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Vijay Kumar
मां सारदे ने अमूल्य वाणी को संगीत में पिरो दिया हमारे भावो को शब्द देकर हमारी वाणी को स्वच्छ कर दिया आपने ये संगीत ना होता पास तो जींदगी ना होती इतनी खास संत संत नम मां सारदे #sumitra kumari ©Vijay Kumar #सगींत #Mic
Vijay Kumar
जैसे रहती चंद्रमा संग चांदनी है जैसे चलती सूर्य संग किरण है जैसे मिलती सागर संग गंगा है जैसे रहती धरती संग अम्बर है बस ऐसा संग सब के हिस्से में हो करते हैं दूआ कि आ जाये लाख दूख भी तो आप के अधरो कि मूस्कूराहट कभी कम ना हो #Sumitra kumari ©Vijay Kumar #सगं #TakeMeToTheMoon
Pawanjeet $ethi
writer by.... Pawanjeet Sethi समेटे हुए खुद मे आधी धुप आधी छाँव थोड़ी ही दूर है तेरे शहर से मेरा गाँव -- अंजाम ए इशक कितना अच्छा होता अगर पड़ जाते मेरे आगनँ तेरे मेहँदी लगे पावँ ©📖 ,,,Pawanjeet Sethi,,✍️ #zindagikerang तेरे सगं
usha
इस शहर में हमसे बहुत मिलेगें कुछ तो होगा ही अलग हममें जो कुछ हम संग चलेगें... जो तुम्हारे साथ है वो हमेशा साथ ही चलेगा.. कुछ तो होगा ही अलग हममें जो वो भी हम संग चलेगा.. उषा...✍ #कुछ सगं चलो
जयश्री_RAM
कितने दिनों से वे दोनों इस पल का इन्तजार कर रहे थे मगर घर वालों की बन्दिसें इतनी थी कि मुश्किल लगने लगा।एक दिन ऐसा हुआ कि किरन ने दीप को फोन किया कि आज मेरे घर वाले किसी काम से बाहर जा रहे हैं तो जबाव में दीप ने भी कहा कि उसके मम्मी पापा दोनों किसी शादी में शामिल होने जा रहें हैं और रात से पहले उनका घर बापस आना मुश्किल है। अब दोनों ने घर से बाहर मिलने की योजना बनायी,दीप ने अपनी बहन से कहा कि वो अपने दोस्त के पास किसी काम से जा रहा है जल्दी लौट आयेगा।किरन किससे कहती अपने घर की अकेली लड़की थी.ज्यादा सुन्दर नहीं पर नाक नक्श बहुत प्यारा था जिसे उसका सलीके से पहनावा और खूवसूरत किये था। फिलहाल दोनों अपने अपने घर से निकल कर एक निश्चित ठिकाने पर मिले और काफी देर तक यह तय नहीं कर पाये की कहाँ जायें।अंततः वे दोनों एक छोटी सी नदी की तरफ चल दिये और वहाँ पहूँच कर किनारे पर बैठ गये।किरन गौर से पानी की गहराई देखते हुए कहती है जैसा हमारे साथ हो रहा है उससे तो इसी नदी में डुब जाऊं मन कर रहा है।दीप ने तुरन्त किरन के मुँह पर उँगली रखकर कहा -पागल हो यार तुम ....सच ....कुछ दिन में हमारी शादी है ।कुछ देर खामोशी रहती है...फिर किरन दीप के कन्धे पर सिर रखते हुए गहरी सी आह भरती है।दीप उसके बालों को सहँआता है।दूर ढलता हुआ सूरज हर तरफ नारंगी रंग बिखेर रहा था।किरन को बातों बातों में पता ही नहीं चला कब वो दीप की गोद में सिर रखे रेत से खेल रही थी और दीप ने अपनी बाँहों को पीठ पर रखकर गाल टिका रखे थे।पीठ से किरन की गूँजती आवाज बहुत प्यारी लग रही थी।पहली बार दोनों इस तरह से एक दूसरे से मिल रहे थे।दोनों की सगाई को चार माह हो गये मगर घर वालों ने मिलने से सख्त मना किया था बस एक दूसरे से घण्टों बात करते थे।अब जबकि साथ में हैं तो कोई भी बोल नहीं रहा बस इस पल को जी रहा है।एक बोल रहा है तो दूसरा हूँ ...हूँ ....बस। फिर अचानक किरन गीली गीली घास पर पीठ के बल लेट गयी..दीप ने रोका भी कि कपडे़ खराब होंगे लेकिन उसने अनसुना कर दिया और सूरज के डूबने के साथ अंधेरा होने लगा था।किरन दीप की उँगलियों से खेल रही थी और दीप आसमान की ओर देख रहा था...तभी वो भी गीली जमीन पर लेट गया..और दोनों पता नहीं कब तक ऐसे ही पडे़ रहे। राम उनिज मौर्य #सगाई