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pintu tiwari

मुंशी प्रेमचंद जी का विचार

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Dharmendra singh

प्रेमचंद

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इस धरती पर प्रेमचंद एक ऐसे साहित्यकार थे जिनके फ़टे धोती कुर्ता से भी ज्ञान की गंगा बहती थी ।धन्य है वह आत्मा जो तमाम जिंदगी अभाव में रहकर भी देश, दुनिया और समाज के प्रति उनके भाव में किसी भी प्रकार की कमी नहीं आई ।वे जिंदगी से संघर्ष करते हुए लिखते रहे ,लिखते रहे जो हिंदी साहित्य के पाठकों के लिए किसी वेद उपनिषद के ज्ञान से कम न था। बनारस के लमही गांव में31जुलाई1880में जन्म लेकर प्रेमचंद ने बनारस की पवित्रता को  और बढ़ा दिया था।  उस भूमि की उर्वरता का कमाल था कि प्रेमचंद के कलम से निकले गोदान, गबन, कायाकल्प ,रंगभूमि ,कर्मभूमि, सेवा सदन ,प्रतिज्ञा ,निर्मला जैसी अनेक कालजई रचनाएँ आज भी साहित्याकाश में चांद सूरज की तरह दैदीप्यमान है। समाज के उच्च वर्ग से लेकर निम्न वर्ग तक की जो भी समस्याएं थी ,विसंगतियां थी कुप्रथा और रूढ़ परंपराएं थी सब पर प्रेमचंद ने लिखा जो पाठकों के मानस पटल पर किसी चलचित्र की भांति चल कर जीवंत हो उठता था। आज हिंदी साहित्य में साहित्य की सेवा करने वाले रचनाकारों की कमी नहीं है किंतु 08 अक्टूबर 1936 में प्रेमचंद के काल कवलित होने के  बाद जो स्थान रिक्त हुआ था वह आज तक भर नहीं पाया है ।आज उनकी जयंती है ।इस पवित्र अवसर पर उनके फटे पुराने जूते से झांकती पावन चरणों में हृदय के अंतर तल से शब्दाजंलि।

©Dharmendra singh प्रेमचंद

Ganesh Shewale

Rajesh K

@प्रेमचंद

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सुप्रभात दोस्तों

©Rajesh K @प्रेमचंद

अजय शर्मा

सोने और खाने का नाम जिंदगी नहीं है, 

आगे बढ़ते रहने की लगन का नाम जिंदगी हैं।

~प्रेमचंद #प्रेमचंद

Dr. Bhagwan Sahay Meena

असली कमल का फूल #सस्पेंस

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पंडित धीरज शुक्ला

बहु का असली चेहरा #nojotophoto #कॉमेडी

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 बहु का असली चेहरा

Vishal Aadi Patwa

मंजिल का असली मजा #VAP

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ये भी सही है कि अपनो का साथ हो यो मंजिल आसान हो जाती है 
लेकिन अकेले मंजिलो की लड़ाई भले ही मुश्किल हो लेकिन जीतने का असली मजा तो अकेले लड़ने में है |
                 #VAP #NojotoQuote मंजिल का असली मजा

Prashant Mishra

प्रेमचंद

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सन 1880 में वो धरती पर आए थे
लमही की मिट्टी को धन्य बनाये थे
कलम के दम पर दुनियाभर में छाए थे
काशी का परचम खुलकर लहराए थे

वो 'पूस की रात' में 'दो बैलों की कथा' लिखे
वो 'ईदगाह' में  हामिद का चिमटा लिक्खे
वो कफ़न, ग़बन और 'सवा सेर गेहूँ' लिखकर
'बूढ़ी काकी' में जनमानस की व्यथा लिखे

गोदान लिखे, वरदान लिखे, बलिदान लिखे
आधार लिखे, उद्धार लिखे, धिक्कार लिखे
वो रंगभूमि, वो कर्मभूमि,  अधिकार लिखे
चमत्कार लिखे, सत्याग्रह और शिकार लिखे

वो गिला लिखे, लैला लिक्खें और नशा लिक्खे
चोरी, लांछन, कैदी लिखकर के क्षमा लिक्खे
दफ़्तर लिक्खे, फिर ग़बन, और इस्तीफ़ा लिक्खे
वो शुद्र लिखे और ठाकुर जी का कुआं लिखे 

'बेटों वाली विधवा' लिक्खे और 'माँ' लिक्खे
निर्मला , प्रतिज्ञा , प्रेमाश्रय , प्रेमा  लिक्खे
कितना गिनवाऊँ प्रेमचंद क्या क्या लिक्खे
'पंच परमेश्वर' और 'नमक का दारोगा' लिक्खे

उस उपन्यास सम्राट को चलो नमन कर लें
स्मृतियों से सज्जित यह पूर्ण चमन कर लें

--प्रशान्त मिश्रा प्रेमचंद

Kamlesh Gupta Nirala

प्रेमचंद #Quotes

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