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Arora PR
अरमान हमेशा रहते हैँ भरे भरे जबकि दिल के जख्म रहते हरे हरे शराफ़त उनकी देख हम रहते हैँ हमेशा डरे डरे इसीलिए हम रहते हैँ उनसे परे परे हमारे अधूरे हाफ्ते लफ़्ज़ कोई समझ नहीं पाता लेकिन हम जो कुछ कहते वो लफ़्ज़ होते खरे खरे ©Arora PR खरे खरे
Arun Sanadya
एक बार पढ़े जब कोई दिल के बहुत नज़दीक आकर ऐसा महसूस हो की वो जाना चाहता है और नजरअंदाज करता है तो फिर क्यों पकड़ो उसे जाने दो, जीने दो उसे धीरे धीरे..... बिना उसके महसूस हुये उससे दूर हो क्योंकी उसको दुःख क्यों हो .....और पता क्यों हो... "उसका क्या बिगड़ेगा वो बेमुराबत होगी....."" मैं तुझसे दूर होकर भी तेरा क्या ले जाऊँगा खुद में टूट कर अन्दर ही बिखर जाऊँगा। तू हमेशां की तरह खुश रहेगी आँगन में किसी के नई कली सी खिलेंगी किसी के दामन में फिर नई खुश्बू सी घुलेगी मैं कभी देख भी लूँगा तो सहम जाऊँगा पुरानी यादों को सोच कर फिर बिखर जाऊँगा हिम्मत नही है कुछ कहने की.... मुझे ऐसे ही नजरअंदाज किया कर मैं दूर तुझसे यूँ ही रफ्ता रफ्ता हो जाऊँगा तेरे जीवन से खुद ही अपने सारे हर्फ मिटा जाऊँगा तेरे सफ़हे साफ सुथरे तुझको लौटा जाऊँगा मैं स्वयं ही तुझे अब छोड़ जाऊँगा मैं खुद ही तुझे....... अरूण सनाढय // यादों की गुल्लक से भाग 2// 16/06/20 अनुभव खरे खरे
Anamika Gupta
ग़ज़ल मुहब्बत का' होगा असर धीरे धीरे। ज़माने को' होगी ख़बर धीरे धीरे॥ जो' करके गए थे मुहब्बत का' वादा, वो' होते गये बेख़बर धीरे धीरे। सनम जब से तुम बेवफा हुए हो , मुहब्बत के' सूखे शजर धीरे धीरे। तरन्नुम मे' मैंने ग़ज़ल जब पढ़ी तो , हुई मस्त महफ़िल, नगर धीरे धीरे। जिधर देखिए अब दरिंदे खड़े हैं , बशर हो रहा जानवर धीरे धीरे । सभी के लिए अनु दुआ माँगती है, मिले सबको शुहरत मगर धीरे धीरे। --अनामिका "अनु" गया , बिहार शायरी की ग़ज़ल
Sudha Tripathi
आप सभी को आज रात 9:00 बजे आमंत्रित करती हूं पहली बार औपचारिक रूप से nojoto पे live show में आ रही हूँ ©Sudha Tripathi ग़ज़ल की शाम
Anamika Gupta
किसी को किसी की ज़रूरत नहीं है। बशर को बशर से मुहब्बत नहीं है। तुम्हीं पे सभी कुछ ऐ जानम है वारा कहूँ कैसे तुमसे कि उल्फ़त नहीं है। हुई है मुहब्बत तुम्हीं से सजन रे कहूँ तुझसे कैसे कि हिम्मत नहीं है। बहुत ज्ञान बांचा रहम भी करो अब मुझे ज्ञान की अब ज़रूरत नहीं है। दरिंदे हुए 'अनु' बशर आज देखो नजर में किसी की शराफ़त नहीं है। -- अनामिका 'अनु' गयाजी शायरी की ग़ज़ल
Satish Deshmukh
खरे काय खोटे !.... कुणाला कशाचा कुठे ताल आहे ? हवा ही कुणाची तसी चाल आहे ! जरी लोक म्हणती त्रिकोणी धरा ही खरे माणतो, ती कुठे गोल आहे ! खरे काय खोटे पहातो न आता मला फायद्याचे इथे मोल आहे ! जिथे स्वार्थ आहे तिथे लाळ घोटू तणाला जसी बेरकी खाल आहे ! चहाडी लबाडी असे रोज माझी मनी संयमाचा कुठे तोल आहे ! जळी पाय माझे असू द्या जरासे जमानाच सगळा तळी खोल आहे ! सतीश देशमुख शेंबाळपिंप्री ता.पुसद जि.यवतमाळ ©Satish Deshmukh खरे #realization