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saurabh
अक्सर ऐसा ही होता है आदमी सीखता किसी और से है और आजमाता किसी और पर हमने सुना है कि जो ठोकर किसी चालाक आदमी से खाता है वो बदला किसी सीधे आदमी से लेता है.... !! #phylosophy #thoughts
Atit Arya
आदमी को आदमी से शिकायत यही है, कि आदमी को आदमी पे रियायत नही है, दे जाता है वो धोका खुदके लिए, क्याें आदमी को आदमी के लिए जज्बात नहीं है !! #आदमी को आदमी से शिकायत यही है, कि आदमी को आदमी पे रियायत नही है,
सुसि ग़ाफ़िल
किससे बात करूं , जो मेरी चिंता को खा जाए इस तरह जैसे "अंधेरा खाता है इंसान को और सूरज खाता है अंधेरे को" किससे बात करूं , जो मेरी चिंता को खा जाए इस तरह जैसे "अंधेरा खाता है इंसान को और सूरज खाता है अंधेरे को"
Chandan Ki kalam
सोच से संपन्न होता हैं आदमी 👌 ------------------------------------ ©Chandan Ki kalam सोच से संपन्न होता हैं आदमी #motivation_for_life #Motivation #motivation💯 #Advice&Motivation सोच से संपन्न होता है आदमी
Narendra Sonkar
आदमी ही आदमी से जलता है। आदमी ही आदमी को छलता है। व्यक्तिगत हितो-स्वार्थ के खातिर, नरेन्द्र दोस्ती-यारी को कुचलता है।। ©Narendra Sonkar "आदमी ही आदमी को छलता है"
ADARSH SAHU
"आदमी को स्वयं खल रहा है आदमी" आदमी को स्वयं खल रहा है आदमी। बिन जलाएं स्वयं जल रहा है आदमी॥ चाहु ओर घेरे निराशा पड़ी है। जीवन में आई ये कैसी घड़ी है? सभी को सभी सुख चुभ रहा है। कोई किसी का भी दिखता नहीं है।। हर तरफ दिल में है अब आगजनी़। आदमी को स्वयं खल रहा है आदमी॥ मन में कहीं शांति टिकती नहीं है। भाव संवेदना आज दिखती नहीं है॥ सिसकती गली है कंपाता डगर है। न जाने! किसकी लगी ये नज़र है॥ कहीं दिखती नहीं प्रेम की कोठारी। आदमी को स्वयं खल रहा है आदमी॥ अब समय है विकट गिरती यह लपट। कौन है इसको बुझाए है प्रश्न! यह सबसे विकट॥ सारी मानवता बिखरी जा रही जब। कोई दिखता नहीं जो संभाले इसे अब॥ प्रेम आनंद से भिगोये जो सारी जमीं। आदमी को स्वयं खल रहा है आदमी॥ आओ सब मिल विचारे नया कुछ सवारे। मिटाये जलन अब अपने मन को बुहारें॥ करें प्रेम सबसे और सभी को सवारे। अपना यह जीवन जनहित में वारे॥ तभी मुस्कुराएगा ये शमां और खिल-खिलाएगी जमी। आदमी को स्वयं खल है रहा आदमी॥ बीन जलाए स्वयं जल रहा है आदमी॥ आदमी को स्वयं खल रहा है आदमी
Narendra Sonkar
पा गया जो मौका तो मौके पे लताड़ता है आदमी ही आदमी को धोता पछाड़ता है ©Narendra Sonkar आदमी ही आदमी को धोखा पछाड़ता है"
Ramgopal Singh
समस्याओं के घाट पर हम कहां जाऊं किस गली से गुजरूं। कि उजड़ा उजड़ा हर शहर लगता है। हमें यह कुदरत का कहर लगता है। इंसान ने की ऐसी भी क्या खूब तरक्की दोस्तों। अब हर आदमी को आदमी से डर लगता है। #5Line Poetry ©Ramgopal Singh आदमी को आदमी से डर लगता है।
pramod malakar
आदमी आदमी को मरते देख रहा है ०००००००००००००००००००००० आदमी आदमी को मरते देख रहा है, सड़क पर घसीटते और कटते देख रहा है। हत्याएं अनगिनत हो रही है बेटियों कि, मूर्दा बैग में कहीं फ्रिज में सड़ते देख रहा है। हालात भयावह है गुजरते वक्त का, इंसान नहीं मानो कुत्ता को सड़ते देख रहा है। आदमी से ज्यादा आज जानवर समझदार है, जानवर भी जानवर को समझते देख रहा है। उंगली उठती है हमारी हरदम गैरों पर, सच पर सभी को सब मुकरते देख रहा है। दुर्घटना हो, मारपीट हो या कोई बिमार हो, कई बार सड़क पर तड़फते और मरते देख रहा है। बेफजूल का वक्त हम गुज़ार देते हैं मस्ती में, बेमतलब रफ्तार में गाड़ी लोग दौड़ते देख रहा है। दुर्घटनाएं आती हैं चली जाती है, आंसू पी कर परिवार को लोग तड़फते देख रहा है। उठो और जागो अब तुम भी निंद से, धन दौलत वालों को भी श्मशान में जलते देख रहा है। आदमी आदमी को मरते देख रहा है।। """"""""""""""""""""""""""""""""""" प्रमोद मालाकार की कलम से """"""""""""""""""""""""""""" ©pramod malakar #आदमी आदमी को मरते देख रहा है
Shiv Chauhan
जहा जिसका दाना रहता है ,,, ,समय उसै वहां बुलाता है ,,,,,,कोई किसी का दिया नही खाता, हर ,,,,,,,,,,,,आदमी अपने नहीब का खाता है