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Banwari lal kumawat
मरू भूमि के रक्षक हम। सब घाट घाट के रक्षक हम।। जहां तरसते जीव जल को.. मनुष्य करते ललकारा जल को... कोई पथ बतलाता फिर चल न पाता... चारो दिशाओ मुरूभूमि न देख पाता... घाट तालाब विरान लगे. जल को कुआँ विरान लगे.. नर-नारी त्रस्त होने लगे... जीवजंतु पस्त होने लगे... कोई लक्ष्मण रेखा लागे कैसे... जब लक्ष्मण ही अब हुंकार भरे... किशोर युवक आकर देख... हाल गांव के पर खोया.... मनु की भूल न पर रोया... लक्ष्मण भूल से न सोया... लक्ष्मण का रोम-रोम जगा.... कर्मभूमि के सिंग ही रोज जगा... यह रचना लापोडीया गांव है जो जयपुर से 88 किलोमीटर दूर स्थित है। यह लक्ष्मण सिंह के गांव से भी प्रसिद्धि है। जल संसाधन की कमी तथा ग्रामीण लोगो
Shivam Agrahari
मैं गुमनामी के समंदर में जा रहा हु खुदको अब खुदसे मिला रहा हु हालत देखी थी? किस कदर हो गया हुं मै ही मुझसे बेख़बर हो गया हुं तालाब का ठहरा पानी मत समझना मै अब समन्दर का लहर हो गया हु बीच सफर में साथ छोड़ने वाले देख मै खुद ही डगर हो गया हुं सोचकर हैरान मत होना कि माफ़ कैसे किया ऐसे नादाँ लोगो के लिए मम सागर हो गया हुं मै गुमनामी के समन्दर से वापस आऊंगा तुझको मै तुझसे मिलाउंगा कुछ ही वक़्त की तो बात है, कायर मत समझना तुमको मै तुम्हारी औकात दिखाउंगा।। मैं गुमनामी के समंदर में जा रहा हु खुदको अब खुदसे मिला रहा हु हालत देखी थी? किस कदर हो गया हुं मै ही मुझसे बेख़बर हो गया हुं तालाब का ठहरा
ASHKAR Shahi
"प्रकृति, तुम और कुछ सवाल" #sunsetpic_click_by_me "खुली क़िताब📖"❤️ READ IN CAPTION👇 "प्रकृति, तुम और कुछ सवाल" "अपने होते हुए भी कोई अपना नहीं" जब महसूस होता है तो
Divyanshu Pathak
.... #लोकगीत #yqhindi #हिंदी #yqdidi # #yqbaba # *चेला तुम्बी भरके लाना.....तेरे गुरु ने मंगाई,,* चेला भिक्षा लेके आना गुरु ने मंगाई, *पह
Divyanshu Pathak
मैं भारतीय जीवनशैली के वैभवशाली इतिहास में यहाँ की मिट्टी और पर्यावरण का विशेष योगदान मानता हूँ।आज हम प्रकृति के सामीप्य का ढोंग तो करते हैं लेकिन हमें ये पता नहीं होता कि ऋतुओं के अनुरूप पथ्य और अपथ्य क्या है?पहला सुख निरोगी काया तो सब जानते हैं। फिर भी भक्ष्य और अभक्ष्य का भेद भुलाकर "स्वाद" के ग़ुलाम हो नए रोगों को निमंत्रण देते हैं। घी- संक्रान्ति की हार्दिक शुभकामनाएं आपको। माननीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी की पुण्यतिथि पर उनको सादर नमन। "भादवे का घी" भाद्रपद मास आते आते घास पक जाती है। जिसे हम घास कहते हैं। वह वास्तव में अत्यंत दुर्लभ #औषधियाँ हैं। इनमें धामन जो कि गायों को
ganesh suryavanshi
वो आंख से एक बूंद ना गीरी. वो आंख को झील समझते थे.. हर आसु भी दर्द को पी कर.. मन का तालाब भी सुखा पडा था ❤💔 ©ganesh suryavanshi मन का तालाब #DilKiAwaaz