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Ek villain
आम बजट अर्थव्यवस्था के सबसे क्षेत्र को उम्मीद की कार की रणदिखाना वाला है सामग्री दृष्टि से परिपूर्ण वृद्धि पर केंद्रित एक यह भविष्य नियमों की बजट है रोजगार को बढ़ाने वाला है फिर भी न्याय की सुधार एवं पुलिस सुधार जैसे मुद्दों की अनदेखी हर गई है इस व्यापार एवं जीवन की सुगमता से जुड़े सुधारों से मिलने वाले व्यापक लाभ पर आघात की आशंका दिखती है बजट पर सत्ता पक्ष और विपक्ष की प्रतिक्रिया स्वाभाविक रूप से वैसे ही रही जैसे हर साल रहती है बजट का वास्तविक आंकलन तभी संभव है जब उसे खाटी राजनीति के बजाय समग्रता में देखा जाए इस लिहाज से बजट में कुछ बिंदु प्रमुखता से उभरते हुए देखे हैं पहला तो यह है कि बजट का भविष्य न्यू में की सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र पर भी ध्यान केंद्रित किया गया निवेश बढ़ाने से जीवन को सुधारने के साथ ही डीजल इसकी भी भरेगी संचार विनिर्माण मनोरंजन कलाकार लेकर परीक्षण तकनीकी से लाभ उठाने की योजना बनाई गई है और विश्वविद्यालय को मंच प्रदान करने के फैसले भी अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने में मददगार होंगे यह कुछ ऐसे कदम है जिनमें भविष्य एवं उसे संवारने की पर्याप्त क्षमता है बजट हलिया परिस्थितियों को देखते हुए पटरी पर लौट आ रही आर्थिक गतिविधियों को सहारा देता है ©Ek villain #भविष्य संवारने वाला बजट #roseday
shamawritesBebaak_शमीम अख्तर
तेरा*विसाल है मुझको *मसर्रतो की तरह,बिछड़के मर ही न जाऊँ,मैं*जांसिता की तरह//१*मिलन*हर्ष *जानलेवा मिटा न डाले कहीं *जुल्मत्तों के सन्नाटे, मेरी हयात में आजा महरबा की तरह/२ *घोर अन्धकार *शाश्वत मेरे फ़सानो के किस्से बहुत रसीले है,के लोग पूछते रहते है,लापता की तरह//३ ये*वहश्तो के तकाजे यहीं पे रहने दो,क्यूं पूछते हो मिरा हाल राजदां की तरह//४ कई दफा तेरे*हुजरे से होके गुजरें है,तेरे दीदार में *खांबिदा की तरह//५ *इबादतगाह *निद्रालु दशा तुम्हारे साथ तो सेहरा में भी मेरे हमदम,ये खिंजा भी मुझे लगती है *गुलसिता की तरह/६ *पुष्पाच्छादित चमन तेरी मसर्रते*आराइयां कहाँ"अख्तर"हो*मयस्सरे विसाल*नौख़ेज़ दास्ता की तरह//७ *संवारने वाला *मिलन*उपलब्ध *नया उत्पन्न/नया नया #shamawritesBebaak ©shamawritesBebaak_शमीम अख्तर #Nojoto तेरा*विसाल है मुझको *मसर्रतो की तरह,बिछड़के मर ही न जाऊँ,मैं*जांसिता की तरह//१ *मिलन*हर्ष*जानलेवा मिटा न डाले कहीं *जुल्मत्तों के स
Drg
मेरी डायरी के पन्नों में से एक छोटा सा, पर अहम हिस्सा। सन् २०१३, जून का महीना। कभी गरजती शाम और थरथराती रात, तो कभी भीनी सुगंध में लथपथ मिट्टी को छूते रिमझिम करते बादालों में से झाँकता सूरज; संदली सुबह का आग़ाज़। प्रेम में डूबे सूरज का बादालों से चुपके से मिलना, और इसी प्रेम में पनपा प्रेम का प्रतीक, इंद्रधनुष! (शेष अनुशीर्षक में पढ़ें) मेरी डायरी के पन्नों में से एक छोटा सा, पर अहम हिस्सा। सन् २०१३, जून का महीना। कभी गरजती शाम और थरथराती रात, तो कभी भीनी सुगंध में लथपथ मि
Rupam Srivastava
जीने के लिए सोचा ही ना था दर्द संवारने होंगे दर्द संवारने होंगे
Ek villain
समुद्र की गहराई की मिसाल देते हुए हम उन लोग पुस्तकों में समाहित ज्ञान के आधार भंडार को भूल जाते हैं मानव को ज्ञानवान एवं सबवे संस्कृति बनाए इनमें पुस्तक अतुल्य योगदान रहा है पुस्तक की इस योगदान को सम्मान देने के लिए प्रत्येक वर्ष 19 अप्रैल को विश्व पुस्तक दिवस आयोजित किया जाता है इस अवसर पर यूनेस्को जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्था के अलावा तमाम संगठन द्वारा लेखक और पुस्तकों को प्रतिष्ठित सम्मान प्रदान करना तथा पढ़ने लिखने की संस्कृति को बढ़ावा देने के प्रयास किए जाते आधुनिक दौर में पुस्तक के प्रति रुचि कम हो गई हो लेकिन उनका महत्व अधिक बढ़ जाता है इसका कारण यह कि सूचना में विस्फोट के दौरान में जाना पड़ता है ©Ek villain #जीवन संवारने की कड़ी है किताबें #SunSet
Piku Thakur
किताबें खुद को संवारने की कहाँ उसे फुर्सत होती है, माँ फिर भी बहुत खूबसूरत होती है ! पीकू ठाकुर #kitabein खुद को संवारने की , पीकू ठाकुर
Shayari#Ayushi
रोज नहीं एक पल बहुत, जीना हो जिंदगी एक पल बहुत, मौके रोज रोज नहीं आते ज़िंदगी संवारने को, संवारने को किस्मत एक मौका बहुत! ©Shayari#Ayushi #जिंदगी #मौका #संवारने #Poetry #poem #Shayari #Nojoto #Moon
प्रियदर्शन कुमार
काव्य संख्या-193 ============== वो आए थे घर संवारने उजाड़ कर निकल गये। ============== वो आए थे घर संवारने उजार कर निकल गये। पहले से थे मायूस हम वो और मायूस कर गये, वो आए थे घर संवारने उजाड़ कर निकल गये। बड़ी उम्मीद थी उनसे हमे उम्मीदों को तोड़ निकल गये, वो आए थे घर संवारने उजाड़ कर निकल गये । एक आवाज़ थी मेरे पास वो भी छीनकर निकल गये, वो आए थे घर संवारने उजाड़ कर निकल गये । भूख गरीबी बेरोजगारी से त्रस्त देश वो देशभक्ति का सर्टिफिकेट बांट रहे वो आए थे घर संवारने उजाड़ कर निकल गये । खुद-कुशी कर रहे हैं किसान यहां वो पूंजीपतियों की तिजौरियां भर रहे, वो आए थे घर संवारने उजाड़ कर निकल गये । पड़ोसियों से अच्छे रिश्ते थे मेरे उनसे भी झगड़कर निकल गये, वो आए थे घर संवारने उजाड़ कर निकल गये । सौहार्दपूर्ण ढ़ंग से जी रहे समाज में साम्प्रदायिकता के बीज बो निकल गये वो आए थे घर संवारने उजाड़ कर निकल गये । प्रियदर्शन कुमार वो आए थे घर संवारने उजाड़ कर निकल गये।