Find the Latest Status about अतिक्रमित from top creators only on Nojoto App. Also find trending photos & videos about, अतिक्रमित.
Divyanshu Pathak
आधुनिक जीवनशैली के साथ वैदिक जीवनशैली को घसीटकर हम पूरे आधुनिक हो पाए और ना ही वैदिक रह गए।रही सही कसर पूंजीवाद ने निकाल दी सैकड़ों सालों में हम समाज को एक नई जाति या वर्ण तो दे नहीं पाए किन्तु वर्णों को ही जाति और उपजातियों के रूप में विभक्त कर वर्गवाद की नींव डाली।यह वर्गवाद निम्न,मध्य और उच्च के रूप में एक दूसरे के विरोधी तो हुए ही साथ ही निम्न-मध्यम वर्ग वाले उच्च वर्ग में आने की दौड़ में शामिल भी।जीवन का संघर्ष बस 'कमाई' ( धन ) आधारित रह गया।यही कारण रहा कि गरीब गरीब रहे और अमीर अमीर होते गए। जिन लोगों का इस संघर्ष से मोह भंग हुआ वे प्राचीन शास्त्रों में सुखी जीवन की तलाश करने लगे जो थोड़े बहुत शास्त्रों से जुड़े उन्हीने मनमाने अर्थ देकर उसे सहज करने की कोशिश की तो अंध-भक्तों की बाढ़ आ गई।लेकिन आगे चलकर यह सारी कल्पित बातें निर्मूल साबित हुई बड़े बड़े सन्त और धर्म गुरु कारागार में पहुँच गए भक्त बेचारे ठगे से रह गए। कैप्शन-- देखें हमें शंकराचार्य और महर्षि-दयानंद सरस्वती के प्रयासों को भूलना नहीं है। उनके मूल पथ को अतिक्रमित कर उसे टेढ़ा-मेढ़ा बना दिया गया है तो कोई बात
हमें शंकराचार्य और महर्षि-दयानंद सरस्वती के प्रयासों को भूलना नहीं है। उनके मूल पथ को अतिक्रमित कर उसे टेढ़ा-मेढ़ा बना दिया गया है तो कोई बात #yqbaba #yqdidi #yqhindi #सुप्रभातम #cinemagraph #yqsahitya #पाठकपुराण
read morePARBHASH KMUAR
जब देवताओं से युद्ध करते हुए असुरों को मृत व पराजित होना पड़ा, तब दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने अपनी शक्तियों से उन सभी को पुनः जीवित कर दिया था। मगर जीवित होने के पश्चात तो जैसे, असुरों के अत्याचार की सारी सीमाएं अतिक्रमित होने लगी। राजा बलि ने भी शुक्राचार्य की कृपा से अपना जीवन लाभ किया था, इसलिए वह भी उनकी सेवा में लग गए। इस दौरान, राजा बलि की सेवा से प्रसन्न होकर शुक्राचार्य ने एक बड़े यज्ञ का आयोजन किया। इधर, पौराणिक मान्यता के अनुसार, असुरों के हर दूसरे दिन देवताओं पर किए गए अत्याचारों से माता अदिति अत्यंत दुखी हो गईं थीं। उन्होंने अपनी यह व्यथा अपने स्वामी कश्यप ऋषि को सुनाते हुए कहा, “हे स्वामी! मेरे तो सभी पुत्र मारे-मारे फिरते हैं और उन्हें इस अवस्था में देखकर, मेरा हृदय क्रंदन करने लगता है।” अपनी पत्नी की यह बात सुनकर, कश्यप ऋषि ने सोचा, इस व्यथा के समाधान के लिए तो अपना सर्वस्व प्रभु नारायण के चरणों में समर्पित कर, उनकी आराधना करना आवश्यक है। उन्होंने अदिति को भी ऐसा ही करने के लिए कहा। माता अदिति ने तब नारायण का कठोर तप किया और प्रभु भी माता के तप से प्रसन्न होकर उनके पुत्र के रूप में आविर्भूत हुए। अपने गर्भ से ऐसे चतुर्भुज प्रभु के अवतार से माता अदिति तो जैसे धन्य ही हो गईं। वहीं प्रभु ने अवतरित होते ही वामन अवतार धारण कर लिया था। इसके बाद, महर्षि कश्यप ने अन्य ऋषियों के साथ मिलकर उस वामन ब्रह्मचारी का उपनयन संस्कार सम्पन्न किया। इसके बाद, वामन ने अपने पिता से शुक्राचार्य द्वारा आयोजित राजा बलि के अश्वमेध यज्ञ में जाने की आज्ञा ली। यह राजा बलि का अंतिम अश्वमेध यज्ञ था। वामन जैसे ही उस यज्ञ में पहुंचे राजा बलि ने उन्हें देखते ही उनका आदर सत्कार किया और उनसे दान मांगने का आग्रह किया। इस पर वामन ने राजा बलि से कहा, “हे राजन! आपके कुल की शूरता व उदारता जगजाहिर है। मुझे तो बस अपने पदों के समान तीन पद जमीन चाहिए।” राजा बलि उन्हें यह दान देने ही वाले थे, तभी शुक्राचार्य ने उन्हें चेताया, “यह अवश्य ही विष्णु हैं। इनके छलावे में आ गए, तो तुम्हारा सर्वस्व चला जाएगा।” परंतु राजा बलि अपनी बात पर स्थिर रहे। उन्होंने वामन को तीन पद जमीन देने का निर्णय कर लिया। राजा बलि की यह बात सुनते ही वमानवतार श्री विष्णु ने अपना शरीर बड़ा कर लिया और प्रथम दो पदों में ही उन्होंने स्वर्गलोक और धरती को अपने नाम कर लिया। वामन के चरण पड़ने से ब्रह्मांड का आवरण थोड़ा उखर सा गया था एवं इसी स्थान से, ब्रह्मद्रव बह आया था जो बाद में जाकर मां गंगा बनीं। अब वामन ने बलि से पूछा, “राजन! तीसरा पद रखने का स्थान कहां है?” कोई दूसरा ©parbhashrajbcnegmailcomm जब देवताओं से युद्ध करते हुए असुरों को मृत व पराजित होना पड़ा, तब दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने अपनी शक्तियों से उन सभी को पुनः जीवित कर दिया था।
जब देवताओं से युद्ध करते हुए असुरों को मृत व पराजित होना पड़ा, तब दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने अपनी शक्तियों से उन सभी को पुनः जीवित कर दिया था। #Knowledge
read more