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Shabdveni
राजीव भारती
कविता .... कविताएं लिखी नहीं जातीं कविता तो अंतस में अनायास उपजी भावनाओं को शब्दों में पिरोने और उसे हार का स्वरूप प्रदान करने या फिर ; भावनाओं को मूर्तरूप प्रदान करने की एक सुन्दर कला है जो पाठक को किसी कवि या रचनाकार के मन में एक विशिष्ट काल में उपजी भावनाओं से आत्मसात् कराती है ठीक उसी भांति जैसे एक मूर्तिकार एक मूर्ति गढ़ता है और उसे जीवंतता प्रदान करता है पर न जाने क्यूं कुछ लोग कवि और उसकी कविता का उपहास करते हैं पर खेद है , कि अपनी दृष्टि में वे कविता को अत्यंत ही सहज समझकर अपनी अधूरे ज्ञान या अज्ञानता का परिचय देते हैं ! राजीव भारती ©Rajiv Ranjan Verma #कविता # राजीव भारती #Bicycle
राजीव भारती
गणेश वंदना अभिनंदन प्रभुजी तेरा वंदन मातृभक्त, क्षिप्रा,पार्वतीनंदऩ़ तुम प्रथम पूज्य आज्ञापालक देवादेव , गजानन,गणनायक़ भीम, तरुण, हरिंद्र, विनायक देवव्रत,कीर्ति, सिद्धिविनायक़ वरप्रद, भूपति, वरदविनायक़ रुद्रप्रिय़, क्षेमंकरी,शशिवर्णक़ बुद्धिनाथ,लम्बकर्ण़, लम्बोदर सिद्धिदाता,धूम्रवर्ण़, प्रथमेश्वऱ़ मूषक वाहन,महाबल, महेश्वर विघ्नराज़, ईशानपुत्रं,एकाक्षर मृत्युंजय,मंगलमूर्ति, यशस्कऱ़ विद्यावारिधि,बुद्धिप्रिय़,ऊंकार एकदंत प्रभु ,चतुर्भुज,गदाधर तुम्हीं स्वरुप,विश्वमुख़,द्वैमातुऱ़ कपिल,कवीश़, हेरंब,विघ्नहऱ़ विकट,अमित, प्रमोद,पीतांबर रक्त,सिद्धान्थ़,गुणिऩ़,कृपाकऱ़ विघ्न हरिएं सबके हे विघ्नेश्वऱ राजीव भारती ©Rajiv Ranjan Verma #ganesha # कविता # राजीव भारती
राजीव भारती
बारिश और बचपन की यादें बारिश की नन्हीं नन्हीं बूंदें फिर से आज़ चेहरे पर गिरकर यादें बचपन की ताज़ी कर गयीं हैं बाहें फैलाकर बारिश की बूंदों में आकाश की ओर निहारते हुए बेसुध होकर क़ईं क्षणों तक खड़ा रहना पुरानी कापियों या अखबार के पन्नों से कागज़ की कश्तियां बनाकर बारिश के बहते पानी की सतह पर छोड़ना रिमझिम फुहारों में नृत्य करते मयूर कितने ही खूबसूरत लगते थे खुशनुमा मौसम में क्या बच्चे क्या बूढ़े सब के सब आनंदित होते थे एक खूबसूरत सा एहसास और चहुं ओर हरियाली के दिलकश नजारे लगते थे अत्यंत ही मनमोहक और मन को अति प्यारे सोंधी सोंधी खुशबू मिट्टी की मन को बहुत भाती थी गरमागरम चाय और पकौड़े दिल को बहुत ही लुभाती थी बारिश की ये नन्हीं नन्हीं बूंदें आज़ भी मिट्टी से मिला करती हैं पर, मालूम नहीं क्यों मिट्टी की खुशबू शायद कहीं गुम सी हो गई हैं वो मयूर और कश्तियां भी कहीं ओझल हो गई हैं बारिश में भींगने की बात शायद अब पुरानी हो गई क्योंकि जिंदगी हमारी घड़ी की सूइयों में न जाने कहीं खो गई । राजीव भारती पटना बिहार (गृह नगर) ©Rajiv Ranjan Verma #कविता # राजीव भारती #rain