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Mihir Choudhary

बिरहा

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तुमने तो हँस के पूछा था  बोलो न कितना प्रेम है 

बोलो कैसे मैं बतलाता
बोलो ना कैसे समझता 

जब अहसास समंदर होता है 
तो शब्द नही फिर मिलते हैं 

उन बेहिसाब से चाहत को कैसे कैसे मैं  बतलाता 
बोलो न कैसे  दिखलाता बोलो न कैसे  समझता 

 तब भी हिसाब का कच्चा था
अब भी हिसाब का कच्चा हूँ

 जो था वो ना मेरे बस का था
अब तो जो हालात हुए उनसे तो मैं अब बेबस हूं

अब अंदर -अंदर सब जलता है
लावा जैसा सा कुछ पलता है

धीमे धीमे  कुछ रिसता है
कुछ टूट-टूट के पीसता है

नस-नस मैं जैसे कुछ खौलता है
धड़कन बिजली सा दौड़ता  है

अब बेहिसाब ये यादे है 
बस बेहिसाब ये चाहत है 

बोलो क्या वो प्रेम ही था 
बोलो न क्या ये प्रेम ही है

मिहिर... बिरहा

अविरल अनुभूति

निर्गुण #Quotes

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तुम्हे सिर्फ मीठा परमात्मा चाहिए,
लेकिन वो मीठा और कड़वा दोनों है।

निर्गुण, सगुण, परिपूर्ण⚜️🔱

©अविरल अनुभूति निर्गुण

D Anand Singer

निर्गुण भजन #समाज

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सुरेश चौधरी

निर्गुण भजन

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तन  बिगाड़ा  मन   बिगाड़ा  रे
डूब    डूब   कर   द्वेष   गरल में
छोड़   अहंकार   जी  ले  प्राणी
प्रेम  प्रीत  सा  सहज  सरल में

पी  प्राणी  कुम्भ राम  रस  का
अजी पी प्याला श्याम रस का 

तूने   मैली   की  माया  मोह  से   चदरिया
आई   क्यूं   जिंदगानी पर  काली बदरिया
गुमान  तू  मत  कर पांच तत्व  के चोले  पर
तेरे तन की इक दिन ढह जायगी अटरिया

धन   दौलत   के  पीछे   भागा 
पी  हाला  क्रोध  काम रस का
पी   प्राणी  कुम्भ राम  रस का
अजी पी प्याला श्याम रस का 

माटी    के  पुतले  माटी  में  मील  जायंगे    
महल  मालिया  तेरे  सब  यहीं रह जायंगे 
सांस सांस बस काम क्रोध धरे रह जायंगे 
संभल जा प्यारे छोड़ सब प्रभु घर जायंगे 

कितनी  कर   ली  कमाई   इंदु
अब  पी   हरी  नाम   रस   का
पी   प्राणी  कुम्भ  राम रस का
अजी पी प्याला श्याम रस का 


****** निर्गुण भजन

~आचार्य परम्‌~

निर्गुण..... आत्मा

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क्यों ढूँढता है तू यूँ मुझे दर बदर 
आंखें बंद करो तो मैं आऊँ नज़र ।।
जिसे खुली निगाहें देख नहीं सकती ।
यहीं कही छिपा है तेरे दिल के अंदर ।।
              
                                  ~*परम् भाग्यम्*~ निर्गुण..... आत्मा

Anurag Sanskar

निर्गुण भजन

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बन्दे चल सोच समझ के क्यों ये जनम गवाय,
बार बार ये नर्तन चोला तुझे न मिलने पाय ॥

बचपन बीता आई जवानी खूब चैन से सोया,
गुजर गई अनमोल घडी तो देख बुढ़ापा रोया,
इस योवन पे नाज तुझे वो मिटटी मैं मिल जाये,
बन्दे चल सोच समझ के......

झूठ कपट से जोड़ा तुमने अपना माल खजाना,
काम क्रोध मध् लोभ मैं फास कर प्रभु को न पहचाना,
मुठ्ठी बांध के आया जग में हाथ पसारे जाए,
बन्दे चल सोच समझ के.....

ये दुनिया है सराय है मुशाफिर छोड़ इसे है जाना,
कोई किसी का नहीं जगत मैं ये तन है बेगाना,
उड़जाये पिंजरे का पंछी पिंजरा साथ न जाये,
बन्दे चल सोच समझ के....... निर्गुण भजन

-vinita vinay panchal

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Anuj Ray

#बिरहा की रातें

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" बिरहा की रातें"

न धुंआ न कहीं ,आग जला करती है,
बिरहा की रातें यूं ही ,खामोश जला करती हैं

जलता है बदन आग की लपटों में,दो बूंद 
की उम्मीद लिये, बेबसी हाथ मला करती है।

फागुन का महीना हो, या घनी सावनी रातें, 
पिया मिलन की आस में, यूं ही ख़ला करती हैं।

©Anuj Ray #बिरहा की रातें

सुरेश चौधरी

निर्गुण पदावली 3 दिसम्बर 22 #कविता

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3 दिसम्बर 2022
आज की भजन पदावली

नाथ दरस को तरस रहे मेरे नैना।
तेरे   दरस   को  नेह   स्पर्श  को,  तरस  रहे  मेरे  नैना
ओ  मेरे  व्याकुल मन  आकर, लाओ तुम  दिल मे चैना
ज्ञान  सुधा रस पान कराकर, प्रभु उर को दरस कराकर 
ओ अन्तर्यामी प्रज्ज्वलित कर, दैदिप्त ज्ञान ज्यूँ दिनकर
माना तुम  ही हो  मात्र अचल,  समस्त विश्व है चलाचल
हो तेरा संग कल  आज कल,  इंदु   प्रार्थनाओं का फल
कर  श्रृंगारित अन्तस् विवेक से, बीते भजन में दिन रैना
नाथ दरस को तरस रहे मेरे नैना।

दोहा:
नाथ  दरस बिन क्या कहूँ, तरस  रहे ये नैन
ज्ञान सुधा रस पान दे, भजन करूँ दिन रैन

सुरेश चौधरी 'इंदु'

©सुरेश चौधरी  निर्गुण पदावली 3 दिसम्बर 22

Vinod Mishra

@भरत शर्मा भोजपुरी निर्गुण गीत #कविता

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