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N S Yadav GoldMine
जो नरश्रेष्ठ अपने शस्त्र के वेग से देवताओं को भी नष्ट कर सकते थे वे ही ये युद्ध में मार डाले गये हैं पढ़िए महाभारत !! 📒📒 महाभारत: स्त्री पर्व पन्चर्विंष अध्याय: श्लोक 32-50 {Bolo Ji Radhey Radhey} 📜 जो नरश्रेष्ठ अपने शस्त्र के वेग से देवताओं को भी नष्ट कर सकते थे, वे ही ये युद्ध में मार डाले गये हैं; यह काल का उलट-फेर तो देखो। माधव। निश्चय ही दैव के लिये कोई भी कार्य अधिक कठिन नहीं है; क्योंकि उसने क्षत्रियों द्वारा ही इन शूरवीर क्षत्रिय षिरोमणियों का संहार कर डाला है। 📜 श्रीकृष्ण मेरे वेगशाली पुत्र तो उसी दिन मारे डाले गये, जबकि तुम अपूर्ण मनोरथ होकर पुनः उपप्लव्य को लौट गये थे। मुझे तो शान्तनुनन्दन भीष्म तथा ज्ञानी विदुर ने उसी दिन कह दिया था, कि अब तुम अपने पुत्रों पर स्नेह न करो। है जनार्दन। उन दोनों की यह दृष्टि मिथ्या नहीं हो सकती थी, अतः थोड़े ही समय में मेरे सारे पुत्र युद्ध की आग में जल कर भस्म हो गये। 📜 वैशम्पयानजी कहते हैं- भारत। ऐसा कहकर शोक से मूर्छित हुई गान्धारी धैर्य छोड़कर पृथ्वी पर गिर पड़ीं, दु:ख से उनकी विवेकषक्ति नष्ठ हो गयी। तदन्तर उनके सारे अंगों में क्रोध व्याप्त हो गया। पुत्र शोक में डूब जाने के कारण उनकी सारी इन्द्रियां व्याकुल हो उठीं। 📜 उस समय गान्धारी ने सारा दोष श्रीकृष्ण के ही माथे मढ दिया। गान्धारी ने कहा- श्रीकृष्ण। है जनार्दन। पाण्डव और धृतराष्ट्र के पुत्र आपस में लड़कर भस्म हो गये। तुमने इन्हें नष्ट होते देखकर भी इनकी उपेक्षा कैसे कर दी? महाबाहु मधुसूदन। तुम शक्तिशाली थे। तुम्हारे पास बहुत से सेवक और सैनिक थे। 📜 तुम महान् बल में प्रतिष्ठित थे। दोनों पक्षों से अपनी बात मनवा लेने की सामथ्र्य तुम में मौजूद थी। तुमने वेद-षास्त्रों और महात्माओं की बातें सुनी और जानी थीं। यह सब होते हुए भी तुमने स्वेच्छा से कुरू कुल के नाश की उपेक्षा की- जान-बूझकर इस वंष का विनाश होने दिया। 📜 यह तुम्हारा महान् दोष है, अतः तुम इसका फल प्राप्त करो। चक्र और गदा धारण करने वाले है केशव। मैंने पति की सेवा से कुछ भी तप प्राप्त किया है, उस दुर्लभ तपोबल से तुम्हें शाप दे रही हूं। गोविन्द। 📜 तुमने आपस में मार-काट मचाते हुए कुटुम्बी कौरवों ओर पाण्डवों की उपेक्षा की है; इसलिये तुम अपने भाई-बन्धुओं का भी विनाश कर डालोगे। हैं मधुसूदन। आज से छत्तीसवां वर्ष उपस्थित होने पर तुम्हारे कुटुम्बी, मन्त्री और पुत्र सभी आपस में लड़कर मर जायेंगे। 📜 तुम सबसे अपरिचित और लोगों की आंखों से ओझल होकर अनाथ के समान वन में विचरोगे, और किसी निन्दित उपाय से मृत्यु को प्राप्त होओगे। इन भरतवंषी स्त्रियों के समान तुम्हारे कुल की स्त्रियां भी पुत्रों तथा भाई-बन्धुओं के मारे जाने पर इसी प्रकार सगे-सम्बन्धियों की लाशों पर गिरेगी। 📜 वैशम्पयानजी कहते हैं- राजन। वह घोर वचन सुनकर माहमनस्वी वसुदेव नन्दन श्रीकृष्ण ने कुछ मुस्कराते हुए से गान्धारी से कहा- क्षत्राणी। मैं जानता हूं, यह ऐसा ही होने वाला है। तुम तो किये हुए को ही कह रही हो। इसमें संदेह नहीं कि वृष्णिवंष के यादव देव से ही नष्ट होंगे। 📜 शुभे। वृष्णिकुल का संहार करने वाला मेरे सिवा दूसरा कोई नहीं है। यादव दूसरे मनुष्यों तथा देवताओं और दानवों के लिये भी अवध्य हैं; अतः अपस में ही लड़कर नष्ट होंगे। श्रीकृष्ण के ऐसा कहने पर पाण्डव मन-ही-मन भयभीत हो उठे। उन्हें बड़ा उद्वेग हुआ। ये सब-के-सब अपने जीवन से निराष हो गये। एन एस यादव।। ©N S Yadav GoldMine #traintrack जो नरश्रेष्ठ अपने शस्त्र के वेग से देवताओं को भी नष्ट कर सकते थे वे ही ये युद्ध में मार डाले गये हैं पढ़िए महाभारत !! 📒📒 महाभार
Ravendra
शुभम सैनी
Vaishnav Singh Kshatriye
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जो नरश्रेष्ठ भगवान श्री कृष्ण अपने शस्त्र के वेग से देवताओं को भी नष्ट कर सकते थे, पढ़िए महाभारत !! 📒📒 महाभारत: स्त्री पर्व पन्चर्विंष अध्याय: श्लोक 32-50 जय श्री राधे कृष्ण जी {Bolo Ji Radhey Radhey} 📜 जो नरश्रेष्ठ अपने शस्त्र के वेग से देवताओं को भी नष्ट कर सकते थे, वे ही ये युद्ध में मार डाले गये हैं; यह काल का उलट-फेर तो देखो। माधव। निश्चय ही दैव के लिये कोई भी कार्य अधिक कठिन नहीं है; क्योंकि उसने क्षत्रियों द्वारा ही इन शूरवीर क्षत्रिय षिरोमणियों का संहार कर डाला है। 📜 श्रीकृष्ण मेरे वेगशाली पुत्र तो उसी दिन मारे डाले गये, जबकि तुम अपूर्ण मनोरथ होकर पुनः उपप्लव्य को लौट गये थे। मुझे तो शान्तनुनन्दन भीष्म तथा ज्ञानी विदुर ने उसी दिन कह दिया था कि अब तुम अपने पुत्रों पर स्नेह न करो। जनार्दन। उन दोनों की यह दृष्टि मिथ्या नहीं हो सकती थी; अतः थोड़े ही समय में मेरे सारे पुत्र युद्ध की आग में जल कर भस्म हो गये। 📜 वैशम्पयानजी कहते हैं- भारत। ऐसा कहकर शोक से मूर्छित हुई गान्धारी धैर्य छोड़कर पृथ्वी पर गिर पड़ीं, दु:ख से उनकी विवेकषक्ति नष्ठ हो गयी। तदन्तर उनके सारे अंगों में क्रोध व्याप्त हो गया। पुत्र शोक में डूब जाने के कारण उनकी सारी इन्द्रियां व्याकुल हो उठीं। उस समय गान्धारी ने सारा दोष श्रीकृष्ण के ही माथे मढ दिया। गान्धारी ने कहा- श्रीकृष्ण। जनार्दन। 📜 वैशम्पयानजी कहते हैं- भारत। ऐसा कहकर शोक से मूर्छित हुई गान्धारी धैर्य छोड़कर पृथ्वी पर गिर पड़ीं, दु:ख से उनकी विवेकषक्ति नष्ठ हो गयी। तदन्तर उनके सारे अंगों में क्रोध व्याप्त हो गया। पुत्र शोक में डूब जाने के कारण उनकी सारी इन्द्रियां व्याकुल हो उठीं। उस समय गान्धारी ने सारा दोष श्रीकृष्ण के ही माथे मढ दिया। गान्धारी ने कहा- श्रीकृष्ण। जनार्दन। 📜 यह सब होते हुए भी तुमने स्वेच्छा से कुरू कुल के नाश की उपेक्षा की- जान-बूझकर इस वंष का विनाश होने दिया। यह तुम्हारा महान् दोष है, अतः तुम इसका कल प्राप्त करो। चक्र और गदा धारण करने वाले केशव। मैंने पति की सेवा से कुछ भी तप प्राप्त किया है, उस दुर्लभ तपोबल से तुम्हें शाप दे रही हूं। 📜 गोविन्द। तुमने अपस में मार-काट मचाते हुए कुटुम्बी कौरवों ओर पाण्डवों की उपेक्षा की है; इसलिये तुम अपने भाई-बन्धुओं का भी विनाश कर डालोगे। मधुसूदन। आज से छत्तीसवां वर्ष उपस्थित होने पर तुम्हारे कुटुम्बी, मन्त्री और पुत्र सभी आपस में लड़कर मर जायेंगे। 📜 तुम सबसे अपरिचित और लोगों की आंखों से ओझल होकर अनाथ के समान वन में विचरोगे और किसी निन्दित उपाय से मृत्यु को प्राप्त होओगे। इन भरतवंषी स्त्रियों के समान तुम्हारे कुल की स्त्रियां भी पुत्रों तथा भाई-बन्धुओं के मारे जाने पर इसी प्रकार सगे-सम्बन्धियों की लाशों पर गिरेगी। वैशम्पयानजी कहते हैं- राजन। 📜 वह घोर वचन सुनकर माहमनस्वी वसुदेवनन्दन श्रीकृष्ण ने कुछ मुस्कराते हुए से गान्धारी से कहा- क्षत्राणी। मैं जानता हूं, यह ऐसा ही होने वाला है। तुम तो किये हुए को ही कह रही हो। इसमें संदेह नहीं कि वृष्णिवंष के यादव देव से ही नष्ट होंगे। शुभे। वृष्णिकुल का संहार करने वाला मेरे सिवा दूसरा कोई नहीं है। 📜 यादव दूसरे मनुष्यों तथा देवताओं और दानवों के लिये भी अवध्य हैं; अतः अपस में ही लड़कर नष्ट होंगे। श्रीकृष्ण के ऐसा कहने पर पाण्डव मन-ही-मन भयभीत हो उठे। उन्हें बड़ा उद्वेग हुआ। ये सब-के-सब अपने जीवन से निराष हो गये। ©N S Yadav GoldMine #yogaday जो नरश्रेष्ठ भगवान श्री कृष्ण अपने शस्त्र के वेग से देवताओं को भी नष्ट कर सकते थे, पढ़िए महाभारत !! 📒📒 महाभारत: स्त्री पर्व पन्चर
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हैं वासुदेव श्रीकृष्ण। देखो, ये सूर्य के समान तेजस्वी शान्तनुनन्दन भीष्म कैसे सो रहे हैं पढ़िए महाभारत !! 🌷🌷 महाभारत: स्त्री पर्व त्रयोविंष अध्याय: श्लोक 1-18 {Bolo Ji Radhey Radhey} 📜 गान्धारी बोलीं- तात। देखो, ये नकुल के सगे मामा शल्य मरे पड़े है। इन्हें ज्ञाता धर्मराज युधिष्ठिर ने युद्ध में मारा है। पुरुषोत्तम। जो सदा और सर्वत्र तुम्हारे साथ होड़ लगाये रहते थे वे ही ये महाबली मद्रराज शल्य यहां मारे जाकर चिर निद्रा में सो रहे हैं। 📜 तात। ये वे ही शल्य हैं जिन्होंने युद्ध में सूतपुत्र कर्ण के रथ की बागडोर संभालते समय पाण्डवों की विजय के लिये उसके तेज और उत्साह को नष्ट किया था। अहो। धिक्कार है। देखो न, शल्य के पूर्ण चन्द्रमा की भांति दर्षनीय तथा कमल दल सदृष नेत्रों वाले व्रणरहित मुख को कौओं ने कुछ-कुछ काट दिया है। 📜 श्रीकृष्ण सुवर्ण के समान कान्तिमान शल्य के मुख से तपाये हुए सोने के समान कान्तिवाली जीभ बाहर निकल आयी है और पक्षी उसे नोंच-नोंच कर खा रहे हैं। युधिष्ठिर के द्वारा मारे गये तथा युद्ध में शोभा पाने वाले मद्रराज शल्य को ये कुलांगनाऐं चारों ओर से घेर कर वैठी हैं और रो रही हैं। 📜 अत्यन्त महीन वस्त्र पहने हुए ये क्षत्राणियां क्षत्रिय षिरोमणि नरश्रेष्ठ मद्रराज के पास आकर कैसा करूण क्रन्दन कर रही हैं। रणभूमि गिरे हुए राजा शल्य को उनकी स्त्रियां उसी तरह सब ओर से घेरे हुए हैं, जैसे एक बार की व्याही हुई हथनियां कीचड़ में फंसे हुए गजराज को घेर कर खड़ी हों। 📜 वृष्णिनन्दन। देखो, ये दूसरों को शरण देने बाले शूरवीर शल्य बाणों से छिन्न-भिन्न होकर वीर शैया पर सो रहे हैं। ये पर्वतीय, तेजस्वी एवं प्रतापी राजा भगदत्त हाथ में हाथी का अंकुष लिये पृथ्वी पर सो रहे हैं इन्हें अर्जुन ने मार गिराया था। इन्हें हिंसक जीव जन्तु खा रहे हैं। 📜 उन महाबाहु ने कुन्तीकुमार धनंजय के साथ युद्ध करके उन्हे संषय में डाल दिया था; परंतु अंत में उन कुन्तीकुमार के हाथ से ही मारे गये। संसार में षोर्य और बल में जिनकी समानता करने वाला दूसरा कोई नही है, वे ही ये युद्ध में श्यंकर कर्म करने वाले श्ीष्मजी घायल हो बाणषैया पर सो रहे है। 📜 इनके सिर पर यह सोने माला विराज रही है जो केषों की सोभा बढाती सी जान पड़ती है। जैसे वृत्रासुर के साथ इन्द्र का अत्यन्त भयंकर संग्राम हुआ था, उसी प्रकार इन भगदत्त के साथ कुन्ती कुमार अर्जुन का अत्यन्त दारूण एवं रोमांचकारी युद्ध हुआ था। 📜 श्रीकृष्ण। देखो, ये सूर्य के समान तेजस्वी शान्तनुनन्दन भीष्म कैसे सो रहे हैं, ऐसा जान पड़ता है, मानो प्रलयकाल में काल प्रेरित हो सूर्यदेव आकाष से भूमि पर गिर पड़े हैं। केशव। जैसे सूर्य सारे जगत् को ताप देकर अस्ताचल को चले जाते हैं, उसी तरह ये पराक्रमी मानव सूर्य रणभूमि में अपने शस्त्रों के प्रताप से शत्रुओं को संतप्त करके अस्त हो रहे हैं। 📜 जो ऊध्र्वरेता ब्रम्हचारी रहकर कभी मर्यादा से च्युत नहीं हुए हैं, उन भीष्म को शूर सेवित वीरोचित शयन बाणषैया पर सोते हुए देख लो। जैसे भगवान स्कन्द सरकण्डों के समूह पर सोये थे, उसी प्रकार ये भीष्मजी कर्णी, नालीक और नाराच आदि बाणों की उत्तम शैया बिछाकर उसी का आश्रय ले सो रहे हैं. ©N S Yadav GoldMine #yogaday हैं वासुदेव श्रीकृष्ण। देखो, ये सूर्य के समान तेजस्वी शान्तनुनन्दन भीष्म कैसे सो रहे हैं पढ़िए महाभारत !! 🌷🌷 महाभारत: स्त्री पर्व
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रोते हुए एश्वर्यशाली प्रज्ञा चक्षु राजा धृतराष्ट्र देखते ही आँसुओं से उनका गला भर आया पढ़िए महाभारत !! 🌅🌅{Bolo Ji Radhey Radhey} महाभारत: स्त्री पर्व एकादश अध्याय: श्लोक 1-24 📒 वैशम्पायन उवाच वैशम्पायन जी कहते हैं – राजन ! वे सब लोग हस्तिनापुर से एस ही कोस की दूरी पर पहुँचे होंगे कि उन्हें शरद्वान के पुत्र कृपाचार्य, द्रोणकुमार अश्वत्थामा और कृतवर्मा – ये तीनों महारथी दिखायी दिये, रोते हुए एश्वर्यशाली प्रज्ञाचक्षु राजा धृतराष्ट्र देखते ही आँसुओं से उनका गला भर आया और वे इस प्रकार बोले-पृथ्वीनाथ महाराज ! आपका पुत्र अत्यन्त दुष्कर कर्म करके अपने सेवकों सहित इन्द्रलोक में जा पहुँचा ह। भरतश्रेष्ठ ! दुर्योधन की सेनासे केवल हम तीन रथी ही जीवित बचे हैं। 📒 आपकी अन्य सारी सेना नष्ठ हो गयी। राजा धृतराष्ट्र से ऐसा कहकर शरद्वान् के पुत्र कृपाचार्य पुत्र शोक से पीडित हुई गान्धारी से इस प्रकार बोले-देवि ! आपके सभी पुत्र निर्भय होकर जूझते और बहु-संख्यक शत्रुओं का संहार करते हुए वीरोचित कर्म करके वीरगति को प्राप्त हुए हैं।निश्चय ही वे शस्त्रों द्वारा जीते हुए निर्मल लोकोंमें पहुँचकर तेजस्वी शरीर धारण करके वहाँ देवताओंके समान विहार करते होंगे। उन शूरवीरों मे से कोई भी युद्ध करते समय पीठ नहीं दिखा सका है। किसी ने भी शत्रुके हाथ नहीं जोडे़ हैं। सभी शस्त्र के द्वारा मारे गये हैं। 📒 इस प्रकार आपके शत्रुओं का रण भूमि में संहार करके हम तीनों भागे जा रहे है। अब यहाँ ठहर नहीं सकते। क्योंकि अमर्ष में भरे हुए वे महाधनुर्धर वीर पाण्डव वैर का बदला लेने की इच्छा से शीघ्र यहाँ आयेंगे। यशस्विनि ! अपने पुत्रों के मारे जानेका समाचार सुनकर सदा सावधान रहनेवाले पुरुष प्रवर पाण्डव हमारा चरणचिन्ह देखते हुए शीघ्र ही हम लोगों का पीछा करेंगे। रानीजी ! उनके पुत्रों और सम्बन्धियों का विनाश करके हम यहाँ ठहर नहीं सकते; अत: हमें जाने की आज्ञा दिजिये और आप भी अपने मन से शोक को निकाल दीजिये। 📒 इस प्रकार युद्ध में जो शस्त्र द्वारा मृत्यु होती है, उसे प्राचीन महर्षि क्षत्रिय के लिये उत्तम गति बताते है; अत: उनके लिये आपको शोक नहीं करना चाहिये। महारानी ! उनके शत्रु पाण्डव भी विशेष लाभ में नहीं है। अश्वत्थामा को आगे करके हमने जो कुछ किया है, उसे सुनिये। भीमसेन ने आपके पुत्र को अधर्म से मारा है, यह सुनकर हम लोग भी पाण्डवों के सोते हुए शिविरमें जा पहुँचे और पाण्डव वीरों का संहार कर डाल। द्रु पद के पुत्र धृष्ट्द्युम्न आदि सारे पांचाल मार डाले गये और द्रौपदी के पॉंचों पुत्रों को भी हमने मार गिराया। 📒 (फिर वे धृतराष्ट्र से बोले) राजन् ! आप भी हमें जाने की आज्ञा प्रदान करें और महान् धैर्यका आश्रय लें, केवल क्षात्र धर्म पर दृष्टि रखकर इतना ही देखें कि उनकी मृत्यु कैसे हुई है ? भारत ! राजा से ऐसा कहकर उनकी प्रदक्षिणा करके कृपाचार्य, कृतवर्मा और अश्वत्मामा ने मनीषी राज धृतराष्ट्र की ओर देखते हुए तुरंत ही गंगा तट की ओर अपाने घोड़े हाँक दिये। राजन् वहाँसे हटकर वे सभी महारथी उद्विग्न हो एक दूसरे से विदाले तीन मार्गों पर चल दिये। 📒 शरद्वान् के पुत्र कृपाचार्य तो हस्तिनापुर चले गये, कृतवर्मा अपने ही देशकी ओर चल दिया और द्रोणपुत्र अश्वत्थामा ने व्यास-आश्रम की राह ली। महात्मा पाण्डवों का अपराध करके भय से पीडित हुए वे तीनों वीर इस प्रकार एक दूसरे की ओर देखते हुए वहाँ से खिसक गये। राजा धृतराष्ट्र से मिलकर शत्रुओंका दमन करनेवाले वे तीनों महामनस्वी वीर सूर्योदयसे पहले ही अपने अभीष्ट स्थानों की ओर चल पड़े। राजन्! तदनन्तर महारथी पाण्डवों ने द्रोणपुत्र अश्वत्थामा-के पास पहुँचकर उसे बलपूर्वक युद्ध में पराजित किया। 📒 इस प्रकार श्रीमहाभारत स्त्रीपर्व के अन्तर्गत जल प्रदानिक पर्व में कृपाचार्य, अश्वत्थामा और कृतवर्मा का दर्शनविषयक ग्यारहवॉं अध्याय पूरा हुआ। ©N S Yadav GoldMine #Aurora रोते हुए एश्वर्यशाली प्रज्ञा चक्षु राजा धृतराष्ट्र देखते ही आँसुओं से उनका गला भर आया पढ़िए महाभारत !! 🌅🌅{Bolo Ji Radhey Radhey}
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सभी शस्त्र के द्वारा मारे गये हैं इस प्रकार युद्ध में जो शस्त्रद्वारा मृत्यु होती है पढ़िए महाभारत !! 📒📒 {Bolo Ji Radhey Radhey} महाभारत: स्त्री पर्व एकादश अध्याय: श्लोक 1-24 राजा धृतराष्ट्र से कृपाचार्य, अश्वत्थामा और कृतवर्मा की भेंट और कृपाचार्य का कौरव-पाण्डवोंकी सेना के विनाश की सूचना देना। 📒 वैशम्पायन उवाच वैशम्पायनजी कहते हैं – राजन ! वे सब लोग हस्तिनापुर से एक ही कोस की दूरी पर पहुँचे होंगे कि उन्हें शरद्वान के पुत्र कृपाचार्य, द्रोणकुमार अश्वत्थामा और कृतवर्मा-ये तीनों महारथी दिखायी दिये, रोते हुए एश्वर्यशाली प्रज्ञाचक्षु राजा धृतराष्ट्र देखते ही आँसुओं से उनका गला भर आया और वे इस प्रकार बोले- पृथ्वीनाथ महाराज ! 📒 आपका पुत्र अत्यन्त दुष्कर कर्म करके अपने सेवकों सहित इन्द्रलोक में जा पहुँचा है। भरतश्रेष्ठ ! दुर्योधन की सेना से केवल हम तीन रथी ही जीवित बचे हैं। आपकी अन्य सारी सेना नष्ठ हो गयी’। राजा धृतराष्ट्र से ऐसा कहकर शरद्वान् के पुत्र कृपाचार्य पुत्र शोक से पीडित हुई गान्धारी से इस प्रकार बोले - देवि ! 📒 आपके सभी पुत्र निर्भय होकर जूझते और बहु-संख्यक शत्रुओं का संहार करते हुए वीरोचित कर्म करके वीरगति को प्राप्त हुए हैं। निश्चय ही वे शस्त्रों द्वारा जीते हुए निर्मल लोकों में पहुँच कर तेजस्वी शरीर धारण करके वहाँ देवताओंवके समान विहार करते होंगे। उन शूरवीरों मे से कोई भी युद्ध करते समय पीठ नहीं दिखा सका है। किसी ने भी शत्रुके हाथ नहीं जोडे़ हैं। 📒 सभी शस्त्र के द्वारा मारे गये हैं। इस प्रकार युद्ध में जो शस्त्रद्वारा मृत्यु होती है, उसे प्राचीन महर्षि क्षत्रिय के लिये उत्तम गति बताते है; अत: उनके लिये आपको शोक नहीं करना चाहिये। महारानी ! उनके शत्रु पाण्डव भी विशेष लाभ में नहीं है। अश्वत्थामा को आगे करके हमने जो कुछ किया है, उसे सुनिये। 📒 भीमसेन ने आपके पुत्र को अधर्म से मारा है, यह सुनकर हम लोग भी पाण्डवों के सोते हुए शिविरमें जा पहुँचे और पाण्डव वीरों का संहार कर डाल। द्रुपद के पुत्र धृष्ट्द्युम्न आदि सारे पांचाल मार डाले गये और द्रौपदी के पॉंचों पुत्रों को भी हमने मार गिराया। इस प्रकार आपके शत्रुओं का रणभूमि में संहार करके हम तीनों भागे जा रहे है। अब यहाँ ठहर नहीं सकता। 📒 क्योंकि अमर्ष में भरे हुए वे महाधनुर्धर वीर पाण्डव वैर का बदला लेने की इच्छाबसे शीघ्र यहाँ आयेंगे। यशस्विनि ! अपने पुत्रों के मारे जाने का समाचार सुनकर सदा सावधान रहने वाले पुरुष प्रवर पाण्डव हमारा चरण चिन्ह देखते हुए शीघ्र ही हम लोगों का पीछा करेंगे। रानीजी ! 📒 उनके पुत्रों और सम्बन्धियों का विनाश करके हम यहाँ ठहर नहीं सकते अत: हमें जाने की आज्ञा दिजिये और आप भी अपने मन से शोक को निकाल दीजिये। ( फिर वे धृतराष्ट्र से बोले -- राजन् ! आप भी हमें जाने की आज्ञा प्रदान करें और महान् धैर्य का आश्रय लें, केवल क्षात्र धर्मपर दृष्टि रखकर इतना ही देखें कि उनकी मृत्यु कैसे हुई है? 📒 भारत ! राजासे ऐसा कहकर उनकी प्रदक्षिणा करके कृपाचार्य, कृतवर्मा और अश्वत्मामा ने मनीषी राज धृतराष्ट्र की ओर देखते हुए तुरंत ही गंगा तट की ओर अपने घोड़े हाँक दिये। राजन् वहाँ से हटकर वे सभी महारथी उद्विग्न हो एक दूसरे से विदा ले तीन मार्गों पर चल दिये। शरद्वान् के पुत्र कृपाचार्य तो हस्तिनापुर चले गये, 📒 कृतवर्मा अपने ही देश की ओर चल दिया और द्रोणपुत्र अश्वत्थामा ने व्यास-आश्रम की राह ली। महात्मा पाण्डवों का अपराध करके भयसे पीडित हुए वे तीनों वीर इस प्रकार एक दूसरे की ओर देखते हुए वहाँ से खिसक गये। 📒 राजा धृतराष्ट्र से मिलकर शत्रुओं का दमन करनेवाले वे तीनों महामनस्वी वीर सूर्योदय से पहले ही अपने अभीष्ट स्थानों की ओर चल पड़े। राजन्! तदनन्तर महारथी पाण्डवों ने द्रोणपुत्र अश्वत्थामा-के पास पहुँचकर उसे बलपूर्वक युद्धबमें पराजित किया। ।। राव साहब एन एस यादव।। 📒 इस प्रकार श्रीमहाभारत स्त्री पर्व के अन्तर्गत जल प्रदानिक पर्व में कृपाचार्य, अश्वत्थामा और कृतवर्मा का दर्शन विषयक ग्यारहवॉं अध्याय पूरा हुआ। पटौदी, गुरुग्राम, हरियाणा।। ©N S Yadav GoldMine #delhiearthquake सभी शस्त्र के द्वारा मारे गये हैं इस प्रकार युद्ध में जो शस्त्रद्वारा मृत्यु होती है पढ़िए महाभारत !! 📒📒 {Bolo Ji Radhey
GRHC~TECH~TRICKS
**** पृवति **** समस्त पृथ्वी पर समस्त संसार के परमत्तवों अंशों के। हद्रय से एक संवेदना होती है । जिसको पृवति नाम से भी जाना जाता है। यह दो रुप में होती (आन्तरिक पृवति और बाहरी पृवति) समस्त संसार के इन्सान को दोनों पृवति के साथ झकड़ा हुआ है । वास्तविक रूप में हृदय में चार प्रकार की ही पृवति होती। जिसके वेद में भी प्रमाण है जो आज भी जीवित हैं। यही पृवति अभी समस्त पृथ्वी पर समस्त मानव , के अन्दर तो ज्यों कि त्यों ही जिन्दा है संसार में। बाहर संसार में इस आन्तरिक पृवति के , अनेकों रुप में जानने के प्रमाण मिल रहे हैं। आन्तरिक पृवति और बाहरी पृवति के रुप से, अनेक परमत्तव अंश रहित परिवर्तन से ही । इस पृथ्वी पर समस्त धर्मों के उद्गम होने का। प्रमाण भी इसी का फल है । पृवति समस्त संसार में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य,और शुद्र। ये ही समस्त संसार के सभी धर्मों के परमत्तत्व अंश के आन्तरिक रुप में आज भी विराजमान हैं । जो आज भी जिंदा है । जो समस्त मानव के चेतन रुप हृदय में हैं। संसार में आप बाहर से आप इसे अनेकों रुप में , देख सकते हो इस पृवति को। जब-तक हद्रय चेतना रहेगी। तब- तक आन्तरिक रूप में चार रुप में ही रहती है। पृवति आपके जीवन में अहसास कराती रहती हर पल। यह कभी हृदय में स्थिर नहीं रहती है कभी भी व किसी भी समय। हे परमत्तव अंश । ©GRHC~TECH~TRICKS #grhctechtricks #New #treanding #New #reading #ReachingTop #rohitsharma