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Ek villain

#भविष्य संवारने वाला बजट #roseday #Society

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आम बजट अर्थव्यवस्था के सबसे क्षेत्र को उम्मीद की कार की रणदिखाना वाला है सामग्री दृष्टि से परिपूर्ण वृद्धि पर केंद्रित एक यह भविष्य नियमों की बजट है रोजगार को बढ़ाने वाला है फिर भी न्याय की सुधार एवं पुलिस सुधार जैसे मुद्दों की अनदेखी हर गई है इस व्यापार एवं जीवन की सुगमता से जुड़े सुधारों से मिलने वाले व्यापक लाभ पर आघात की आशंका दिखती है बजट पर सत्ता पक्ष और विपक्ष की प्रतिक्रिया स्वाभाविक रूप से वैसे ही रही जैसे हर साल रहती है बजट का वास्तविक आंकलन तभी संभव है जब उसे खाटी राजनीति के बजाय समग्रता में देखा जाए इस लिहाज से बजट में कुछ बिंदु प्रमुखता से उभरते हुए देखे हैं पहला तो यह है कि बजट का भविष्य न्यू में की सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र पर भी ध्यान केंद्रित किया गया निवेश बढ़ाने से जीवन को सुधारने के साथ ही डीजल इसकी भी भरेगी संचार विनिर्माण मनोरंजन कलाकार लेकर परीक्षण तकनीकी से लाभ उठाने की योजना बनाई गई है और विश्वविद्यालय को मंच प्रदान करने के फैसले भी अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने में मददगार होंगे यह कुछ ऐसे कदम है जिनमें भविष्य एवं उसे संवारने की पर्याप्त क्षमता है बजट हलिया परिस्थितियों को देखते हुए पटरी पर लौट आ रही आर्थिक गतिविधियों को सहारा देता है

©Ek villain #भविष्य संवारने वाला बजट

#roseday

Sadgi wali

जिस्म संवारने वाला मिले तो बताना😖 #brokenheart nojoto #sadshayri

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shamawritesBebaak_शमीम अख्तर

तेरा*विसाल है मुझको *मसर्रतो की तरह,बिछड़के मर ही न जाऊँ,मैं*जांसिता की तरह//१ *मिलन*हर्ष*जानलेवा मिटा न डाले कहीं *जुल्मत्तों के स #shamawritesBebaak

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Drg

मेरी डायरी के पन्नों में से एक छोटा सा, पर अहम हिस्सा। सन् २०१३, जून का महीना। कभी गरजती शाम और थरथराती रात, तो कभी भीनी सुगंध में लथपथ मि #प्रेम #yqbaba #yqdidi #दोस्ती #इंद्रधनुष #pagesfrommydiary #drg_diaries

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मेरी डायरी के पन्नों में से एक छोटा सा, 
पर अहम हिस्सा। सन् २०१३, जून का महीना। 

कभी गरजती शाम और थरथराती रात, 
तो कभी भीनी सुगंध में लथपथ मिट्टी को 
छूते रिमझिम करते बादालों में से झाँकता सूरज; 
संदली सुबह का आग़ाज़। प्रेम में डूबे सूरज 
का बादालों से चुपके से मिलना, और इसी प्रेम 
में पनपा प्रेम का प्रतीक, इंद्रधनुष!

(शेष अनुशीर्षक में पढ़ें) मेरी डायरी के पन्नों में से एक छोटा सा, पर अहम हिस्सा। सन् २०१३, जून का महीना। 

कभी गरजती शाम और थरथराती रात, तो कभी भीनी सुगंध में लथपथ मि

KK Mishra

जिन्दगी संवारने #nojotophoto

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 जिन्दगी संवारने

Rupam Srivastava

दर्द संवारने होंगे

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जीने के लिए 
सोचा ही ना था 
दर्द संवारने होंगे दर्द संवारने होंगे

Ek villain

#जीवन संवारने की कड़ी है किताबें #SunSet #Society

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समुद्र की गहराई की मिसाल देते हुए हम उन लोग पुस्तकों में समाहित ज्ञान के आधार भंडार को भूल जाते हैं मानव को ज्ञानवान एवं सबवे संस्कृति बनाए इनमें पुस्तक अतुल्य योगदान रहा है पुस्तक की इस योगदान को सम्मान देने के लिए प्रत्येक वर्ष 19 अप्रैल को विश्व पुस्तक दिवस आयोजित किया जाता है इस अवसर पर यूनेस्को जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्था के अलावा तमाम संगठन द्वारा लेखक और पुस्तकों को प्रतिष्ठित सम्मान प्रदान करना तथा पढ़ने लिखने की संस्कृति को बढ़ावा देने के प्रयास किए जाते आधुनिक दौर में पुस्तक के प्रति रुचि कम हो गई हो लेकिन उनका महत्व अधिक बढ़ जाता है इसका कारण यह कि सूचना में विस्फोट के दौरान में जाना पड़ता है

©Ek villain #जीवन संवारने की कड़ी है किताबें

#SunSet

Piku Thakur

#kitabein खुद को संवारने की , पीकू ठाकुर

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किताबें खुद को संवारने की कहाँ उसे फुर्सत होती है, माँ फिर भी बहुत खूबसूरत होती है !
 पीकू ठाकुर #kitabein खुद को संवारने की ,
पीकू ठाकुर

Shayari#Ayushi

रोज नहीं एक पल बहुत,
जीना हो जिंदगी एक पल बहुत,
मौके रोज रोज नहीं आते ज़िंदगी संवारने को,
संवारने को किस्मत एक मौका बहुत!

©Shayari#Ayushi #जिंदगी #मौका #संवारने #Poetry #poem #Shayari #Nojoto 
#Moon

प्रियदर्शन कुमार

वो आए थे घर संवारने उजाड़ कर निकल गये।

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काव्य संख्या-193
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वो  आए थे घर संवारने 
उजाड़ कर निकल गये। 
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वो  आए थे घर संवारने 
उजार  कर निकल गये। 

पहले  से  थे मायूस हम
वो और मायूस  कर गये, 
वो आए थे  घर संवारने 
उजाड़  कर  निकल गये। 

बड़ी उम्मीद थी उनसे हमे
उम्मीदों को तोड़ निकल गये, 
वो  आए  थे  घर  संवारने 
उजाड़  कर  निकल  गये । 

एक आवाज़ थी मेरे पास 
वो भी छीनकर निकल गये, 
वो  आए  थे  घर  संवारने 
उजाड़  कर  निकल  गये । 

भूख गरीबी बेरोजगारी से त्रस्त देश
वो देशभक्ति का सर्टिफिकेट बांट रहे 
वो    आए    थे    घर    संवारने 
उजाड़    कर    निकल    गये  । 

खुद-कुशी कर रहे हैं किसान यहां 
वो पूंजीपतियों की तिजौरियां भर रहे, 
वो    आए    थे    घर    संवारने 
उजाड़     कर    निकल    गये  । 

पड़ोसियों से अच्छे रिश्ते थे मेरे 
उनसे भी झगड़कर निकल गये, 
वो   आए    थे    घर   संवारने 
उजाड़    कर    निकल   गये  । 

सौहार्दपूर्ण ढ़ंग से जी रहे समाज में 
साम्प्रदायिकता के बीज बो निकल गये 
वो    आए   थे    घर    संवारने 
उजाड़   कर    निकल    गये । 
                प्रियदर्शन कुमार वो आए थे घर संवारने उजाड़ कर निकल गये।
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