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Swapnil Suresh Bhovad
प्रेम फक्त तेव्हाच होतो... जेव्हा दोघांच्या आयुष्यात दोघेच उरलेले असतात. बाकी वेळी फक्त काळजी घेतली जाते. #स्वप्नाळू ©Swapnil Suresh Bhovad #retro
soniya singh
Akelapan 🍁 kuch waqt, kuch pal, kuch din, apne liye bhi nikalna jaruri hota hai, akelapan apko wo sikh deta hai, jis se aap anjaan the, akelapan wo sikhata hai, jub aap khudse rubaru hote hai, tub es 1.40cr duniya ki bhir mai, satye asatye, jhuth fareb, ki ye duniya se hatkar jub khudko akela payenge yakin mano sukun he payenge🌿 ©soniya singh #retro
Pawan Dvivedi
इससे पहले के तुझे और सहारा ना मिले मैं तेरे साथ हुँ जब तक मेरे जैसा ना मिले मुझको इक रंग अता कर ताकि पहचान रहे कलकला ये न हो तुझको मेरा चेहरा न मिले लोग कहते है के हम लोग बुरे आदमी है लोग भी ऐसे जिन्होने हमे देखा ना मिले. बस यही कह के उसे मैंने खुदा को सौंपा इत्तेफाकन कहीं मिल जाये तो रोता ना मिले दुवा है के वहाँ आये जहाँ बैठते थे और ‘पवन’ वहाँ आपको बैठा ना मिले ©Pawan Dvivedi #retro
सागर मंथन
शौक, पाल रखें हों राजाओं के जिसने वो मुफलिसी में रोया नहीं करते। ©सागर मंथन #retro
The Aghori
পেরিয়েছি অনেকটা পথ একাকী , পেরিয়ে যাবো যে টুকু আছে বাকী । সাথে পায়নি কাউকে তখনো দিলে দিও তুমিও শেষে ফাঁকি । ©The Aghori #retro
गीतेय...
महफ़िल-ए-दौर की हरारत नहीं कामिल गीतेय बस उठ कर चल देना ही मुनासिब मुझे अब लोग रुढ़ी समझे तो यही सही... सिगरेट है,राख है, धुआं है शामिल जब कोई नही तो यही सही... ©गीतेय... #retro
GK. Narayana
చెరగని ముద్ర " మన ఇంట్లో వాళ్లకి మన చుట్టూ ఉండే వాళ్లకి మన బంధుమిత్రులకి మనం నచ్చకపోవచ్చు. ఐనా ఏం పరువాలేదు. మనం ఎంచుకున్న దారి మంచిదైతే ప్రపంచమే స్వాగతిస్తుంది ఆదరిస్తుంది ఆభిమానిస్తుంది....!! ✒...జి.కె.నారాయణ (లక్ష్మిశ్రీ) ©GK. Narayana #retro
पूर्वार्थ
शब्द! बेमोल से ये आखर! दर्द में तो ये हलक से नहीं फूटते और खुशियों में ये सारे सावन भादों तक गा देते हैं। ना जाने कितनी सभ्यताएं इनके साथ सिमट गयीं... समाँ गयीं मिट्टी के नीचे पर ये कभी कर्तव्य विमुख नहीं हुए। ये शब्द...शब्द 'शब्द' ही बने रहे...जब इन्होंने प्रियतम को पाया तब भी। और जब ये सहस्त्रों की आवाज बने तब भी। ये महाकाल द्वारा रचित प्रथम का स्थान ले पाए... जब इन्होंने स्वयं का परिचय ॐ कहकर दिया और बदले में इन्हें सौभाग्य प्राप्त हुआ इस संपूर्ण ब्रह्मांड की आदिध्वनि बनने का। हिमालय की तरती घाटियों में जहाँ मेरे पुरखे साँसों को सलाम करते रहे वहाँ भी ये शब्द शब्द ही रहे, एक छोटी सी प्राप्ति यही रही कि बस इनको 'वचन' की संज्ञा दी गयी और इन्हीं तरती घाटियों से निकलती पवित्र सरयू को साक्षी बनाकर जब ये इक्ष्वाकु वंश के प्रतापी राजा दशरथ के मुख को छूकर निकले तो स्वयं उसके पुत्र राम ने ही कह दिया...कि "प्राण जाए पर वचन ना जाहीं"🧡। निरंतर यात्रा के अभ्यासी ये शब्द रुके कब थे... ये इन्द्रप्रस्थ जा पहुंचे,कैकयी की तरह इन्होंने पांचाली को चुना और इस बार ये सौ भाईयों को प्रेम का बोध देने में असमर्थ रहे। ...क्रोध और नफरत के उच्चतम स्तर की व्याख्या पूर्ण सी थी परंतु इन्होंने इस युग के रंगरेज की नजरों में देखा और फिर ये यहाँ भी समां गए। रघुकुल में जिन भाईयों के अद्वितीय प्रेम का स्थान महाभारत काल में जिन भाइयों की कुदृष्टि,पीड़ा ने ले रखा था उसे ये गांडीवधारी अर्जुन विश्वविदित नहीं करना चाहता था परंतु द्वारिका के रंगरेज ने जो ठान लिया वो किसके रोके रुका है... फिर क्या था यही शब्द बने थे गीता और असंभव में सम्भव को पनाह दी गयी। अन्यथा, भाइयों को इस जगत के स्वामी ने कम से कम युद्ध जैसे घिनौने खेल के लिए तो नहीं रचा था। और इधर...। युगों पहले जिस धरती को छोड़ सब के सब वन चले गए। ...राजा,राजा की जानकी,राजा की प्रजा,राजा के भाई...सब के सब। उसी धरती के लिए सब के सब यहाँ मरे जा रहे थे। ...ये धरती रोती ना,तो क्या ना करती भला। ....और शब्द तो खुद मौन धारण किए थे। धरती व्याकुल सी शब्दों को गहती रही... हाये!ये शब्द ही हैं जो... बदलाव नहीं बस स्वीकार करते हैं जो जैसा है उसे उसी रूप में" ©पूर्वार्थ #retro
Varun Khare
maine to tere wafa se rishta banaya hai, chand par basera chunvaya jai, teri chunar se khicha aata hu, chalte chalte aahista se ruk jata hu. ©Varun Khare #retro
Anil Kumar Baghpat Up
शतरंज के खेल का ढाई चाल वाला मोहरा जिंदगी की बिसात पर अपना बनके दौड़ा ©Anil Kumar Baghpat Up #retro