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श्री सबरी भजन मंडल
पग घुंघरूं बांध मीरा नाची रे॥ मैं तो मेरे नारायण की आपहि हो गै दासी रे। पग घुंघरूं बांध मीरा नाची रे। लोग कहै मीरा भ बावरी न्यात कहै कुलनासी रे। पग घुंघरूं बांध मीरा नाची रे। बिष का प्याला राणाजी भेज्या पीवत मीरा हाँसी रे। पग घुंघरूं बांध मीरा नाची रे। मीरा के प्रभु गिरधर नागर सहज मिले अबिनासी रे। पग घुंघरूं बांध मीरा नाची रे। ©श्री सबरी भजन मंडल 🙏🌹पग घुंघरूं बांध मीरा नाची रे॥ मैं तो मेरे नारायण की आपहि हो गै दासी रे। पग घुंघरूं बांध मीरा नाची रे। लोग कहै मीरा भ बावरी न्यात कहै कुल
🙏🌹पग घुंघरूं बांध मीरा नाची रे॥ मैं तो मेरे नारायण की आपहि हो गै दासी रे। पग घुंघरूं बांध मीरा नाची रे। लोग कहै मीरा भ बावरी न्यात कहै कुल
read moreDivyanshu Pathak
नाच-नाच पिव रसिक रिझाऊँ प्रेमी जनकूँ जाचूँगी ! प्रेम प्रीतिका बाँधि घुँघरू सूरत की कछनी काछूँगी ! लोक लाज कुल की मरजादा यामें एक न राखूँगी ! पिवके पलंगा जा पौडूंगी मीरा हरि रँग राचूँगी ! Good morning ji ☺☕☕☕💕🐒💕💕🌼🌼💐💐🍫🍫💕☕👨🌼💕👨🍉🍉🍉🍨🍨🍨🍵 : मीराबाई महाराणा कालभोज (वप्पा रावल) की वंश परम्परा में ४४वे महाराणा संग्राम सिंह (१५०९-१५२७ ई
Good morning ji ☺☕☕☕💕🐒💕💕🌼🌼💐💐🍫🍫💕☕👨🌼💕👨🍉🍉🍉🍨🍨🍨🍵 : मीराबाई महाराणा कालभोज (वप्पा रावल) की वंश परम्परा में ४४वे महाराणा संग्राम सिंह (१५०९-१५२७ ई
read moreLohit Tamta
आज बहुत दिनों बाद एक नज़्म लिखी है, नज़्म में सिर्फ़ तेरी ही बात लिखी है, वो हमारी पहली मुलाक़ात की दास्तां लिखी है, ट्रैन का मेरा सफ़र और फिऱ तेरे शहर में गुज़री मेरी रात की कहानी लिखी है, मेरी ट्रेनिंग के टाइम में वो छुट्टियों के बहाने बना कर तुझसे मुलाकात की वो हसीन शब-ए-वस्ल लिखी है, कैसे तू मेरी नब्ज़ देख कर मेरा हाल बता देती थी, बुख़ार में मेरा सर दबा देती थी, जब-जब तू मुझे सीने से लगाती थी मानों ज़िन्दगी वहीं थम सी जाती थी, तेरे होंठ मेरे होंठो से टकराते थे, तब-तब मेरी साँसों को महका देते थे, वो छत में हमारा बैठ कर ढेर सारी बातें करना, तेरा वो हँसते हुए वो मेरे बच्पन की नादानियों के किस्से सुन्ना, तेरी वो हाँसी के अफसाने लिखे है, आज बहुत दिनों बाद एक नज़्म लिखी है, नज़्म में सिर्फ़ बस तेरी ही बात लिखी है, तेरी नाक का वो तिल जो मुझे बहुत प्यारा लगता था, दुनियां में तेरे सिवा मुझे कोई ख़ुबसूरत नहीं लगता था, मेरी पहली पोस्टिंग में तेरा वो मुझे दवाइयों से भरा हुआ बॉक्स देना, हर दावा को कैसे और कब खाना है वो सब डिटेल्स में लिख देना, तेरी आँखे उस समंदर से भी ज्यादा गहरी थी जिनमें कभी मैं डूब जाया करता था, मेरा वो डयूटी के लिए तुझसे दूर जाना और तेरा वो दरवाज़े में खड़े रह के बस मुझे घूरना लिखा है, हिज्र की रातों में बहे तेरे आँसूओं की सिहाई से ये नज़्म लिखी है, नज़्म में बस तेरी ही बात लिखी है, काश तू होती तो आज मैं यूँ बंजारा ना फ़िरता, कोई बेहाया मुझसे मेरी औकात ना पूछती, तेरे लिए मेरा इश्क़ हमेशा खास था, कड़ी धूप में छाव था, काश मैं कभी तेरे मन को समझा होता, खुदगर्ज़ी में तेरे से दूर ना होता, अपनी पलकों में मेरे ख़्वाब भी सजा लेती थी, मेरे बदले के आँसू भी बहा लेती थी, मेरी पल्लो मुझे अपनी पलकों में छुपा लेती थी, तेरी पलकों पे सजे मेरे ख़्वाबों की दुनियां लिखी है, आज बहुत दिनों बाद एक नज़्म लिखी है और नज़्म में सिर्फ़ तेरी ही बात लिखी है। ©Lohit Tamta आज बहुत दिनों बाद एक नज़्म लिखी है, नज़्म में सिर्फ़ तेरी ही बात लिखी है, वो हमारी पहली मुलाक़ात की दास्तां लिखी है, ट्रैन का मेरा सफ़र और फिऱ ते
आज बहुत दिनों बाद एक नज़्म लिखी है, नज़्म में सिर्फ़ तेरी ही बात लिखी है, वो हमारी पहली मुलाक़ात की दास्तां लिखी है, ट्रैन का मेरा सफ़र और फिऱ ते #Poetry #missingyou
read moreVikas Sharma Shivaaya'
🙏सुंदरकांड 🙏 दोहा – 24 राक्षस हनुमानजी की पूंछ में आग लगाने का सुझाव देते है सब लोगो ने सोच कर रावणसे कहा कि वानर का ममत्व पूंछ पर बहुत होता है इसलिए इसकी पूंछ में तेल से भीगे हुए कपडे लपेट कर आग लगा दो ॥24॥ श्री राम, जय राम, जय जय राम हनुमानजी की पूँछ में राक्षसों द्वारा आग लगाने का प्रसंग रावण हनुमान जी की पूँछ में आग लगाने का हुक्म देता है पूँछहीन बानर तहँ जाइहि। तब सठ निज नाथहि लइ आइहि॥ जिन्ह कै कीन्हसि बहुत बड़ाई। देखेउँ मैं तिन्ह कै प्रभुताई॥1॥ जब यह वानर पूंछ हीन होकर (बिना पूँछ का होकर) अपने मालिक के पास जायेगा,तब अपने स्वामी को यह ले आएगा॥इस वानर ने जिसकी अतुलित बढाई की है,भला उसकी प्रभुता को मैं देखूं तो सही कि वह कैसा है?॥ राक्षस हनुमानजी की पूँछ में आग लगाने की तैयारी करते है बचन सुनत कपि मन मुसुकाना। भइ सहाय सारद मैं जाना॥ जातुधान सुनि रावन बचना। लागे रचैं मूढ़ सोइ रचना॥2॥ रावन के ये वचन सुनकर हनुमानजी मन में मुस्कुराए और मन में सोचने लगे कि मैंने जान लिया है कि इस समय सरस्वती सहाय हुई है क्योंकि इसके मुंह से रामचन्द्रजी के आने का समाचार स्वयं निकल गया॥तुलसीदास जी कहते है कि वे राक्षस लोग रावण के वचन सुनकर वही तैयारी करने लगे अर्थात तेल से भिगो भिगोकर कपडे उनकी पूंछ में लपेटने लगे॥ हनुमानजी पूँछ लम्बी बढ़ा देते है रहा न नगर बसन घृत तेला। बाढ़ी पूँछ कीन्ह कपि खेला॥ कौतुक कहँ आए पुरबासी। मारहिं चरन करहिं बहु हाँसी॥3॥ उस समय हनुमान जी ने ऐसा खेल किया कि अपनी पूंछ इतनी लंबी बढ़ा दी कि जिसको लपेटने के लिये नगरी में कपडा, घी व तेल कुछ भी बाकी न रहा॥नगर के जो लोग तमाशा देखने को वहां आये थे,वे सब बहुत हँसते हैं॥ राक्षस हनुमानजी की पूँछ में आग लगा देते है बाजहिं ढोल देहिं सब तारी। नगर फेरि पुनि पूँछ प्रजारी॥ पावक जरत देखि हनुमंता। भयउ परम लघु रुप तुरंता॥4॥ अनेक ढोल बज रहे हे, सब लोग ताली दे रहे हैं,इस तरह हनुमानजी को नगरी में सर्वत्र फिरा कर फिर उनकी पूंछमें आग लगा दी॥हनुमानजी ने जब पूंछ में आग जलती देखी तब उन्होने तुरंत बहुत छोटा स्वरूप धारण कर लिया॥ हनुमानजी छोटा रूप धरकर बंधन से छूट जाते है निबुकि चढ़ेउ कपि कनक अटारीं। भई सभीत निसाचर नारीं॥5॥ और बंधन से निकल कर पीछे सोने की अटारियों पर चढ़ गए,जिसको देखते ही तमाम राक्षसों की स्त्रीयां भयभीत हो गयी॥ आगे शनिवार को ...., विष्णु सहस्रनाम (एक हजार नाम) आज 933 से 944 नाम 933 अनन्तश्रीः जिनकी श्री अपरिमित है 934 जितमन्युः जिन्होंने मन्यु अर्थात क्रोध को जीता है 935 भयापहः पुरुषों का संस्कारजन्य भय नष्ट करने वाले हैं 936 चतुरश्रः न्याययुक्त 937 गभीरात्मा जिनका मन गंभीर है 938 विदिशः जो विविध प्रकार के फल देते हैं 939 व्यादिशः इन्द्रादि को विविध प्रकार की आज्ञा देने वाले हैं 940 दिशः सबको उनके कर्मों का फल देने वाले हैं 941 अनादिः जिनका कोई आदि नहीं है 942 भूर्भूवः भूमि के भी आधार है 943 लक्ष्मीः पृथ्वी की लक्ष्मी अर्थात शोभा हैं 944 सुवीरः जो विविध प्रकार से सुन्दर स्फुरण करते हैं 🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' 🙏सुंदरकांड 🙏 दोहा – 24 राक्षस हनुमानजी की पूंछ में आग लगाने का सुझाव देते है सब लोगो ने सोच कर रावणसे कहा कि वानर का ममत्व पूंछ पर बहुत होता
🙏सुंदरकांड 🙏 दोहा – 24 राक्षस हनुमानजी की पूंछ में आग लगाने का सुझाव देते है सब लोगो ने सोच कर रावणसे कहा कि वानर का ममत्व पूंछ पर बहुत होता #समाज
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