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Parasram Arora
सह लूँगा हर गम मौन रह क़र......पी लूँगा गम का हर कतरा सागर बन क़र .....दग्ध हुए आकुल मन पर बरस जाऊँगा बादल बन क़र .......वक्त के थपेड़ो से निर्मित हर हताशा को दे दूंगा संबल आकाश बन क़र....... संबल ....
Brandavan Bairagi "krishna"
।। संबल ।। देना मुझे संबल ऐ मेरे परमात्मा। तेरे सिवा कोई नहीं दिखता मुझे। चारों तरफ तेरी ही लीला का विस्तार है। तू ही निराकार तू ही साकार है। दीन-दुखियों की करता है सहायता। बृन्दावन बैरागी"कृष्णा" ©Brandavan Bairagi "krishna" ।।संबल।। #Hope
Jagveer Singh shayer
🧘🧘 योग जीवन का सार है योग से ध्यान अपार है योग में प्राणों का आवागमन योग से ही जनकल्याण है। ©Jagveer Singh shayer #योग से ही जनकल्याण है..
Rajesh rajak
ये अंधेरे देख ले मुंह तेरा काला हो गया, मां ने आंखें खोल दी घर में उजाला हो गया। गुड मॉर्निंग, शुभ प्रभात, मातृ दिवस पर सभी माओं को नमन। एक संबल,मां,।
Santosh Sinha
रूबरू मिलोगे तो कायल हो जाओगे दूर से हम ज़रा मगरूर ही दिखाई पड़ते हैं दिल संबल जा जरा ...
Ek villain
विश्व विद्यालय एवं उच्च शिक्षण संस्थान अपने नूतन शिक्षणी परिवर्तन एवं उपलब्धियों को केवल केंपस तक ही नहीं आपूर्ति कैंपस की क्षमता दक्षता एवं अपने परिणाम को जन समुदाय तक पहुंचाना तभी उनके सार्थक तथा यदि केंपस किस शिक्षण गुणवत्ता का प्रसार जन समुदाय की ओर से हो वह विकास संतुलन समृद्धि एवं स्थानीय नहीं होगा वास्तव में समाज हित एवं राष्ट्रीय हित की भावना को शैक्षणिक एवं गौर से क्षणिक क्रियाकलापों के माध्यम से धरातल पर मूर्त रूप में देने कि विश्वविद्यालय की स्थापना का मूल्य को दृश्य है इस दृष्टि को व्यवहारिक आयाम देने के लिए संस्कारों और विश्वविद्यालयों के बीच अंतर सवाद आप रिवर है इसके माध्यम से उच्च शिक्षा संस्थान आत्मनिर्भर भारत की संकल्पा को मूर्त रूप दे सकते हैं यही उच्च शिक्षा का अभीष्ट भी ©Ek villain #जनकल्याण ही उच्च शिक्षा का अभी व्यस्त है #Walk
Sachin Ratnaparkhe
ग़ज़ल-ए-सियासत यहां कुछ भी अटल नहीं होता सियासत में, हर गुल हमेशा कंवल नहीं होता सियासत में। पैर कहां टिके है तुम्हे ही नहीं पता है क्युकी, आसमां या फिर भूतल नहीं होता सियासत में। भूख-आे-प्यास की शिकायतें बेकार है यहां, कोई दाना या जल नहीं होता सियासत में। नस्ल-ओ-वतन-परस्ती तो महज जुमला ही है, कभी खुदगर्ज से छल नहीं होता सियासत में। यह धंधा ही तो है पागल बनाने का सबको, मगर हर कोई पागल नहीं होता सियासत में। यहां बाते होती है मुनाफा आे वक्त देखकर, जो आज है वो कल नहीं होता सियासत में। यहां रखो कदम गर तो खुद के दम पर रखो, कोई साथ या संबल नहीं होता सियासत में। सियासत का दूसरा नाम दलदल भी है राही, खुदके सिवा कोई दल नहीं होता सियासत में। #ग़ज़ल_ए_सियासत #अटल #कंवल #नस्ल_ओ_वतनपरस्ती #खुदगर्ज #संबल #दलदल