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- Arun Aarya
Unsplash तुम्हारी शोहबत में गुजरी हमारा हर सफ़र ऐसा ! अब कोई मलाल कैसा अब किसी का डर कैसा..!! - अरुन आर्या ©- Arun Aarya #lovelife #डर कैसा
Krishna Lanjewa
White पहिले दुनिया देख बाद में दुनिया को दिखा तू कैसा है !! ©Krishna Lanjewa पहिले दुनिया देख बाद मे दुनिया को दिखा तू कैसा है
पहिले दुनिया देख बाद मे दुनिया को दिखा तू कैसा है
read moreShailendra Anand
रचना दिनांक 25 जनवरी दोहजार पच्चीस वार शनिवार समय सुबह पांच बजे ््भावचित्र ् ््निज विचार ् ््शीर्षक ् ।््तेरी रुहानी रुह में अल्फाज़ नगीना लिखने वाले अच्छे ख्यालात की इबादत है,, संविधान में न्याय पाओ मर्यादा में रहो यही सही समय की मर्यादा और प्रतिष्ठा सौगात दी गई है।। राजनीति और धर्मांन्धता और अर्थ व्यवस्था में सुधार समरसता बहुत जरूरी है ्् पच्चीस जनवरी दोहजार पच्चीस अंक शास्त्र में 25बराबर25तारीख और साल में एक समान है। श्रुति स्मृति चिन्ह प्रदान देश में, अवाम में खुशहाली में एक विधान संविधान का आलेख सुलेखा की पूर्व संध्या पर , हम दिलों से पूजा करें जनसेवा ही मानव सेवा है जिसे हम गणतंत्र दिवस कहते हैं,।। माना कि तुम मेरे लिखे शब्दों से सहमति असहमति जताते हुए , जनस्वीकारोक्ति निस्वार्थ भाव को नहीं नकार सकते हो।। यही उत्तेजना यन्त्र तंत्र को मजबूत करने वाले, संविधान विशेषज्ञ दल में शामिल समन्वय समिति द्वारा स्थापित विचार संगोष्ठी में, आन्तरिक रूप से एक अन्तिरम निम्नांकित विषय वस्तु धारा नियमावली पर आपसी सहमति बहस में विचारों का आदान प्रदान करने वाली अग्नि परीक्षा स्वलेखक और सहयोगीयो में, एक सम निदान हेतु सेतुबंध में कुछ मन का अन्तर्द्वंद से सजाया गया जिसे हम अनुसरण करें अंनत आख्यान संहिता दर्शन शास्त्र ज्ञान दर्शन है।। । तथ्यों पर विचार प्रवाह में बह निकले ध्वनि तरंगों में एक गाढे खून पसीने की पीड़ा हो, किसी धनवान का आयना नज़रिया जो भी व्यक्ति पहले इन्सान नागरिक हैं ।। तदपश्यात प्रृथ्वीतले परिभ़मणं लोककल्याणं नरलीला में, जाति, धर्म, भाषा, सम्बन्धी कहावतें से पूजा करने वाले हो सकते है।। जो इन्सान आज अपने विचार व्यक्त आस्था प्रकट कर रहा है, वह उस समय की मर्यादा काल्पनिक दशा का आख्यान व्याख्यान कर रहा हूं। यह जग मग माया मोह ््मद से जलरंहा रहा है,, और यह सुखद अहसास दिया गया जिसे हम देश का संविधान कहते हैं।। यह आज का दर्शन मैं शैलेंद्र आनंद जो देख सकता हूं ,, वह अदभुत झलकियां हकीकत में रचती बसती है । दीप्ति नवल किशोर मेरे दिल में दीपक कलश स्वस्तिक कुंभ राशि में पच्चीस जनवरी दोहजार पच्चीस की सुबह स्वागत में ,, सुंदरता को परखना तन मन को निखारना स्वयं को पढ़कर अभ्यास से मन को लिखने वाले आत्ममंथन को आनंद कहते हैं।। ््कवि शैलेंद्र आनंद ् 25 जनवरी। 2025 ©Shailendra Anand देशभक्ति और देश संविधान में न्याय में देश में अवाम में खुशहाली आती है भक्ति भाव से पुजा करने वाले अच्छे लगते देश भक्ति में संनिहित है वि
देशभक्ति और देश संविधान में न्याय में देश में अवाम में खुशहाली आती है भक्ति भाव से पुजा करने वाले अच्छे लगते देश भक्ति में संनिहित है वि
read moreTARUN KUMAR VIMAL
White हमारे देश मे कितने भोले लोग है, वो पत्थर से कागज और धातु मांगते है ©TARUN KUMAR VIMAL #love Extraterrestrial life हमारे देश मे कितने #भोले लोग है, वो पत्थर से #कागज और #धातु मांगते है #tarun_kumar_vimal #tarunkumarvimal #देश
love Extraterrestrial life हमारे देश मे कितने #भोले लोग है, वो पत्थर से #कागज और #धातु मांगते है #tarun_kumar_vimal #tarunkumarvimal #देश
read moreParasram Arora
New Year 2025 ये कैसी देश भक्तिहैँ. जो युदधो को उत्तेजित करती हैँ और तुच्छ वस्तुओं की प्राप्ति के लिए नरसंहार करती हैँ और जो इंसानियत का विनाश करती हैँ ©Parasram Arora देश भक्ति
देश भक्ति
read morevksrivastav
Unsplash कौन कैसा है जानना है अगर तो उससे बात करो चेहरा झूंठ बोलता है ©Vk srivastav कौन कैसा है जानना है अगर #Life #Shayari #SAD #Videos #viral #Trending #vksrivastav
कौन कैसा है जानना है अगर Life Shayari #SAD #Videos #viral #Trending #vksrivastav
read morePraveen Jain "पल्लव"
Unsplash पल्लव की डायरी जड़ो से काटकर शिक्षा कैसा ज्ञानी बना रही है उधेड़ रही परिवार समाज की बुनियाद आज रिश्तों की बाँट लगा रही है बढ़ रहे है चरित्रों में दोष वासनाओ में युवा डूबकी लगा रहे है लज्जा हया शर्म सब ताक पर है उच्च शिक्षा पाकर भी निखार उनके जीवन मे नही आ रहा है डिग्रियों के नाम पर भारत का स्वरूप बिगाड़ा जा रहा है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #leafbook जड़ो से काटकर शिक्षा, कैसा ज्ञानी बना रही है
#leafbook जड़ो से काटकर शिक्षा, कैसा ज्ञानी बना रही है
read moreGanesh Din Pal
White हम भी पागल तुम भी पागल हम सब भी पागल पैसों के लिए पागल खुशी के लिए पागल इज्जत के लिए पागल किसी के लिए पागल संसार रूपी मंच पर मंचन के लिए पागल और अंत में इसी पागलपन को पूरा करने के लिए हम पागल होकर मर जाते हैं। ©Ganesh Din Pal #यह कैसा पागलपन?
#यह कैसा पागलपन?
read moreGanesh Din Pal
White हम भी पागल तुम भी पागल हम सब भी पागल पैसों के लिए पागल खुशी के लिए पागल इज्जत के लिए पागल किसी के लिए पागल संसार रूपी मंच पर मंचन के लिए पागल और अंत में इसी पागलपन को पूरा करने के लिए हम पागल होकर मर जाते हैं। ©Ganesh Din Pal #यह कैसा पागलपन?
#यह कैसा पागलपन?
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