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vinni.शायर
कभी देखती है सपने मेरे कभी बेवकुप बनी रहती है.. जब मे कहता हूं प्यार करती है मुझसे वो बस नजरे झुकती है.. यार वो नन्ही सी कली मुझको कितना चाहती है.. करती है मुझसे प्यार बेइंतेहा कभी सारी रात ना सोती है.. मेरी जो भी निशानी है उसके पास कितने संभाल के वो रखती है.. यार वो नन्ही सी कली मुझको कितना चाहती है.. अगर होर कोई देखे मुझको यार वो मुंह को फूलती है.. घर से मेरे लिए वो पकवान बना के लाती है.. यार वो नन्ही सी कली मुझको कितना चाहती है.. ©vinni.शायर नन्ही सी लड़की.. #lonely
Shiv gopal awasthi
ऐसा पढ़ना भी क्या पढ़ना,मन की पुस्तक पढ़ न पाए, भले चढ़े हों रोज हिमालय,घर की सीढ़ी चढ़ न पाए। पता चला है बढ़े बहुत हैं,शोहरत भी है खूब कमाई, लेकिन दिशा गलत थी उनकी,सही दिशा में बढ़ न पाए। बाँट रहे थे मृदु मुस्कानें,मेरे हिस्से डाँट लिखी थी, सोच रहा था उनसे लड़ना ,प्रेम विवश हम लड़ न पाए। उनका ये सौभाग्य कहूँ या,अपना ही दुर्भाग्य कहूँ मैं, दोष सभी थे उनके लेकिन,उनके मत्थे मढ़ न पाए। थे शर्मीले हम स्वभाव से,प्रेम पत्र तक लिखे न हमने। चंद्र रश्मियाँ चुगीं हमेशा,सपनें भी हम गढ़ न पाए। कवि-शिव गोपाल अवस्थी ©Shiv gopal awasthi कविता
Shahid0007
Autumn गुलों के रास्ते में, कांटे तो आयेंगे ही, चुभेंगे पावों में,और दिल को दहलाएंगे भी, हो सकता है डर भी लगे,और मन कहे घर लौटने को मगर, ये कांटे ही गुलों तक पहुंचाएंगे भी 🙂 ©Shahid0007 #कविता
paritosh@run
पापा की परियों पर खूब चुटकुले चलते हैं, पर कभी आपने सोचा है बेटियों को अपने ही माता पिता से मिलने वाले प्रेम को इतना glorify क्यो करने की जरूरत पड़ती है। बेटों को क्यो कभी ये साबित नहीं करना पड़ता कि वो अपने माता पिता के कितने दुलारे हैं? जवाब है कि उनको सदियो से ही जन्म से अधिकार और प्यार मिला है। घी का लड्डू टेढो मीठ जिनके लिए कहा गया हो उन्हें अपनी उपयोगिता साबित करने की जरूरत ही क्या है। वह लायक हो तब तो अच्छा है ही, पर यदि वह शराबी, जुआरी, बलात्कारी, हत्यारा, लुटेरा हो तब भी अंत में उसके हाँथ की मुखाग्नि पाकर माता पिता को स्वर्ग मिल जाता है। तमाम ग्रन्थ, व्रत, उपवास, प्रतीक पुत्र होने को अलौकिक और अदभुद सिद्ध करने में जुटे हैं। कुछ माता पिता जो कहते हैं " हम तो लड़का लड़की में कोई भेद नहीं करते" उनसे अगर कोई सम्पति में हिस्सा देने की बात कर दे तो उनकी परम्परा और संस्कृति खतरे में आ जाती है। वो दो बीघा जमीन बेच कर लड़की की शादी तो कर देंगे, लेकिन 1 बीघा बेच कर न उनको पढ़ा पाएंगे, न उनके नाम कर पाएंगे। आज भी बेटियां अपने ही अधिकारों से वंचित हैं तो इसके जिम्मेदार जितना समाज है उतना ही उनके माता पिता भी हैं। ©paritosh@run पापा की परी.