Find the Latest Status about छापी from top creators only on Nojoto App. Also find trending photos & videos about, छापी.
yogesh atmaram ambawale
स्वप्न वगैरे नाही,पण एक इच्छा होती, काही खास कवितांची एक पुस्तिका छापायची. मनी वसे ते स्वप्नी दिसे,माझे ही तसेच झाले होते, माझ्या कवितांचे छापील पुस्तक मी स्वप्नात पाहिले होते. मग काय केला विचार, ह्या वर्षी छापावे पुस्तक पूर्ण करावे स्वप्न, पण कामाच्या व्यापात वर्ष तर सरलेच पण गेले राहुनी अपुरे एक स्वप्न. सुप्रभात माझ्या मित्र आणि मैत्रिणीनों कसे आहात? तुम्ही सुद्धा सज्ज आहात ना नववर्षाच्या स्वागतासाठी, चला तर मग आज लिहुया नव्या विषयावर. विषय
Vikram Prashant "Tutipanktiyan "
आज हिन्द में लाखों कविताएं लिखीं जा रहीं है, पर ये कविता प्यार से उपजी हुई नहीं है और ये बिछड़े प्रेमी का संवाद भी नही है किसी पत्रिका के विशेष अंक में छापी गई नहीं हैं। ये लिखी जा रही है, स्याह तप्ती सड़कों पर खून से लतपथ फोके पड़े पैरों से पसीने से लाचारी से चीख से झंनाहट से भन्नाहट से। पर ये कविता आत्मनिर्भर है, इसने अपने छापे जाने के लिए भरोषा नहीं किया मीडिया पर पत्रकार पर कवि पर कथाकार पर यूनिवर्सिटी के सेमिनार पर, सरकार पर कमिटी की रिपोट पर सरकारी योजनाओं पर प्रथम सेवक पर आम सीएम पर। ये कविता सक्षम है, खोखले आदर्शवादी हिंदुस्तान को आईना दिखाने में, और चीख चीख कर कह रही है हिंदुस्तान की कहानी कह रहीं है अमीरों के भरोसे गरीबों की तकदीर छोड़ देनेवाले नेताओं की कहनीं ग़ांधी के ट्रुस्टीशिप की विनोवा के भूदान की मोदी की अमीरों से अपील की। ये कविता गढ़ रही है, एक हिंदुस्तान की तस्वीर जिसे दिखाने की हिम्मत किसी मीडिया में नहीं थी जिसे छापने की हिम्मत किसी पत्रिका में न थी। जिसे छुपाने की कोशिश की गई, चीखते नारों से विश्वगुरु के खोखले वादों से भव्य इतिहास की आड़ में। और जो दब गई थीं, सपनों की भीड़ में थक कर सों गईं थीं पर जिंदा थीं और आज वो चमक रही है खून सी हिंदुस्तान की सड़क पर पीड़ा लिए पिघल कर लड़ कर सूरज की रोशनी में रात की अन्धेरी में टिमटिमाते तारों में और चीख रही है मौत गहरे सन्नाटों में साजिशों में। ©Vikram Prashant "Tutipanktiyan " Read in caption आज हिन्द में लाखों कविताएं लिखीं जा रहीं है, पर ये कविता प्यार से उपजी हुई नहीं है और ये बिछड़े प्रेमी का संवाद भी नही है
sandy
पहाटेपासूनच पाऊस कोसळतं होता. इतरत्र पाऊस फक्त पडतो, मुंबईत तो कोसळतो! 'रोमँटिक पाऊस' वगैरे शब्द मुंबईबाहेरचें. बाहेरचा येऊन कोणी मुंबईत पाव