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Kalaam rahi

GAZAL #شاعری

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Sam

#,Gazal #Shayari

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Shivam Singh Rajput

White चंद लोगों के लहजे बदल गए हमारी असफलताओं को देखकर,

कीमतों के बाजार में रिश्ते बिक गए पैसों को देखकर,

वो लोग जो नजरे झुका कर सीखते थे जीने के सलीके हमसे,

नजरिया बदल लिया उन्होंने मेरी तन्हाई देखकर।

©Shivam Singh Rajput 
#sad_shayari #मोटिवेशनल #Motivational 
#Time #shayri #gazal #na aaj ki sachhai

उमा जोशी

#gazal #Life

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writing quotes in hindi तीर त्याच्या काळजाच्या पार झाला
अन् पुन्हा तो बाळ श्रावण ठार झाला

वाहण्याला त्यास ओझे साथ केली
त्याचयोगे आज श्रमसंस्कार झाला

वाजले पायातले पैंजण तिच्या अन्
काळजामध्ये कसा झंकार झाला

प्रेम त्याचे तर दिखाव्याचेच होते
गवगवा त्याचा इथे पण फार झाला

ठेवला विश्वास होता मी तुझ्यावर
का तुझ्या हातून मोठा वार झाला

तो असा सोडून गेल्यावर तिचा का
त्या क्षणाला पोरका संसार झाला

झेलले आयुष्यभर मी दुःख सारे
आज खांद्यांना सुखाचा भार झाला
--- ०४/०६/२०२४

©उमा जोशी #gazal

Ajay

ajay yatav #शायरी

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Ajay Pandit

inamdar pashaصادقwriter

#emotional_sad_shayari zindagi ki gazal #Life

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kalamwali6511

#emotional_sad_shayari Ajay Kumar Gireesh jat PREM Kumbhkar Riya Soni Ankit 09 BANK

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kalamwali6511

#summer_vacation #SUMAN singh rajpoot Nîkîtã Guptā Dhrama Joshi Ajay Kumar Abhay maurya (pathik) #SAD

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an aspirant nilu

#Road Ajay Kumar Ak Brajesh Kumar Bebak N.B.Mia #विचार

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White लड़की बनके है जन्म लिया 
मानू मैं हर मर्यादा समाज की 
में तो शुभचिंतक हूं समाज की ।
पुरुषवादी सत्ता के जो आडम्बर बने है 
आज भी 
मैं पालना करू हर उस बात की 
मैं तो शुभ चिंतक हूं समाज की ।

बचपन से लेकर अब तक 
यही है मुझको सिखलाया 
बेटी को संस्कार सभी हो 
कहा फिक्र करता कोई पुरुषों के संस्कार की।
मै तो शुभ चिंतक हू समाज की।

मां से मेने सीखे हर गुण स्त्रीत्व वाले भी 
वो घूंघट की ओट में अपने विचारो पर ताले भी।
मैं क्या ही बात करू अधिकार की 
मै तो शुभ चिंतक हूं समाज की ।।
 मेरी लाज काज के रक्षक वो है ।
फिर भोगी में बलात्कार की 
कोई प्रश्न करू लज्जित हो जाऊ 
बात उठती ही नहीं सम्मान की।
मैं तो शुभ चिंतक हूं समाज की
कोई भोर भरे उठ जाता है 
कोई जोर जोर चिल्लाता है मध्य रात्रि में भी उठ उठ कर पालना करती पति को हर बात की 
मैं तो शुभ चिंतक हूं समाज की 

कुमकुम ,पायल ,बिंदी और कंगन
निशानिया मुझे ही तो दिखानी है सुहाग की 
करवाचौथ की भूख से लेकर सती कुण्ड की आग तक
नारी हूं बलिदानी बन के रक्षा करू उनके स्वाभिमान की ।
मैं तो शुभचिंतक हु समाज की ।।
वक्त बदल रहा हालत की अब दशा कुछ और है 
स्त्री कमजोर नहीं 
मगर पुरषो के समाज को  स्त्री वर्ग का ही एक हिस्सा मजबूत बनाता है 
जो आज भी स्त्री होकर खुद स्त्री को समाज के पुरुषवादी विचारो के आधार पर जीने के लिए एक माहोल को सजाए हुए है ये कविता उन्ही स्त्रीयों के लिए जो पुरुषवाद की शुभचितक तो है मगर मानवता वाद की समानता भूल गई है

©an aspirant nilu #Road Ajay Kumar  Ak Brajesh Kumar Bebak N.B.Mia
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