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roshan
आना है तॊ आ जाना है तो जा.... घुटने पे बैठके तुम्हे मनाना मुझे शोभा देगा क्या? पानी का नही नाम साब्जी को नही दाम बता गोल्डन नेकलेस तुम्हे दिलाऊ कैसे? कुवा सुख गया है नदी नाला रुख गया है बता तेरे प्यार मे शलांग लगाऊ कैसे? आना है तो आ जाना है तो जा.... बेजान सहै पत्थर पर बिना कुछ चडाये बता मान्नत मे तुझे उसीसे मांगु कैसे? भावनिक मै बहोत हू दिल मे तुम्हेहीं रखता हू पानी बचाते बचाते बता आसू अंखोसे बहाऊ कैसे? आना है तो आ जाना है तो जा..... ....रोशन देसाई.... 12/02/20 इन हिंदी
Pinki
शायद ये जिस्मानी मोहोब्बत , हिस्सा ही नहीं है इश्क का ' वरना किसी भी शहर में , कोई औरत तवायफ न होती.... ©Pinki तवायफ
Haji imtiyaz
एक सुंदर कविता जिस्म के बाजार में आंख किसी उठाई है दिल में दर्द और कलम में सियाहि मिलाई है अंधेरी जिंदगी लेकर किताब को रोशन करने आई है यही खबर किसी शरीफों को अखबार ने सुनाई है ये सुनते ही अपने अपने घर में खुदखुशी रचाई है शहर शहर में यही मंहुसियत सी छाई है आखरी लाइन यही तो रोना है इस दुनिया ने ही बेबस को तवायफ बनाई है बनाई है हाजी इम्तियाज़ तवायफ
Dileep
जो मेरी सराफत का अंदाज होता तो मेरी शिकायत का अंदाज होता मैं ना आता कभी भी तेरे साथ में गर तुम्हारी तवायफ का अंदाज होता तू अकल का मरा मैं समझता रहा एक दफा ही नहीं दमबदम पर कहा बेकरारी में ही मेरा अहसास होता तो मेरी शिकायत का अंदाज होता खिल रही थी कली गैर के बाग में मैं घिरा तेरी लगाई हुई आग में बेझिझक से बचाने को कुर्बान होता जो मेरी सराफत का अंदाज होता था इरादा नहीं जो बजाया मुझे रेणु रज के है जैसे उड़ाया मुझे उड़ती रज थामने में तेरा हाथ होता मेरा आजिज़ी तो न ये हाल होता दिलीप अग्निहोत्री ©Dileep तवायफ
Deep Kushin
तवायफ तवायफ हूं मैं, धर्म,जाति,प्रेम,विवाह,प्रणय से परे बदनाम फिर भी मांगे जाने वाली, निष्ठुर मनुष्य के जिस्म की ताप हूं मैं हां तवायफ हूं मैं। अमीर से गरीब,जवान से वृद्ध, सरकारी और सहकारी,दुकानदार और बेरोजगार सबके हवस की शांतिकर्ता हूं मैं, हां तवायफ हूं मैं। बिकती नहीं स्त्री, पर बिके जाने वाली, नीलाम होने वाली,एक स्त्री हूं मैं हां तवायफ हूं मैं। वैश्या,रण्डी,रखैल आदि उपनाम हैं मेरे मांग पर नंगी हो जाती हूं मैं, जानवर नहीं इंसान ही हूं फिर भी नोची जाती हूं मैं, हां वही तवायफ हूं मैं। क्या पुलिस,क्या वकील,क्या नेता,क्या जनता सबसे सीधा नाता है मेरा, क्या वर्दी,क्या कपड़े,क्या ड्रेस,क्या परिधान, उतरने के बाद आधिपत्य है मेरा, सभी हवसियों की मां,बहन और लुगाई हूं मैं, हां तवायफ हूं मैं। धर्म और जाति नहीं मेरी सब अपनी प्यास बुझाते हैं, मर्यादा का लोप नहीं है यहां सर्वथा स्वीकारी जाती हूं मैं हां वही तवायफ हूं मैं। तुम्हारी इच्छा पर रहती हूं मैं तुम्हारा ही काम सर्वोपरि है बीबी का सा काम है मेरा तेरे बिस्तर को गर्म करती हूं मैं हा तवायफ हूं मैं। रंगीन दुनिया की रंगीन स्त्री चांद तारों के सपने देखती हूं मैं, कर्तव्य से विमुढ़,परन्तु धकेली गई एक निर्बल और लाचार नारी हूं मैं, हां तवायफ हूं मैं। #तवायफ