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Atul Upadhyay
जब स्याह अंधेरा छा जाए,एक दीप जलाना आँगन में। जब दीयों का मौसम आ जाए, एक दीप जलाना आँगन में। जब सारी आस निराश करें, खुशियाँ सारी अवकाश करें, फिर भी ख़ुद पर विश्वास करें, बस हार न जाना जीवन में। एक दीप जलाना आँगन में। ये देश आज है रुका हुआ, हर हृदय स्वयं में बुझा हुआ, इन नन्हे दीप प्रतीकों से, है अलख जगाना जन-जन में। एक दीप जलाना आँगन में। अपने हिस्से के प्रकाश को, बाँटो वंचित और हताश को, कोई भूखा-प्यासा-थका पथिक,कहीं भटक न जाए विपथन में। एक दीप जलाना आँगन में। माना कि हालत गड़बड़ है, कुछ दिनों का ही तो पतझड़ है। सहयोग अगर अनुकूल रहा, फिर फूल खिलेंगे उपवन में। एक दीप जलाना आँगन में। -अतुल दीपदान
दीपदान
read moreSaurabh Sisodia
क्या खूबसूरत पल था, लेकिन क्या करें कल था
क्या खूबसूरत पल था, लेकिन क्या करें कल था #nojotophoto #विचार
read moreSandhya Rani Das
क्या बचपन था जो भी ख्वाहिश करते थे एक बार रो देने से सबकुछ मिल जाता था , अब बड़े हो गये है हर ख्वाहिश को आपने अंदर मार के हँसना सीख लेते हैं । #क्या बचपन था #
#क्या बचपन था #
read moreVickram
मालूम था हमको कि तुम से मिलना था,,,,,,, पर खुद भी नहीं जानते थे कि काम भी क्या था,,,,,,,?? ©Vickram काम क्या था,,,,,
काम क्या था,,,,, #शायरी
read moreOmbir Kajal
वो क्या समझे मुझे, और मैं क्या था, वो ना समझे मुझे, कि मैं क्या था। वो रिश्ते नातों में, कम ही विश्वास करती थी, वो उसकी नजर में पत्थर,जो मेरी नजर में खुदा था। उसकी सोच मॉर्डन, तो मेरी थोड़ी पुरानी थी, वो उड़ना चाहती थी, और मैं जमीन से जुड़ा था। उसके लिए मिलना बिछड़ना, आम बात थी, और मैं आगे बढ़कर, कभी वापिस नहीं मुड़ा था। वो शहर की हाई-फाई, और मैं गांव का गवांर रहा, बेशक मैं उससे ज्यादा ही, पढ़ा लिखा था। मैं थोड़ा जज्बाती और वह ज्यादा प्रैक्टिकल थी, "ओमबीर काजल" एहसासों का, उसे नहीं पता था। ©Ombir Kajal मैं क्या था
मैं क्या था #Shayari
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