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@nil J@in R@J
माँ दुर्गा के स्वरूप शैलपुत्री की पूजा विधि मां शैलपुत्री की तस्वीर स्थापित करें और उसके नीचें लकडी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछायें। इसके ऊपर केशर से शं लिखें और उसके ऊपर मनोकामना पूर्ति गुटिका रखें। तत्पश्चात् हाथ में लाल पुष्प लेकर शैलपुत्री देवी का ध्यान करें। मंत्र इस प्रकार है- ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे ओम् शैलपुत्री देव्यै नम:। मंत्र के साथ ही हाथ के पुष्प मनोकामना गुटिका एवं मां के तस्वीर के ऊपर छोड दें। इसके बाद भोग प्रसाद अर्पित करें तथा मां शैलपुत्री के मंत्र का जाप करें। यह जप कम से कम 108 होना चाहिए। मंत्र - ओम् शं शैलपुत्री देव्यै: नम:। मंत्र संख्या पूर्ण होने के बाद मां के चरणों में अपनी मनोकामना को व्यक्त करके मां से प्रार्थना करें तथा श्रद्धा से आरती कीर्तन करें। #NojotoQuote जय मां शैलपुत्री की पूजा विधि
@nil J@in R@J
नवरात्र तीसरा दिन पूजा विधि माँ चंद्रघंटा नवरात्री के तीसरे दिन माँ चंद्रघंटा की पूजा के लिए सर्वप्रथम माता की चौकी पर माँ चंद्रघंटा की प्रतिमा स्थापित करें। गंगा जल से इसे शुद्ध करे. इसके बाद चौकी पर एक कलश में जल भरकर उस पर नारियल रखकर कलश स्थापना करें। पूजा का संकल्प लेकर सभी देवी- देवताओं का आवाहन करे. सभी प्रकार की पूजन सामग्री जैसे- वस्त्र, सुहाग पिटारी, चंदन, रोली, अक्षत, हल्दी, सिंदूर, दुर्वा, फूल, धूप-दीप, नैवेद्य, फल, पान, सुपारी, दक्षिणा, अर्पित कर पूजा करे. पूजा संपन्न करने के बाद प्रसाद वितरण कर पूजन संपन्न करनी चाहिए. #NojotoQuote नवरात्र तीसरा दिन पूजा विधि मां की
सिन्टु सनातनी "फक्कड़ "
छठ की पूजन विधि यही दर्शाता है। जो आज ढ़ल रहा है, कल वो जरूर उगेगा। और हमारी यही दास्तान है, लोग कुछ ढ़लते को पुछेंगे, और कुछ उगते के साथ जुड़ेंगे। #छठ पूजा की विधि यही दर्शाता है
CK JOHNY
मुँह में रहे न दाँत पेट में रही न आँत मन सदा है भ्रांत। इच्छाएं हुई न शांत। मिटे मन के कल्मष कोई बताये मुझे जा बसुँ किस प्रांत। सतगुरू नगरी जा प्यारे। सतगुर चरणों में मन टिकांत। आशा मनसा
Deepali Singh
मोर की मनसा आसमान से गिरा जो हीरा मिट्टी की मिट गयी सब पीड़ा उड़ते सोन्हे खुशबु का सवेरा रग-रग में जैसे डाले रहा डेरा चिड़ियों की वो डाली वो बसेरा हिलते-डुलते पत्तों का हिलोरा सुनहरे पंखों की वो नीली छाया बूंदों ने मन उसके ठाठ जमाया अपने अंगड़ाई में नभ को समाये झट उठ घुम घुमकर आगे आये गाढ़े काले रंग में गुम झूमे नाचे बादलों से करे बयाँ हाल वो ऐसे मायूस सा सोया रहा आस में तेरे खोया सा रहता पर अपने समेटे बिन तेरे तड़प रहा बिन थिरके पग भी अब थक गए रुके- रुके क्या भाता नहीं तुझे मेरा नृत्य ये नाराज़ हूँ तुझसे मैं भी कब से एक तो आया है इतनी देर से और ऐसे बरसा भी ना वर्षों से। ©Deepali Singh मोर की मनसा
HP
यह एक पुरानी कहावत है कि शंका डायन, मनसा भूत सचमुच ही जब मन में किसी बात के ऊपर शंका, सन्देह, चिन्ता, भय उत्पन्न हो जाता है तो एक प्रकार की डायन साथ हो लेती है। सब जानते हैं कि चिन्ता, चिता की छोटी बहिन है किन्तु शंका चिन्ता की बड़ी बहिन है। जिसे यह डर लग जाता है कि मेरे पीछे भूत पड़ा हुआ है, उसके लिए घड़ा भी भूत बन जाता है। भूतों के उत्पन्न होने का स्थान मन है। मन में भूतों की कल्पना उठी कि पेट में चूहे लोटे। शाम को भूतों की कहानी सुनी कि रात को स्वप्न में मसान छाती पर चढ़ा। भ्रमवश रस्सी को सर्प समझने का उदाहरण वेदान्ती बार- बार दोहराते हैं। अशिक्षित जातियों में भूत प्रेतों पर अधिक विश्वास होता है, उन पर आये दिन जिन्न सवार रहते हैं। जो उन्हें नहीं मानते उनसे वे भी डरते हैं। डरपोक आदमियों के मन में यह विश्वास जमा रहता है कि अमुक घर, पेड़, मरघट, तालाब पर भूतों का डेरा है। वे उन स्थानों में रात बिरात अकेले नहीं जा सकते। यदि जावें तो समझते है कि सचमुच भूत उन्हें दिखाई दें और वे बीमार पड़ जाय। किन्तु ऐसे भी किसान आदि होते हैं जो उन्हीं कठिन भुतही जगहों में अँधेरी रातों में रहते हैं उनका कोई कुछ नहीं बिगड़ता। शंका डायन मनसा भूत