के साथ पहचान करके नई परिस्थितियों में नए अनुभव प्राप्त करती है। व्यासजी द्वारा प्रयुक्त यह दृष्टान्त बहुत जानी मानी है । भगवान अपने विचारों को विशद उपमाओं के माध्यम से समझाने की विधि अपनाते हैं। इस तरह की तुलना आम आदमी को विचार स्पष्ट करने में मदद करती है। जैसे कोई जीवन की अलग अलग परिथितियों के लिए अलग अलग कपडे पहनता है, उसी प्रकार आत्मा एक शरीर को छोड़कर अन्य प्रकार के अनुभवों को प्राप्त करने के लिए दूसरे शरीर को धारण करती है। कोई भी नाइट गाउन पहनकर अपने काम पर नहीं जाता या ऑफिस के कपड़े पहनकर टेनिस नहीं खेलता। वे अवसर और स्थान के अनुकूल कपड़े पहनते हैं। यही हाल मौत या आत्मा का भी है। यह समझना इतना सरल है कि केवल अर्जुन ही नहीं, कोई भी विद्यार्थी या गीता का श्रोता त्याग के विषय को स्पष्ट रूप से समझ सकता है। अनुपयोगी कपड़े बदलना किसी के लिए भी मुश्किल या दर्दनाक नहीं होता है और खासकर जब किसी को पुराने कपड़े छोड़कर नए पहनने पड़ते हैं। इसी तरह, जब जीव को पता चलता है कि उनका वर्तमान शरीर उनके लिए किसी काम का नहीं है, तो वे पुराने शरीर को त्याग देते हैं। शरीर का यह "बूढ़ापन" या यों कहें कि शरीर की घटती उपयोगिता को केवल पहनने वाला ही निर्धारित कर सकता है। इस श्लोक की आलोचना यह है कि इस संसार में बहुत से बच्चे और युवा मरते हैं जिनका शरीर जीर्ण-शीर्ण नहीं था। इस मामले में, "बूढ़ापन" का अर्थ वास्तविक बुढ़ापा नहीं है, लेकिन शरीर की कम उपयोगिता यानी | इन बच्चों और युवाओं के लिए, यदि शरीर अनुपयोगी हो जाता है, तो वह शरीर पुराना माना जाएगा। एक अमीर व्यक्ति हर साल अपना भवन या वाहन बदलना चाहता है और हर बार उसे खरीदने के लिए कोई न कोई मिल जाता है। उस धनी व्यक्ति की दृष्टि से वह भवन या वाहन पुराना या अनुपयोगी हो गया है, लेकिन ग्राहक की दृष्टि से वही मकान उतना ही उपयोगी है जितना नया। इसी तरह, शरीर अप्रचलित हो गया है या नहीं, यह केवल वही तय कर सकता है जो इसे धारण करता है। यह श्लोक पुनर्जन्म के सिद्धांत को पुष्ट करता है। (राव साहब एन. एस. यादव ) अर्जुन इस दृष्टान्त के माध्यम से समझते हैं कि मृत्यु उन्हें ही डराती है जो इसे नहीं जानते। लेकिन जो व्यक्ति मृत्यु के रहस्य और अर्थ को समझता है, उसे कोई दर्द या दुख नहीं होता है, क्योंकि कपड़े बदलने से शरीर को कोई दर्द नहीं होता है, और न ही हम हमेशा वस्त्र त्यागने की स्थिति में रहते हैं। इसी प्रकार विकास की दृष्टि से आत्मा भी शरीर त्याग कर नये अनुभवों की प्राप्ति के लिये उपयुक्त नये शरीर को धारण करती है। इसमें कोई दर्द नहीं है। यह वृद्धि और परिवर्तन जीव के लिए है न कि चेतना के रूप में आत्मा के लिए। आत्मा हमेशा परिपूर्ण होती है, उसे विकास की आवश्यकता नहीं होती। ©N S Yadav GoldMine #City {Bolo Ji Radhey Radhey} अध्याय 2 : सांख्ययोग श्लोका 22 वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि। तथा शरीराणि विहाय जीर्णा न
Yashpal singh gusain badal'
जब आप स्वयं जज बन कर हर किसी को जज करने लगते हैं तब हम अच्छे और बुरे की अनंत प्रक्रिया में फँस जाते हैं और हम अनायास ही जिंदगी भर अच्छे और बुरे के दो हिस्सों को मान्यता प्रदान करने वाले समूह के सह यात्री बन जाते हैं । यदि हम चीजों को केवल गुणों के हिसाब से ही देखें और मानें की किसी में अवगुण जैसी कोई चीज होती ही नहीं है जैसे सांप में मौजूद जहर उसका गुण है जैसे शेर का हिंसक होना उसका गुण है यह बात अलग है कि हमारे लिए कुछ उपयोगी है और कुछ अनुपयोगी है लेकिन अनुपयोगी का मतलब यह नहीं है कि हम यह समझें कि वह बुरी चीज है या दुर्गुण है ।आप यह समझ लें प्रकृति में जो भी है उसे उसी रूप में स्वीकार करना चाहिए।प्रकृति में कोई भी किसी के जैसा नहीं है ,सबके अलग-अलग गुण हैं और इस प्रकृति को जीवंत रखने में सबका योगदान है । आप अपने अल्पज्ञान के कारण जज बन कर किसी को अच्छा और किसी को बुरा घोषित करते रहते हो । जबकि प्रकृति के अन्य जीव निरदुर्भाव आपको इसी रूप में स्वीकार करते हैं . वे तो आपको जज नहीं करते ! एक पेड़ दूसरे को जज नहीं करता।एक फूल,एक नदी,एक पर्वत,हवा,पानी आपको जज नहीं करते ! वे सब अपना कार्य करते हैं। और इसी लिए उनके कार्य में इतना परफेक्शन होता है ।दुनियां में हर चीज का अपना-अपना महत्व है। सब इंजीनियर होंगे या सब IAS बन जायेंगे तो दुनियां का काम रुक जाएगा ।इसलिए जितना महत्व साल का है तो उतना ही महत्व सेकंड का है । हर कोई महत्वपूर्ण है । हम सभी इस पृथ्वी के जीवन श्रृंखला के अंग हैं । एक दूसरे के बिना अधूरे हैं । न कोई बड़ा न छोटा ।सब सहयोगी हैं सब उपयोगी हैं । बस हम नहीं जानते कि इस जीवन श्रृंखला में किसी की क्या उपयोगिता है और यही अज्ञानता हमें अच्छा बुरा छोटा बड़ा का अहसास करवाती है । । ©Yashpal singh gusain badal' #Childhood जब आप स्वयं जज बन कर हर किसी को जज करने लगते हैं तब हम अच्छे और बुरे की अनंत प्रक्रिया में फँस जाते हैं और हम अनायास ही जिंदगी भर
Niwas
#Letter to Brother प्रिय अनुज, वैचारिक मतभेद जीवन की ख़ूबसूरती है। सर्वोच्च शाषण की पद्धति लोकतंत्र का सबसे मजबूत पिलर नीतिगत मतभेद ही है।परन्तु मतभेद जब मनभेद
Niwas
#Letter to Brother प्रिय अनुज, वैचारिक मतभेद जीवन की ख़ूबसूरती है। सर्वोच्च शासण की पद्धति लोकतंत्र का सबसे मजबूत पिलर नीतिगत मतभेद ही है।परन्तु मतभेद जब मनभेद