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Mujahid Khan

Mujahid Khan #alone

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Alone  तेरे जैसा कोई मिला ही नहीं
कैसे मिलता कहीं पे था ही नहीं

घर के मलबे से घर बना ही नहीं
ज़लज़ले का असर गया ही नहीं

मुझ पे हो कर गुज़र गई दुनिया
मैं तिरी राह से हटा ही नहीं

कल से मसरूफ़-ए-ख़ैरियत मैं हूं
शेर ताज़ा कोई हुआ ही नहीं

रात भी हम ने ही सदारत की
बज़्म में और कोई था ही नहीं

यार तुम को कहां कहां ढूंढ़ा
जाओ तुम से मैं बोलता ही नहीं

याद है जो उसी को याद करो
हिज्र की दूसरी दवा ही नहीं

©Mujahid Khan Mujahid Khan 

#alone

Mujahid Khan

Mujahid Khan #saynotosmoking

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उस के पहलू से लग के चलते हैं
हम कहीं टालने से टलते हैं

बंद है मय-कदों के दरवाज़े
हम तो बस यूँही चल निकलते हैं

मैं उसी तरह तो बहलता हूँ
और सब जिस तरह बहलते हैं

वो है जान अब हर एक महफ़िल की
हम भी अब घर से कम निकलते हैं

क्या तकल्लुफ़ करें ये कहने में
जो भी ख़ुश है हम उस से जलते हैं

है उसे दूर का सफ़र दर-पेश
हम सँभाले नहीं सँभलते हैं

शाम फ़ुर्क़त की लहलहा उठी
वो हवा है कि ज़ख़्म भरते हैं

है अजब फ़ैसले का सहरा भी
चल न पड़िए तो पाँव जलते हैं

हो रहा हूँ मैं किस तरह बर्बाद
देखने वाले हाथ मलते हैं

तुम बनो रंग तुम बनो ख़ुशबू
हम तो अपने सुख़न में ढलते हैं

©Mujahid Khan Mujahid Khan 
#saynotosmoking

Mujahid Khan

Mujahid Khan #Drops

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दरें नूरीं से ज़मानें को शिफा मिलती हैं 
दर्द वाला कोई आये तो दवा मिलती हैं 
और उसको साए की जरूरत नही सैराओं में
जिसको दिन रात बुज़ुर्गो की दुआ मिलती हैं

©Mujahid Khan Mujahid Khan 

#Drops

Mujahid Khan

Mujahid Khan #WalkingInWoods

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जख़्म को फूल तो सरसर को सबा कहते हैं
जाने क्या दौर है, क्या लोग हैं, क्या कहते हैं

जब तलक दूर है तो तेरी परस्तिश कर लें
हम जिसे छू न सके उसको ख़ुदा कहते हैं

©Mujahid Khan Mujahid Khan 

#WalkingInWoods

Mujahid Khan

Mujahid Khan #dearzindgi

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 बेवफा है तो क्या, मत कहो बुरा उसको

कि जो हुआ सो हुआ, खुश रखे खुदा उसको

नजर ना आए तो उसकी तलाश में रहना

कहीं मिले तो पलट कर ना देखना उसको

वो सादा खून था जमाने के खम समझता क्या

हवा के साथ चला, ले उड़ी हवा उसको

वो अपने बारे में कितना है खुशगुमा देखो

जब उसको मैं भी ना देखूं तो देखना उसको

वो बेवफा है तो क्या, मत कहो बुरा उसको

कि जो हुआ सो हुआ, खुश रखे खुदा उसको।

©Mujahid Khan Mujahid Khan

#dearzindgi

Mujahid Khan

Mujahid Khan #vacation

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मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग 
मैं ने समझा था कि तू है तो दरख़्शाँ है हयात 
तेरा ग़म है तो ग़म-ए-दहर का झगड़ा क्या है 
तेरी सूरत से है आलम में बहारों को सबात 
तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है 
तू जो मिल जाए तो तक़दीर निगूँ हो जाए 
यूँ न था मैं ने फ़क़त चाहा था यूँ हो जाए 
और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा 
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा 

अन-गिनत सदियों के तारीक बहीमाना तिलिस्म 
रेशम ओ अतलस ओ कमख़ाब में बुनवाए हुए 
जा-ब-जा बिकते हुए कूचा-ओ-बाज़ार में जिस्म 
ख़ाक में लुथड़े हुए ख़ून में नहलाए हुए 

जिस्म निकले हुए अमराज़ के तन्नूरों से 
पीप बहती हुई गलते हुए नासूरों से 
लौट जाती है उधर को भी नज़र क्या कीजे 
अब भी दिलकश है तिरा हुस्न मगर क्या कीजे 

और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा 
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा 
मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग

©Mujahid Khan Mujahid Khan

#vacation

Mujahid Khan

Mujahid Khan #InternationalTeaDay

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हद से ज्यादा भी प्यार मत करना
दिल हर एक पे निसार मत करना

क्या खबर किस जगह पे रुक जाये
सास का एतबार मत करना

आईने की नज़र न लग जाये
इस तरह से श्रृंगार मत करना

तीर तेरी तरफ ही आएगा
तू हवा में शिकार मत करना

डूब जाने का जिसमे खतरा है
ऐसे दरिया को पार मत करना

देख तौबा का दर खुला है अभी
कल का तू इंतज़ार मत करना

मुझको खंज़र ने ये कहाँ है एजाज़
तू अँधेरे में वार मत करना

 - कमर एजाज़

©Mujahid Khan Mujahid Khan

#InternationalTeaDay

Mujahid Khan

Mujahid Khan #Morning

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मर चुका है दिल मगर ज़िंदा हूं मैं
जहर जैसी कुछ दवाएं चाहिए ।।
....................
पूछते है आप !आप अच्छे तो है
हां ! मैं अच्छा हूं दुआएं चाहिए ।।

©Mujahid Khan Mujahid Khan 
#Morning

Mujahid Khan

Mujahid Khan #mujahidkhan

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हर पल ध्यान मे बस ने वाले लोग अफशानें हो जाते है 
आँखें बुढी हो जाती है खाब पुरानें हो जाते है 

सारी बात तअल्लुक वाली जज्बों की सच्चाई तक है 
मैल दिलों मे आ जाये तो घर बीरानें हो जाते है 

झोपड़ीयों मे हर एक तल्ख़ी पैदा होते मिल जाती है 
इसी लिए तो वक्त से पहले तिफ्ल सियाने हो जाते है 

दुनिया के इस सोर ने अमज़द क्या क्या हम से छीन लिया है 
खुद से बात किये भी अब तो कई ज़मानें हो जाते है

©Mujahid Khan Mujahid Khan 

#MujahidKhan

therapstarraja

Mohd Mujahid Khan #शायरी

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Mahfel me chal rhi thi meri
 mot ki tayari
Mahfel me chal rhi thi meri
mot ki tayari.
Me puche to bole wa Badi Lambi umar h tumhari Mohd Mujahid Khan
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