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Snigdha Rudra

गणित जिदंगी की #शायरी

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बस यूं ही

बहुत कठिन होती गई जिदंगी की गणित
    यूं ही नही हम गणित में कमजोर हुये गणित जिदंगी की

Pratibha Tiwari(smile)🙂

#इश्क़ की गणित

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कौन कहता है इश्क़ में गणित नहीं होती।

जो तुम भर लो मुझे अपने अंक में
मेरे शून्य से जीवन में पूर्णता आ जाए।
जो सैकड़ों रिश्तों में विभक्त है अभी मेरी दुनिया
तुम जो भर दो मांग में सिन्दूर जिंदगी 
इकाई का एक हो जाए।.....satyaprabha💕
........my life ✍ #इश्क़ की गणित

Kavita Jayant Srivastava

गणित मुहब्बत की

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दो में से एक जाए तो, कुछ नही बचता है
 मुहब्बत की गणित है ये ,थोड़ी अजीब है गणित मुहब्बत की

आपका अरविंद

गणित की किताब

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*जिंदगी*
तेरे नखरों से बेहतर
तो..
गणित की किताब थी ।
देर से ही सही

समझ तो आती थी गणित की किताब

Amit Gupta

प्रकृति प्रेम @ प्रकृति की तपन

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ये धूप, तू मान मेरी 

ये धूप, तेरा यूं नित्य बढ़ना लाजमी है मानता हूं मैं,
तेरी तपन तुझको मानवों ने ही दिए, जानता हूं मैं
पर क्या तू भी बन जाओगी निर्मोही और निष्ठुर 
तू मान मेरी, कर दे ऐसी सभी नाराजगी तू दूर  
मेरी सुन, खामोखां तू दिन-ब-दिन बढ़ रही है
तेरी तपन से पिघल जाए ऐसा कोई दिल नहीं है । 
आकांक्षाओं कि परिसिमा लांघते गए ओ इस कदर 
पेड़ काटे, पर्वत - पहाड़ तोड़े, और न जाने क्या-क्या किए
दर्द तेरी समझता हूं, ऐसे ही नहीं ढा रही तू ये कहर 
पर तुझसे से तो हमने ना कभी ऐसी उम्मीद किए 
मेरी सुन, खामोखां तू दिन-ब-दिन बढ़ रही है
तेरी तपन से पिघल जाए ऐसा कोई दिल नहीं है । 
अच्छे, बुरे, लोभी, लालची, मतलबी चाहे जैसे भी 
आखिर ये भी तो तेरे संग ही रहते, तू रखे चाहे जैसे भी 
मान जा, तू जिद न कर, बढ़ तू पर न इस तरह
देख, प्रकृति प्रेमियों के भी आंसू बने पसीने कि तरह
मेरी सुन, खामोखां तू दिन-ब-दिन बढ़ रही है
तेरी तपन से पिघल जाए ऐसा कोई दिल नहीं है ।
नन्हे बच्चों की अभी छुट्टियां भी तो नहीं हुई 
तेरी तपन उन्हें तड़पाती है, न जाऊंगा स्कूल, कहलवाती है
ये भविष्य कल के, पढ़ कर समझेंगे तेरी वेदना को 
तू भी तो समझ बागों से दूर होते इनकी संवेदना को 
मेरी सुन, खामोखां तू दिन-ब-दिन बढ़ रही है
तेरी तपन से पिघल जाए ऐसा कोई दिल नहीं है । प्रकृति प्रेम @ प्रकृति की तपन

JJ SIR NOSAR BUDDHISM

राष्ट्रीय गणित दिवस की शुभकामनाएं

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जुदा है इसकी की गणित

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✍️धीraj

#Dreams गणित की कलम से। #बात

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असली दोस्त गणितज्ञ होना चाहिए।जो खुशियों में गुणा कर दें। दुःखों में भाग दें। बुराईयों को घटा दें और गुणों को जोड़ दें।                                      ✍️धीraj #Dreams गणित की कलम से।

janmejay tiwari

गणित जिंदगी की ✍️✍️✍️ #शायरी

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ये जिन्दगी न हुई कोई गणित की किताब हो गई।
अनसुलझे सवालों की झड़ियां बेहिसाब हो गईं।।

बड़ी ख्वाहिश थी इश्क में कुछ कर गुजर जाने की।
बेवफा वो निकला हमें बदनामियां खिताब हो गईं।।

वजूद अपना वो चिराग़ क्यूं न खोता दिवाली में।
बिना तेल के कुछ मोमबत्तियां आफताब हो गईं।। गणित जिंदगी की ✍️✍️✍️

Deepali Singh

प्रकृति की हुंकार

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प्रकृति की हुँकार
कब से आस लगाये बैठी थी ये प्रकृति 
इसे भी मिल जाए सांस लेने की अनुमति
धुआँ ही धुआँ दिखता था हर जगह
और हो रहे थे ज़ुल्म इसपर बेवजह 
ढूंढ रही अपने अस्तित्व को जाने कब से,
चुप बैठी थी गुमसुम सी इतने वर्षों से 
ठहरी थी जिंदगी बहुत दूर इससे 
पर ऐसी बर्बादी कतई ना थी मंज़ूर इसे,
रहती थी खोई सी,खामोशियों मे सोई थी
उन दूषित गर्म हवाओं में खुद को पिरोई भी
काया से इसके लिपट कर वायु ने 
स्वच्छ शीतल चंचल उड़ान था भरा
उन नर्म साँसों में, ठहरी ठंडी रातों में
सरसराते इठलाते बहकते पत्तों में,
धड़कते पत्थर के उन सहमे दरारों में
छुकर अपने धरा के कर कण-कण को
मस्ती में इतराते अपने हस्ती पे
फ़िर उड़ता चला चुमने गगन को
वो मतवाला मनचला बहता चला
आज़ाद सोंच में झूमता उठता रहा
फिर कैद हुआ कुछ के क्रूर गुरुर से
और तड़प रहा गुब्बारों में तो सिलेंडर में
सुकून सा देकर तेरे घुँटते फेफड़ों को
जो जीवन दिया वो ये वायु ही तो
जिताकर तुझे ऐसे जीवन जंग से 
लौटना है इन्हें उपवन जंगल में
जो बनाता रहा दूरी कुदरत से
क्या खोया है ज़रा पूछ खुद से
प्रकृति के आगे हम मजबूर ठहरे 
इनकी नज़रों से कुछ भी नहीं परे 
प्रकृति को हमारी ज़रूरत नहीं
पर हमें प्रकृति की ज़रूरत ज़रूर है 
यूँही नहीं प्रकृति को खुद पर गुरुर है
तभी तो प्रकृति खुद मे मगरूर है

 
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©Deepali Singh प्रकृति की हुंकार
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