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devanti devi
तेरी चाहत में तेरी हसरत है मुझे बहुत सताती है तेरी इच्छा पर तेरी हसरत है मुझे बहुत सताती है शुन्य गगन में चपला चमकी बही मन्द पुरबाइ सच मानो मित्र हमें उसी क्षण याद तुम्हारी आई गया हृदय का कोना कोना तक्षण बिरहा कुल हो फुट पड़ी जल की
Vishal Vaid
दिल मेरा आबाद हमेशा रहता है तेरा चेहरा याद हमेशा रहता है आओ करनी है तुमसे बस वो बातें लब पे जिन का स्वाद हमेशा रहता है तुम से मिलकर खुल जाते है पंख मेरे कैदी फिर आजाद हमेशा रहता है घर के कोने कोने बिखरी तन्हाई हर चप्पा नाशाद हमेशा रहता है जिस पर तेरी एक नज़र पड़ जाती है बंदा वो पुरबाद हमेशा रहता है बातों में खामोशी होती है अक्सर चुप में भी संवाद हमेशा रहता है चांद से अपने शब भर बातें करने को छत पे इक शबजाद हमेशा रहता है और गुलाबी हो जाता है शह्र मिरा तुझ से जयपुर शाद हमेशा रहता है 2*11 नाशाद=== उदास पुरबाद ===हवा से भरा, अभिमानी शबज़ाद=== रात को जागने वाला ये गज़ल इसलिए जरुरी थी की खुद ही ऐसा न लगे की पिछली गजल के बा
Sonia Miglani
इतनी मस्त चली पुरबाई। उसपर याद पिया की आई। अँगड़ाई कुछ महक गई तो, कुछ मत कहना कुछ मत कहना------ नई नवेली साँस सुहागिन पग धरती जैसे गजगामिन जागी ऐसी प्यास अभागिन पनघट जान लगी पनिहारिन ऐसे में सर से गर चुनरी सरक गई तो कुछ मत कहना यौवन तक ले आया सावन यौवन में पुलकित स्पंदन देह हुई है कुन्दन चन्दन सारी सृष्टि में अभिनन्दन ऐसे में दर्पण की दृष्टि बहक गई तो कुछ मत कहना गीत ग़ज़ल या कोई रुबाई तुलसी की अदभुत चौपाई मैं जब शब्द शब्द इतराई कलियों ने पहिनी तरुणाई तरुणाई में कोई कली गर चटक गई तो कुछ मत कहना माटी की है कौन सहेली कितनों की संगत है झेली फिर भी इतनी रही अकेली माटी ही माटी से खेली पर इसकी तन्हाई कहीं से दरक गई तो कुछ मत कहना ख़ामोशी सन्नाटे चुपचुप खिड़की सब दरवाज़े चुपचुप नैनों के अंगारे चुपचुप गीत मिलन के सारे चुपचुप ऐसे में साँसों की सरगम दहक गई तो कुछ मत कहना ऐसा पहली बार हुआ है पहला पहला प्यार हुआ है तन्हाई पर बार हुआ है जब सोलह सिंगार हुआ है ऐसे में सोनम की चूड़ी खनक गई तो कुछ मत कहना इतनी मस्त चली पुरबाई। उसपर याद पिया की आई। अँगड़ाई कुछ महक गई तो, कुछ मत कहना कुछ मत कहना------ नई नवेली साँस सुहागिन पग धरती जैसे
Sahil Bhardwaj
अरमानों को ज़िन्दा और आरज़ूओं को जवाँ कर लूँ तुम्हारे ये शर्मीले नज़र गर इजाज़त दे तो कुछ गुस्ताख़ियाँ मैं कर लूँ... फिज़ा आयी है बहार लेकर कि फूलों से कुछ गुफ्तगूं कर लूँ तुम इजाज़त दो अगर तो तुमसे भी अपना दर्द-ए-दिल बयाँ मैं कर लूँ... हज़ारों ख्वाहिशें चुटकियाँ ले रही है दिल में ज़रा इनको बहलाने का इंतजाम कर लूँ हया तुम्हारी इजाज़त दे अगर तो तुम्हारे साथ ही कुछ नादानियां मैं कर लूँ... आया है सावन लेकर उमरती रंगीं घटाएं रुको कि थोड़ी बेबाकियां मैं कर लूँ चलती पुरबाई चाहत बहा रही है इजाज़त हो तो मैं भी हाल-ए-दिल अपना बयाँ कर लूँ... किसे मालूम किस वक़्त क़यामत ढह जाये तुझ संग आबाद आशियाँ मैं कर लूँ हसरतें तो बहुत है मगर मौत अगर फ़ुर्सत दे इक बार और ज़िन्दा तुमसे अपनी मोहब्बत मैं कर लूँ... तलब मेरी तुझको ले कर और भी बढ़ गई है आ मेरे इतने करीब कि तुझको हासिल मैं कर लूँ मुझे दोनों जहाँ में एक तू मिल जाएँ गर तो अपनी हसरतें सारी मुकम्मल मैं कर लूँ... #Pehli_Mulakkat अरमानों को ज़िन्दा और आरज़ूओं को जवाँ कर लूँ तुम्हारे ये शर्मीले नज़र गर इजाज़त दे तो कुछ गुस्ताख़ियाँ मैं कर लूँ...
Vikas Sharma Shivaaya'
🙏सुंदरकांड 🙏 दोहा – 24 राक्षस हनुमानजी की पूंछ में आग लगाने का सुझाव देते है सब लोगो ने सोच कर रावणसे कहा कि वानर का ममत्व पूंछ पर बहुत होता है इसलिए इसकी पूंछ में तेल से भीगे हुए कपडे लपेट कर आग लगा दो ॥24॥ श्री राम, जय राम, जय जय राम हनुमानजी की पूँछ में राक्षसों द्वारा आग लगाने का प्रसंग रावण हनुमान जी की पूँछ में आग लगाने का हुक्म देता है पूँछहीन बानर तहँ जाइहि। तब सठ निज नाथहि लइ आइहि॥ जिन्ह कै कीन्हसि बहुत बड़ाई। देखेउँ मैं तिन्ह कै प्रभुताई॥1॥ जब यह वानर पूंछ हीन होकर (बिना पूँछ का होकर) अपने मालिक के पास जायेगा,तब अपने स्वामी को यह ले आएगा॥इस वानर ने जिसकी अतुलित बढाई की है,भला उसकी प्रभुता को मैं देखूं तो सही कि वह कैसा है?॥ राक्षस हनुमानजी की पूँछ में आग लगाने की तैयारी करते है बचन सुनत कपि मन मुसुकाना। भइ सहाय सारद मैं जाना॥ जातुधान सुनि रावन बचना। लागे रचैं मूढ़ सोइ रचना॥2॥ रावन के ये वचन सुनकर हनुमानजी मन में मुस्कुराए और मन में सोचने लगे कि मैंने जान लिया है कि इस समय सरस्वती सहाय हुई है क्योंकि इसके मुंह से रामचन्द्रजी के आने का समाचार स्वयं निकल गया॥तुलसीदास जी कहते है कि वे राक्षस लोग रावण के वचन सुनकर वही तैयारी करने लगे अर्थात तेल से भिगो भिगोकर कपडे उनकी पूंछ में लपेटने लगे॥ हनुमानजी पूँछ लम्बी बढ़ा देते है रहा न नगर बसन घृत तेला। बाढ़ी पूँछ कीन्ह कपि खेला॥ कौतुक कहँ आए पुरबासी। मारहिं चरन करहिं बहु हाँसी॥3॥ उस समय हनुमान जी ने ऐसा खेल किया कि अपनी पूंछ इतनी लंबी बढ़ा दी कि जिसको लपेटने के लिये नगरी में कपडा, घी व तेल कुछ भी बाकी न रहा॥नगर के जो लोग तमाशा देखने को वहां आये थे,वे सब बहुत हँसते हैं॥ राक्षस हनुमानजी की पूँछ में आग लगा देते है बाजहिं ढोल देहिं सब तारी। नगर फेरि पुनि पूँछ प्रजारी॥ पावक जरत देखि हनुमंता। भयउ परम लघु रुप तुरंता॥4॥ अनेक ढोल बज रहे हे, सब लोग ताली दे रहे हैं,इस तरह हनुमानजी को नगरी में सर्वत्र फिरा कर फिर उनकी पूंछमें आग लगा दी॥हनुमानजी ने जब पूंछ में आग जलती देखी तब उन्होने तुरंत बहुत छोटा स्वरूप धारण कर लिया॥ हनुमानजी छोटा रूप धरकर बंधन से छूट जाते है निबुकि चढ़ेउ कपि कनक अटारीं। भई सभीत निसाचर नारीं॥5॥ और बंधन से निकल कर पीछे सोने की अटारियों पर चढ़ गए,जिसको देखते ही तमाम राक्षसों की स्त्रीयां भयभीत हो गयी॥ आगे शनिवार को ...., विष्णु सहस्रनाम (एक हजार नाम) आज 933 से 944 नाम 933 अनन्तश्रीः जिनकी श्री अपरिमित है 934 जितमन्युः जिन्होंने मन्यु अर्थात क्रोध को जीता है 935 भयापहः पुरुषों का संस्कारजन्य भय नष्ट करने वाले हैं 936 चतुरश्रः न्याययुक्त 937 गभीरात्मा जिनका मन गंभीर है 938 विदिशः जो विविध प्रकार के फल देते हैं 939 व्यादिशः इन्द्रादि को विविध प्रकार की आज्ञा देने वाले हैं 940 दिशः सबको उनके कर्मों का फल देने वाले हैं 941 अनादिः जिनका कोई आदि नहीं है 942 भूर्भूवः भूमि के भी आधार है 943 लक्ष्मीः पृथ्वी की लक्ष्मी अर्थात शोभा हैं 944 सुवीरः जो विविध प्रकार से सुन्दर स्फुरण करते हैं 🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' 🙏सुंदरकांड 🙏 दोहा – 24 राक्षस हनुमानजी की पूंछ में आग लगाने का सुझाव देते है सब लोगो ने सोच कर रावणसे कहा कि वानर का ममत्व पूंछ पर बहुत होता