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बी.सोनवणे
अरे सांग कसे निभवू रे देवा जरा वाटू दे माणूसकीचा हेवा।। तुझ्यावरी आहेना रे विसंबूनी कणव का येईना तुज अजूनी।। नको ज्याला हवे तसे रे देतोय गरजवंताला असाच रे ठेवतोय।। लोभी अन् स्वार्थ्यास प्रसन्नतोस प्रामाणिकास हिनवून तरसवतोस।। तुचं सकलांचा निर्माल्य् विधाता सजीवसृष्टी अन् नियतीचा दाता।। महाराष्ट्राचा कवी बी. सोनवणे ©बी.सोनवणे अरे सांग कसे निभवू रे देवा जरा वाटू दे माणूसकीचा हेवा।। तुझ्यावरी आहेना रे विसंबूनी कणव का येईना तुज अजूनी।। नको ज्याला हवे तसे रे देत
The Golden Bird "PP"
ओउम् ।। माघे मासे महादेव: योदास्यति घृतकम्बलम । स भुक्त्वा सकलानभोगान अन्तेमोक्षं प्राप्यति ॥ 🌞सूर्य देव के उत्तरायण होने पर भारतवर्ष के उज
Rakesh Saklani
राकेश सकलानी जिला प्रभारी बरेली युवा हिंदू वाहिनी मुश्किलें जरुर है, मगर ठहरा नही हूं मैं मंज़िल से जरा कह दो, अभी पहुंचा नही हूं मैं कदमो को बांध न पाएंगी, मुसीबत कि जंजीरें, रास्तों से जरा
Vibhor VashishthaVs
Meri Diary #Vs❤❤ नमामि देवं सकलार्थदं तं सुवर्णवर्णं भुजगोपवीतम्ं। गजाननं भास्करमेकदन्तं लम्बोदरं वारिभावसनं च॥ भावार्थ- मैं उन भगवान् गजानन की वन्दना करता हूं, जो समस्त कामनाओं को पूर्ण करने वाले हैं, सुवर्ण तथा सूर्य के समान देदीप्यमान कान्ति से चमक रहे हैं। वे सर्पका यज्ञोपवीत धारण करते हैं, एकदन्त हैं, लम्बोदर हैं तथा कमल के आसनपर विराजमान हैं। समस्त विश्व के प्राणियों एवं श्रद्धालुओं को पावन पर्व 'श्री गणेश चतुर्थी' की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं...! प्रथम पूज्य गौरी नंदन,विघ्नहर्ता, मंगलकर्ता, भगवान श्री गणेश से प्रार्थना है कि सबको सुख-समृद्धि तथा आरोग्यता का आशीर्वाद प्रदान करें..l ✍️Vibhor Vashishstha Vs Meri Diary #Vs❤❤ नमामि देवं सकलार्थदं तं सुवर्णवर्णं भुजगोपवीतम्ं। गजाननं भास्करमेकदन्तं लम्बोदरं वारिभावसनं च॥ भावार्थ- मैं उन भगवान् गजान
Shaarang Deepak
Vikas Sharma Shivaaya'
*ॐ नमों भगवते सुदर्शन वासुदेवाय , धन्वंतराय अमृतकलश हस्ताय , सकला भय विनाशाय , सर्व रोग निवारणाय , त्रिलोक पठाय, त्रिलोक लोकनिथाये , ॐ श्री महाविष्णु स्वरूपा, ॐ श्री श्रीॐ औषधा चक्र नारायण स्वहा !!* देव गुरु बृहस्पति गायत्री मंत्र: -ॐ गुरुदेवाय विद्महे परब्रह्माय धीमहि तन्नो गुरु: प्रचोदयात || -ॐ वृषभध्वजाय विद्महे करुनीहस्ताय धीमहि तन्नो गुरु: प्रचोदयात || -ॐ अन्गिर्साय विद्महे दिव्यदेहाय धीमहि तन्नो जीव: प्रचोदयात् || विष्णु सहस्रनाम(एक हजार नाम) -प्रतिदिन11 नाम -आज-1 से 11:- 1 विश्वम् : जो स्वयं में ब्रह्मांड हो जो हर जगह विद्यमान हो 2 विष्णुः जो हर जगह विद्यमान हो 3 वषट्कारः जिसका यज्ञ और आहुतियों के समय आवाहन किया जाता हो 4 भूतभव्यभवत्प्रभुः भूत, वर्तमान और भविष्य का स्वामी 5 भूतकृत् : सब जीवों का निर्माता 6 भूतभृत् : सब जीवों का पालनकर्ता 7 भावः भावना 8 भूतात्मा: सब जीवों का परमात्मा 9 भूतभावनःसब जीवों उत्पत्ति और पालना का आधार 10 पूतात्मा: अत्यंत पवित्र सुगंधियों वाला 11 परमात्मा: परम आत्मा 🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' *ॐ नमों भगवते सुदर्शन वासुदेवाय , धन्वंतराय अमृतकलश हस्ताय , सकला भय विनाशाय , सर्व रोग निवारणाय , त्रिलोक पठाय, त्रिलोक लोकनिथाये , ॐ श्र
Vibhor VashishthaVs
Meri Diary #Vs❤❤ 🌷सुप्रभातम्🌷 माघे मासे महादेव: यो दास्यति घृतकम्बलम। स भुक्त्वा सकलान भोगान अन्ते मोक्षं प्राप्यति।। समस्त देशवासियों को मकर संक्रांति पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं..... शास्त्रों के अनुसार, दक्षिणायण को देवताओं की रात्रि अर्थात् नकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात् सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है। इसीलिए इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है। ऐसी धारणा है कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है। इस दिन शुद्ध घी एवं कम्बल का दान मोक्ष की प्राप्ति करवाता है। 🙏हर हर महादेव🙏 ✍️Vibhor vashishtha vs मकर संक्रान्ति (मकर संक्रांति) भारत का प्रमुख पर्व है। मकर संक्रांति (संक्रान्ति) पूरे भारत और नेपाल में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है।
DURGESH AWASTHI OFFICIAL
वेदों में राधा का वर्णन पवित्र भक्ति- रूप में है । वेदों में राधा का वर्णन पवित्र भक्ति- रूप में है । 👇 इदं ह्यन्वोजसा सुतं राधानां पते | पिबा त्वस्य गिर्वण : ।। (ऋग्वेद ३/५ १/ १ ० ) अर्थात् :- हे ! राधापति श्रीकृष्ण ! यह सोम ओज के द्वारा निष्ठ्यूत किया ( निचोड़ा )गया है । वेद मन्त्र भी तुम्हें जपते हैं, उनके द्वारा सोमरस पान करो। यहाँ राधापति के रूप में कृष्ण ही हैं न कि इन्द्र । _________________________________________ विभक्तारं हवामहे वसोश्चित्रस्य राधस : सवितारं नृचक्षसं (ऋग्वेद १ /२ २/ ७ सब के हृदय में विराजमान सर्वज्ञाता दृष्टा ! जो राधा को गोपियों में से ले गए वह सबको जन्म देने वाले प्रभु हमारी रक्षा करें।👇 त्वं नो अस्या उषसो व्युष्टौ त्वं सूरं उदिते बोधि गोपा: जन्मेव नित्यं तनयं जुषस्व स्तोमं मे अग्ने तन्वा सुजात।। (ऋग्वेद -१५/३/२) ________________________________________ अर्थात् :- गोपों में रहने वाले तुम इस उषा काल के पश्चात् सूर्य उदय काल में हमको जाग्रत करें । जन्म के समय नित्य तुम विस्तारित होकर प्रेम पूर्वक स्तुतियों का सेवन करते हो , तुम अग्नि के समान सर्वत्र उत्पन्न हो । 👇 त्वं नृ चक्षा वृषभानु पूर्वी : कृष्णाषु अग्ने अरुषो विभाहि । वसो नेषि च पर्षि चात्यंह:कृधी नो राय उशिजो यविष्ठ ।। (ऋग्वेद - ३/१५/३ ) अर्थात् तुम मनुष्यों को देखो हे वृषभानु ! पूर्व काल में कृष्ण जी अग्नि के सदृश् गमन करने वाले हैं । ये सर्वत्र दिखाई देते हैं , और ये अग्नि भी हमारे लिए धन उत्पन्न करे इस दोनों मन्त्रों में श्री राधा के पिता वृषभानु गोप का उल्लेख किया गया है । जो अन्य सभी प्रकार के सन्देहों को भी निर्मूल कर देता है ,क्योंकि वृषभानु गोप ही राधा के पिता हैं। 👇 यस्या रेणुं पादयोर्विश्वभर्ता धरते मूर्धिन प्रेमयुक्त : -(अथर्व वेदीय राधिकोपनिषद ) १- यथा " राधा प्रिया विष्णो : (पद्म पुराण ) २-राधा वामांश सम्भूता महालक्ष्मीर्प्रकीर्तिता (नारद पुराण ) ३-तत्रापि राधिका शाश्वत (आदि पुराण ) ४-रुक्मणी द्वारवत्याम तु राधा वृन्दावन वने । 👇 (मत्स्य पुराण १३. ३७ ) ५-(साध्नोति साधयति सकलान् कामान् यया राधा प्रकीर्तिता: ) जिसके द्वारा सम्पूर्ण कामनाऐं सिद्ध की जाती हैं। (देवी भागवत पुराण ) और राधोपनिषद में श्री राधा जी के २८ नामों का उल्लेख है। जिनमें गोपी ,रमा तथा "श्री "राधा के लिए ही सबसे अधिक प्रयुक्त हुए हैं। ६-कुंचकुंकुमगंधाढयं मूर्ध्ना वोढुम गदाभृत : (श्रीमदभागवत ) हमें राधा के चरण कमलों की रज चाहिए जिसकी रोली श्रीकृष्ण के पैरों से संपृक्त है (क्योंकि राधा उनके चरण अपने ऊपर रखतीं हैं ) यहाँ "श्री " शब्द राधा के लिए ही प्रयुक्त हुआ है । महालक्ष्मी के लिए नहीं। क्योंकि द्वारिका की रानियाँ तो महालक्ष्मी की ही वंशवेल हैं। ऐसी पुराण कारों की मान्यता है वह महालक्ष्मी के चरण रज के लिए उतावली क्यों रहेंगी ? रेमे रमेशो व्रजसुन्दरीभिर्यथार्भक : स्वप्रतिबिम्ब विभाति " -(श्रीमदभागवतम १०/३३/१ ६ कृष्ण रमा के संग रास करते हैं। --जो कभी भी वासना मूलक नहीं था । यहाँ रमा राधा के लिए ही आया है। रमा का मतलब लक्ष्मी भी होता है लेकिन यहाँ इसका रास प्रयोजन नहीं है। लक्ष्मीपति रास नहीं करते हैं। भागवतपुराण के अनुसार रास तो लीलापुरुष कृष्ण ही करते हैं।👇 आक्षिप्तचित्ता : प्रमदा रमापतेस्तास्ता विचेष्टा सहृदय तादात्म्य -(श्रीमदभागवतम १०/३०/२ ) जब श्री कृष्ण महारास के मध्य अप्रकट(दृष्टि ओझल ) या ,अगोचर ) हो गए तो गोपियाँ विलाप करते हुए मोहभाव को प्राप्त हुईं। वे रमापति (रमा के पति ) के रास का अनुकरण करने लगीं । यहाँ रमा लक्ष्मीपति विष्णु हैं। वस्तुत यहाँ भागवतपुराण कार ने श्रृंगारिकता के माध्यम से कृष्ण के पावन चरित्र को ही प्रकट किया है।। ©Surbhi Gau Seva Sanstan वेदों में राधा का वर्णन पवित्र भक्ति- रूप में है । वेदों में राधा का वर्णन पवित्र भक्ति- रूप में है । 👇 इदं ह्यन्वोजसा सुतं राधानां पते | प