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Hedayat Mustaqueem
Happy Holi THIS POEM IS WRITTEN BY ME ON HOLI आओ मिलकार हम सब खेले होली, ले शपथ करने की, सब से मीठी बोली, मिल्कर, बडे, बुढों, बच्चों के साथ, सब पर हम चलाऐं प्रेम की गीली, बुराई, भाराष
अनुराग चन्द्र मिश्रा
Alone समाज हमसे या हम समाज से, अक्सर प्रश्न समाज से आतें हैं, हमारा कोई घर नहीं है, हमारा कोई देश नहीं है, जहां जाते हैं वही के हो जातें हैं, हमारा कोई भेष नहीं है, कुछ लोग गांव वाला कहते हैं, कुछ लोग हमें शहरी पुकारते हैं, हम गांव वालों से शहरी, शहरी.., लोगों से गंवार सा बतियाते हैं, शख़्स यहाँ असभ्य नज़र आते हैं, लोग कहते हैं हमें में शिष्टता नहीं है, कोई तो बताए समाज क्या है, सामाजिकता की परिभाषा क्या है, किस देश के किस धर्म के हैं ये लोग, देश देश की संस्कृति में क्या ख़ास छुपा है, लोगों में इनके धर्म की भी इनमें समझ नहीं है, सही सही, गलत गलत की इनमें तमीज़ नहीं है, नर और नारी में फ़र्क बतलाते हैं पहचान नहीं हैं, हमारा कोई घर नहीं है, समाज को हमसे बैर सही, आपसी बैर से समाज समाज भी नहीं है| "समाज" समाज हमसे या हम समाज से, अक्सर प्रश्न समाज से आतें हैं, हमारा कोई घर नहीं है, हमारा कोई देश नहीं है, जहां जाते हैं वही के हो जातें है
Umesh Rathore
मेरी खुद की आवाज (👇अनु शीर्षक 👇) Please give your precious comments and suggestion मेरी खुद की आवाज, एक लेख है पर खुद का विचार किसे कहेंगे खुद की आवाज, जो खुद के विचार है, विचारों के रूप में समाज का सृजन, हर व्यक्ति समाज से
Vickram
कोई दिल से कोई दिमाग से जुड़ा हुआ था यहां,,, कोई जज्बातों से भी किसी के जुड़ा हुआ था,,, किसी को अपनी चलानी थी यहां हर किसी पर,,, कोई बनकर दर्शक किसी कोने में बैठा हुआ था,,,, ©Vickram आंखिर हुआ क्या था,,,, समाज
Ashish Premvar
समाज के हरेक नागरिक से जांच पड़ताल करने पर पता चला कि सभी समाज के नागरिक लुभावने और आकर्षित छल, द्वेष-भाव, कपट, भ्रष्ट, भ्रम, दुर्व्याहार और शासन में अभिनव कर रहे है। जो समाज के भविष्य ही नही बर्बाद कर रहे है बल्कि आने वाले समाज का पथ दिखा रहे। जिससे दुप्रर्भाव ही नही बल्कि बुरा असर पड़ेगा । जिससे विनाश होना तय ही नही सुनिश्चित है। " समाज ही प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष स्वरुप में सबकी दुनिया है" कवि और लेखक आशीष अनुपम समाज के दर्पण है