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N S Yadav GoldMine
जो नरश्रेष्ठ अपने शस्त्र के वेग से देवताओं को भी नष्ट कर सकते थे वे ही ये युद्ध में मार डाले गये हैं पढ़िए महाभारत !! 📒📒 महाभारत: स्त्री पर्व पन्चर्विंष अध्याय: श्लोक 32-50 {Bolo Ji Radhey Radhey} 📜 जो नरश्रेष्ठ अपने शस्त्र के वेग से देवताओं को भी नष्ट कर सकते थे, वे ही ये युद्ध में मार डाले गये हैं; यह काल का उलट-फेर तो देखो। माधव। निश्चय ही दैव के लिये कोई भी कार्य अधिक कठिन नहीं है; क्योंकि उसने क्षत्रियों द्वारा ही इन शूरवीर क्षत्रिय षिरोमणियों का संहार कर डाला है। 📜 श्रीकृष्ण मेरे वेगशाली पुत्र तो उसी दिन मारे डाले गये, जबकि तुम अपूर्ण मनोरथ होकर पुनः उपप्लव्य को लौट गये थे। मुझे तो शान्तनुनन्दन भीष्म तथा ज्ञानी विदुर ने उसी दिन कह दिया था, कि अब तुम अपने पुत्रों पर स्नेह न करो। है जनार्दन। उन दोनों की यह दृष्टि मिथ्या नहीं हो सकती थी, अतः थोड़े ही समय में मेरे सारे पुत्र युद्ध की आग में जल कर भस्म हो गये। 📜 वैशम्पयानजी कहते हैं- भारत। ऐसा कहकर शोक से मूर्छित हुई गान्धारी धैर्य छोड़कर पृथ्वी पर गिर पड़ीं, दु:ख से उनकी विवेकषक्ति नष्ठ हो गयी। तदन्तर उनके सारे अंगों में क्रोध व्याप्त हो गया। पुत्र शोक में डूब जाने के कारण उनकी सारी इन्द्रियां व्याकुल हो उठीं। 📜 उस समय गान्धारी ने सारा दोष श्रीकृष्ण के ही माथे मढ दिया। गान्धारी ने कहा- श्रीकृष्ण। है जनार्दन। पाण्डव और धृतराष्ट्र के पुत्र आपस में लड़कर भस्म हो गये। तुमने इन्हें नष्ट होते देखकर भी इनकी उपेक्षा कैसे कर दी? महाबाहु मधुसूदन। तुम शक्तिशाली थे। तुम्हारे पास बहुत से सेवक और सैनिक थे। 📜 तुम महान् बल में प्रतिष्ठित थे। दोनों पक्षों से अपनी बात मनवा लेने की सामथ्र्य तुम में मौजूद थी। तुमने वेद-षास्त्रों और महात्माओं की बातें सुनी और जानी थीं। यह सब होते हुए भी तुमने स्वेच्छा से कुरू कुल के नाश की उपेक्षा की- जान-बूझकर इस वंष का विनाश होने दिया। 📜 यह तुम्हारा महान् दोष है, अतः तुम इसका फल प्राप्त करो। चक्र और गदा धारण करने वाले है केशव। मैंने पति की सेवा से कुछ भी तप प्राप्त किया है, उस दुर्लभ तपोबल से तुम्हें शाप दे रही हूं। गोविन्द। 📜 तुमने आपस में मार-काट मचाते हुए कुटुम्बी कौरवों ओर पाण्डवों की उपेक्षा की है; इसलिये तुम अपने भाई-बन्धुओं का भी विनाश कर डालोगे। हैं मधुसूदन। आज से छत्तीसवां वर्ष उपस्थित होने पर तुम्हारे कुटुम्बी, मन्त्री और पुत्र सभी आपस में लड़कर मर जायेंगे। 📜 तुम सबसे अपरिचित और लोगों की आंखों से ओझल होकर अनाथ के समान वन में विचरोगे, और किसी निन्दित उपाय से मृत्यु को प्राप्त होओगे। इन भरतवंषी स्त्रियों के समान तुम्हारे कुल की स्त्रियां भी पुत्रों तथा भाई-बन्धुओं के मारे जाने पर इसी प्रकार सगे-सम्बन्धियों की लाशों पर गिरेगी। 📜 वैशम्पयानजी कहते हैं- राजन। वह घोर वचन सुनकर माहमनस्वी वसुदेव नन्दन श्रीकृष्ण ने कुछ मुस्कराते हुए से गान्धारी से कहा- क्षत्राणी। मैं जानता हूं, यह ऐसा ही होने वाला है। तुम तो किये हुए को ही कह रही हो। इसमें संदेह नहीं कि वृष्णिवंष के यादव देव से ही नष्ट होंगे। 📜 शुभे। वृष्णिकुल का संहार करने वाला मेरे सिवा दूसरा कोई नहीं है। यादव दूसरे मनुष्यों तथा देवताओं और दानवों के लिये भी अवध्य हैं; अतः अपस में ही लड़कर नष्ट होंगे। श्रीकृष्ण के ऐसा कहने पर पाण्डव मन-ही-मन भयभीत हो उठे। उन्हें बड़ा उद्वेग हुआ। ये सब-के-सब अपने जीवन से निराष हो गये। एन एस यादव।। ©N S Yadav GoldMine #traintrack जो नरश्रेष्ठ अपने शस्त्र के वेग से देवताओं को भी नष्ट कर सकते थे वे ही ये युद्ध में मार डाले गये हैं पढ़िए महाभारत !! 📒📒 महाभार
प्रेम कुमार रावत
ये मया हा ना भाचा पिक्चर, कहानी मे बने लागथे जी ... 😟 सिरतोन मा मया करके देख आधा आधा रात के उठ के रोये ला पढ़थे...🥲🥲🥲 ©cg_poet_ prem _kumar #onenight ये मया हा ना भाचा पिक्चर, कहानी मे बने लागथे जी ... 😟 सिरतोन मा मया करके देख आधा आधा रात के उठ के रोये ला पढ़थे...🥲🥲🥲
Ranjeet Suman
Ranjeet suman ©Ranjeet Suman जब तक शेरों के अपने इतिहासकार नहीं होंगे, शिकार की कथाएं हमेशा शिकारियों को शूरवीर कहेंगी।
ज़हर
ज़हर कहाँ पर बोलना है और कहाँ पर बोल जाते हैं। जहाँ खामोश रहना है वहाँ मुँह खोल जाते हैं। कटा जब शीश सैनिक का तो हम खामोश रहते हैं। कटा एक सीन पिक्चर का तो सारे बोल जाते हैं। नयी नस्लों के ये बच्चे जमाने भर की सुनते हैं। मगर माँ बाप कुछ बोले तो बच्चे बोल जाते हैं। बहुत ऊँची दुकानों में कटाते जेब सब अपनी। मगर मज़दूर माँगेगा तो सिक्के बोल जाते हैं। अगर मखमल करे गलती तो कोई कुछ नहीँ कहता। फटी चादर की गलती हो तो सारे बोल जाते हैं। हवाओं की तबाही को सभी चुपचाप सहते हैं। च़रागों से हुई गलती तो सारे बोल जाते हैं। बनाते फिरते हैं रिश्ते जमाने भर से अक्सर। मगर जब घर में हो जरूरत तो रिश्ते भूल जाते हैं। कहाँ पर बोलना है और कहाँ पर बोल जाते हैं। जहाँ खामोश रहना है वहाँ मुँह खोल जाते हैं। ©ज़हर ज़हर कहाँ पर बोलना है और कहाँ पर बोल जाते हैं। जहाँ खामोश रहना है वहाँ मुँह खोल जाते हैं। कटा जब शीश सैनिक का तो हम खामोश रहते हैं। कटा ए
Sawan Sharma
गर्व है इस जन्मभूमि पर, विरासत में जो मिला रामायण की सीख मिली, गीता का ज्ञान मिला । गर्व है अपने ग्रंथों पर, जो कि जीना सिखाते है नेकी का है पाठ पढ़ाते, नेकी पर चलना सिखाते है । विवेकानंद से ज्ञानी ने, देश विदेश में ज्ञान दिया ज्ञान देकर दुनिया को, इस भारत का नाम किया । पतंजलि से संत हुए, जिन्होंने भारत को योग दिया अपनी योग की शक्ति से, पूरे विश्व को निरोग किया। बुद्धिमानी चाणक्य जैसे, महाराणाप्रताप से शूरवीर लक्ष्मीबाई जैसे निडर, पृथ्वीराज से महावीर । बलिदानी हुए अनगिनत , जो हँस के फांसी झूल गए मातृभूमि रक्षा के लिए, अपना सर्वस्व भूल गए । विरासत में संस्कार मिले, आदर सबका सिखाते है इंसान से लेकर प्रकृति तक, सब की पूजा सिखाते हैं गर्व है मुझे मातृभूमि पर,जिस पर मुझको जन्म मिला धन्य हूं जो इस भूमि पर, जन्म लेने का सौभाग्य मिला । ©pen_of_sawan #IndependenceDay गर्व है इस जन्मभूमि पर, विरासत में जो मिला रामायण की सीख मिली, गीता का ज्ञान मिला । गर्व है अपने ग्रंथों पर, जो कि जीना सि
N S Yadav GoldMine
{Bolo Ji Radhey Radhey} युयुत्सु :- धृतराष्ट्र के एक वैश्य वर्ण की पत्नी थी| उसी के गर्भ से युयुत्सु का जन्म हुआ था| युयुत्सु का स्वभाव गांधारी के सभी पुत्रों से बिलकुल अलग था| वह आपसी कलह और विद्वेष का विरोधी था और सदा धर्म और न्याय की बातें करता था, लकिन चूंकि सत्ता गांधारी के पुत्रों के हाथ में थी, इसलिए कोई भी इसकी नहीं सुनता था| कौरवों ने जिस प्रकार का छलपूर्ण व्यवहार अपने भाई पाण्डवों के साथ किया था, उसकी कटु भर्त्सना युयुत्सु ने की| दुर्योधन आदि इसका इसी कारण अपमान भी करते थे| कुछ दिन तक यह देखकर कि कौरव किसी प्रकार भी धर्म के पथ पर नहीं आएंगे, उसने इनका साथ सदा के लिए छोड़ दिया| युद्ध से पहले युधिष्ठिर ने घोषणा की थी कि जो हमारे पक्ष की और से लड़ना चाहे, वह हमारे यहां आए, हम उसका स्वागत करेंगे| इसी घोषणा को सुनकर युयुत्सु कौरवों के विरुद्ध युद्ध करने के लिए पाण्डव-पक्ष में जा मिला| उसे विश्वासघाती भी कहा गया, लेकिन उसने इसकी तनिक भी परवाह नहीं की, क्योंकि उसके सामने परिवार और कुल की मर्यादा से ऊपर धर्म और सत्य की मर्यादा थी| उसी की प्रेरणा से उसने कुल और परिवार के उन बंधनों को काट दिया था, जिन्हें भीष्म जैसे योगी और द्रोणाचार्य जैसे पंडित भी नहीं काट पाए थे| भीष्म पितामह और द्रोणाचार्य पूरी तरह समझते थे कि कौरवों ने पाण्डवों के साथ अन्याय किया है| यहां तक कि उन्होंने स्वयं अपने सामने द्रौपदी का अपमान होता देखा था, फिर भी अपनी आंखें नीचे झुका लीं| वे कौरवों के इस अन्यायी पक्ष का साथ तो छोड़ना चाहते थे, लेकिन नमक के धर्म में बंधे रहकर इसके लिए साहस नहीं जुटा पाते थे|बार-बार भीष्म ने दुर्योधन को बुरा कहा, लेकिन अंत में युद्ध उसकी सेना का सेनापति बनकर किया| द्रोण ने भी ऐसा ही किया| द्रोण ने तो उस वीर बालक अभिमन्यु के अन्याय पूर्ण वध में भी सहयोग दिया था| इसकी तुलना में यदि हम युयुत्सु को रखें तो वह न्याय और धर्म के पथ पर हमें अधिक दृढ़ दिखता है| उसने इन झूठी मर्यादाओं की चिंता न करके न्याय की भावना से अपने जीवन का तादात्म्य स्थापित कर लिया था| कुछ ना समझ व्यक्ति उसको विश्वासघाती या कुलघाती कहते हैं, लेकिन जीवन के सत्य की विराट् आधार भूमि पर चिंतन करने से पता लगता है कि वह बड़ा ही सच्चा शूरवीर था| पांडवों के यहां उसका अपार स्वागत होता था| उसने भी पाण्डवों की ओर से सच्चाई के साथ युद्ध किया था और उनका इतना विश्वास जीत लिया था कि जब परीक्षित को राज्य देकर पाण्डव हिमालय की ओर चले तो युयुत्सु को परीक्षित का संरक्षक नियुक्त कर गए| इन सबको देखकर हमें युयुत्सु के रूप में एक ऐसा पात्र मिलता है, जिसमें सत्य और धर्म के प्रति अपूर्व दृढ़ता और साहस था और जिसने कभी झूठे बंधनों में बांधकर अपनी आत्मा को नहीं बेचा था| N S Yadav {GoldNine} ©N S Yadav GoldMine #Gurupurnima {Bolo Ji Radhey Radhey} युयुत्सु :- धृतराष्ट्र के एक वैश्य वर्ण की पत्नी थी| उसी के गर्भ से युयुत्सु का जन्म हुआ था| युयुत्सु क