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sampu janagal
एक ज़रा सी प्रेम कहानी हम लड़कों की क़िस्मत में है आग बहुत सी थोड़ा पानी एक किताबों की अलमारी में थोड़े खुशबू के रेशे कुछ घण्टों की नींद उसी में दुनियाभर के ख्वाब बुरे से मीरा के भजनों को घेरे रहती है कबीर की बानी उम्मीदों की लम्बी सूची जाने पूरी होगी कैसे एक बड़ा बाज़ार सामने छोटी जेब ज़रा से पैसे चेहरे पर तैरा करती है एक झेंप जानी पहचानी एक लड़ाई अंतहीन है सारी उम्र इसी को दे दी गोलों को काला करने में दाढ़ी तक आ गयी सफेदी डीपी तक में रखनी पड़ती है कोई तस्वीर पुरानी ©sampu janagal #फेसबुक वाली कविता
Tanendra Singh Khirjan
सहजता, सरलता एवं बंदगी कुछ और थी, लोग थे पुराने मगर जिंदगी कुछ और थी, सुख सुविधाएं परिपूर्ण है मगर कहीं थोड़ा अभाव भी, जीने का सलीका और बदल दिया स्वभाव भी। न जाने क्यूं ये जिंदगी इंसान से खेलती हैं, बचपन और जवानी तो अब बुढ़ापा झेलती हैं, लोग भूल गए हैं बड़ों की बातें बूढ़ों के पास बैठना और उनकी यादें। दिन-ब-दिन हम खो रहे हैं जीवन के सुखद आभास को। न जाने क्यूं जमीं पर रहकर हम भूल रहे आकाश को।। इससे पहले कि हम गुलाम हो जाए, सुबह से पहले शाम हो जाए। इससे पहले कि काम तमाम हो जाए, सीख लो पुरानी बातें जो थोड़ी भी काम आ जाए ये रीति नहीं कहती कि हम पाश्चात्य के गुलाम हैं। हम अटल है भारत देश के कलाम हैं। कविता (प्रेरित करने वाली)
akash Kumar shah
पतझड़ आने वाली है ---------------- प्रेम का मौसम गया ! गया बुखार प्यार का, पत्ते अब टूट रहे, शाखों से दो -चार का, विचलित नहीं, बस सूखा हूं, पेट भरा है पर भूखा हूं, धूप से जलती जिन्दगी में हवा, तूफान, काली है, छन- छन छुरी चलेगी क्योंकि पतझड़ आने वाली है । ©akash Kumar shah स्वरचित कविता: पतझड़ आने वाली है #SunSet