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गिरिश थपलियाल
खामोशी और दस्तक
पुरस्कार का महत्व पुरस्कृत करने वाले हाथों और स्थान से सदैव बढ़ जाता है। शौर्य स्मारक का मंच एक पावन स्थल एवं लेफ्टिनेंट कर्नल मनोज सिन्हा जी जैसे रियल हिरो के हाथों पुरस्कृत होना गौरवशाली क्षण। ©खामोशी और दस्तक #Nojoto छः वर्ष की आयु से स्केटींग करती ये बच्ची ,हर मौसम में सुबह पांच बजे से प्रैक्टिस करती,स्कूल और स्केटिंग में सामंजस्य रखते हुए ।60
Mili Saha
// आईस स्केटिंग // आईस स्केटिंग का इतिहास लगभग, है चार हजार वर्ष पुराना, तब मकसद था इसका, सर्दियों की यात्रा दौरान ऊर्जा बचाना। स्केटिंग ने पाया जब नुकीले किनारों वाले स्टील प्लेट का साथ, तब उभरकर आया ये सामने हुई असली स्केटिंग की शुरुआत। आकार निर्माण एवं विवरण में इसके जरूर आई है विभिन्नता, किन्तु इसका मालिक निर्माण काफी हद तक एक सा ही रहा। स्टील के बने नुकीले आइस स्केट्स गति में करते थे सहायता, सभी वर्ग लोगों के लिए आइस स्केटिंग उचित था माना जाता। डच स्वर्ण युग चित्रकारों की तस्वीरों से ज़ाहिर होती यह बात, सांग राजवंश के दौरान चीन में होता था इसका पूर्ण अभ्यास। किंग राजवंश के शासक परिवार बीच भी इसकी लोकप्रियता, आइस स्केटिंग पार्टियों का आयोजन भी तब बढ़चढ़कर होता। दर्शाती सौलह सौ ग्यारह की कला की राष्ट्रीय गैलरी की पेंटिंग, एडम वैन ब्रीन ज़मीं हुई अम्स्टेल नदी पर भी होती थी स्केटिंग। समय के साथ साथ आइस स्केटिंग क्लब का होता गया गठन, आइस स्केटिंग खेल सभी लोगों के लिए बनता गया मनोरंजन। आइस स्केटिंग से जुड़े औपचारिक खेल अब आने लगे सामने, आइस हॉकी, बैंडी, रिंगबॉल जैसे खेल, लोगों को लगे लुभाने। ©Mili Saha आईस स्केटिंग #nojotohindi #Trending #poem #sahamili #nojotophoto #History #kavita
MANJEET SINGH THAKRAL
AJAY NAYAK
माँ बदन को ढककर चीथड़ों से सूट बूट का आदमी बना दिया एक गज जमीं बेटे को मिल सके डोम को आखिरी चिर दे दिया। कोई उस मूरत को मां बुलाए, तो कोई उसे बुलाए माई नाम से अलग अलग जबान, अलग अलग नाम फिर भी उसकी एक ही पहचान। बात जब जब ख़ुद पर आई पचा लिया सारे दुःख दर्द बात जब जब आई बच्चों की लड़ गयी अपने ही सुहाग से । थोड़ा भी जान नहीं है शरीर में इस पड़ाव में पैरों ने भी धोखा दे दिया फिर भी कूद पड़ी पलंग से माँ कहकर बच्चों ने जो पुकार लिया । - अjay नायक ‘वशिष्ठ’ ©AJAY NAYAK #motherlove माँ बदन को ढककर चीथड़ों से सूट बूट का आदमी बना दिया एक गज जमीं बेटे को मिल सके डोम को आखिरी चिर दे दिया। कोई उस मूरत को मां