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manju sharma
कोहरे में तुझे तलाश करते हैं कहां चला गया तू हम तुझे ढूढा करते हैं पर तू नजर आता है ना तेरी परछाई हर दिन तुझे याद करते हैं कोहरे
Shashank
सुबह हो चुकी थी..... सामने की सड़क कोहरे से भरी थी.... मैंने सोचा इन कदमों को थोड़ा टहला के आता हूं, अपने इस बुझे बुझे से मन को थोड़ा बहला के आता हूं.... सो निकल पड़ा कुछ मोटे मोटे गर्म कपड़े पहन कर... थोड़ी- बाडी ठंड अपने इन कानों पर सहन कर... चलने लगा तभी देखा सड़क किनारे खेत पर कोई मुझसे पहले से जाग रहा था.... पतली सी कमीज में उसका शरीर ठंड से कांप रहा था.... मैंने बरबस पूछ ही लिया तुम्हें ठंड नहीं लगती क्या? वो बोल पड़ा लगती तो है... लेकिन पेट भरने के लिए कुछ तो करना ही पड़ेगा.. ठंड ही सही मगर इसे सहन करना ही पड़ेगा.... अपनी साल भर की मेहनत यूं खुले आसमान के नीचे कैसे छोड़ दू?...... बच्चे मेरे पढ़ना चाहते हैं उनका ये सपना मैं कैसे तोड़ दूं?..... मैं इस फसल को अकेला छोड़ दूंगा तो इसे नीलगाय खा जाएगी.... घर में मेरी एक बीमार मां भी है फिर उसकी दवाई कैसे आएगी?..... मैंने बोला बिना कंबल के पूरी रात ठंड में कैसे काट लेते हो?... इतनी मेहनत से पैदा किया अन्न सबको कैसे बांट देते हो?.... वो बोला खुद भूखे रहकर यह अन्न बेचना ही पड़ेगा.... घर में एक बहन भी है जिसकी शादी में दहेज भेजना ही पड़ेगा... मैंने कहा अच्छा ये बात है... कम से कम एक कंबल तो खरीद लेते इतनी ठंडी रात है.... वो बोला बेशक एक कंबल मैं खरीद लाता.... मगर फिर अपने बच्चों की फीस कहां से भर पाता?.... मैं अब और आगे कुछ नहीं बोल पाया उसकी मजबूरी के पुलिंदे का वजन सवालों से नहीं तौल पाया.... उसकी जिम्मेदारियों में लिपटी मजबूरी बेहद कड़क थी... अब मेरे सामने वहीं कोहरे से ढकी सड़क थी..... —शशांक पटेल सामने की सड़क कोहरे से भरी थी.....
Priti
कोई आग जैसे कोहरे में दबी-दबी सी चमके, तेरी झिलमिलाती आँखों में अजीब सा शमा है। ©Priti कोई आग जैसे कोहरे
Rani Bari Kui
कोहरे से सीख - जीवन का रास्ता स्पष्ट ना दिखाई दे तो बहुत दूर देखने की कोशिश व्यर्थ है एक-एक कदम चलो रास्ता खुलता जाएगा ©Rani Bari Kui #dhundh कोहरे से सीख
Girish Singh Uttrakhandi
यह वादियां यह फिजाएं बुला रही है तुम्हें यह वादियां यह फिजाएं बुला रही है तुम्हें ©Girish Singh Uttrakhandi सर्दी में कोहरे का कोहराम
सिन्टु सनातनी "फक्कड़ "
कोहरा दिखती नहीं इंसानियत, धुंधला चुकी तस्वीर इंसानो की, और हम दोष कोहरे पे मढ़ आते हैं। कुछ जलते पराली पंजाब हरियाना के किसानों की, जहर दिल्ली की फिजाँऔं में घोल आता हैं, ये बात हरकौई यहाँ सुनाता हैं। कल-कारखानो लाखों वाहनो के निकलते धुएँ के प्रदुषण को, शानो शौकत ये अपनी बताता हैं। कायरतापूर्ण आँखों के सामने होते देखी थी, इज्ज़त तार-तार नारी (निर्भया) की, और बजह धुंध कोहरे से ना देख पाने की बड़ी बेशर्मी से बताता हैं। हमसे बेहतर तो ये सर्द माह के कोहरे हैं, कमसे कम मिज़ाज मौसम का तो समझाता हैं। दिखता नहीं इंसानियत हमारे खुद के वहम से, और अंततः दोष हम कोहरे पे ही मढ़ आते हैं। (हर विषय पे लिखते हैं प्रेमी कविता अपने प्रीत की, मैं ठहरा अनपढ़ जाहिल सिंन्टु फिर क्यों ना करु बात इंसानियत की हित की) #कोहरे मौसम का मिज़ाज समझाता हैं।