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Vikas Sharma Shivaaya'

🙏सुन्दरकांड🙏 दोहा – 16 प्रभु राम की कृपा से सब कुछ संभव सुनु माता साखामृग नहिं बल बुद्धि बिसाल। प्रभु प्रताप तें गरुड़हि खाइ परम लघु ब्याल॥16 #समाज

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🙏सुन्दरकांड🙏
दोहा – 16
प्रभु राम की कृपा से सब कुछ संभव
सुनु माता साखामृग नहिं बल बुद्धि बिसाल।
प्रभु प्रताप तें गरुड़हि खाइ परम लघु ब्याल॥16॥
हनुमानजी ने कहा कि हे माता! सुनो,
वानरों मे कोई विशाल बुद्धि का बल नहीं है।परंतु प्रभु का प्रताप ऐसा है की उसके बल से छोटा सा सांप गरूड को खा जाता है(अत्यंत निर्बल भी महान् बलवान् को मार सकता है)॥16॥
श्री राम, जय राम, जय जय राम

माता सीता का हनुमानजी को आशीर्वाद
मन संतोष सुनत कपि बानी।
भगति प्रताप तेज बल सानी॥
आसिष दीन्हि रामप्रिय जाना।
होहु तात बल सील निधाना॥1॥
भक्ति, प्रताप, तेज और बल से मिली हुई हनुमानजी की वाणी सुनकर
सीताजी के मन में बड़ा संतोष हुआ फिर सीताजी ने हनुमान को श्री राम का प्रिय जानकर आशीर्वाद दिया कि
हे तात! तुम बल और शील के निधान होओ॥

हनुमानजी – अजर, अमर और गुणों के भण्डार
अजर अमर गुननिधि सुत होहू।
करहुँ बहुत रघुनायक छोहू॥
करहुँ कृपा प्रभु अस सुनि काना।
निर्भर प्रेम मगन हनुमाना॥2॥
हे पुत्र! तुम अजर (जरारहित – बुढ़ापे से रहित),अमर (मरणरहित) और गुणों का भण्डार हो और रामचन्द्रजी तुम पर सदा कृपा करें॥प्रभु रामचन्द्रजी कृपा करेंगे, ऐसे वचन सुनकर हनुमानजी प्रेमानन्द में अत्यंत मग्न हुए॥

हनुमानजी माता सीता को प्रणाम करते है
बार बार नाएसि पद सीसा।
बोला बचन जोरि कर कीसा॥
अब कृतकृत्य भयउँ मैं माता।
आसिष तव अमोघ बिख्याता॥3॥
और हनुमानजी ने वारंवार सीताजीके चरणों में शीश नवाकर,हाथ जोड़ कर, यह वचन बोले॥हे माता! अब मै कृतार्थ हुआ हूँ,क्योंकि आपका आशीर्वाद सफल ही होता है,यह बात जगत् प्रसिद्ध है॥

अशोकवन के फल और राक्षसों का संहार
हनुमानजी अशोकवन में लगे फलों को देखते है
सुनहु मातु मोहि अतिसय भूखा।
लागि देखि सुंदर फल रूखा॥
सुनु सुत करहिं बिपिन रखवारी।
परम सुभट रजनीचर भारी॥4॥
हे माता! सुनो, वृक्षोंके सुन्दर फल लगे देखकर मुझे अत्यंत भूख लग गयी है,
सो मुझे आज्ञा दो॥तब सीताजीने कहा कि हे पुत्र! सुनो,इस वन की बड़े बड़े भारी योद्धा राक्षस रक्षा करते है॥

हनुमानजी सीताजी से आज्ञा मांगते है
तिन्ह कर भय माता मोहि नाहीं।
जौं तुम्ह सुख मानहु मन माहीं॥5॥
तब हनुमानजी ने कहा कि हे माता !
जो आप मनमे सुख माने (प्रसन्न होकर आज्ञा दें),तो मुझको उनका कुछ भय नहीं है॥

आगे शनिवार को ...

विष्णु सहस्त्रनाम (एक हजार नाम) आज 634 से 645 नाम 
634 अर्चितः जो सम्पूर्ण लोकों से अर्चित (पूजित) हैं
635 कुम्भः कुम्भ(घड़े) के समान जिनमे सब वस्तुएं स्थित हैं
636 विशुद्धात्मा तीनों गुणों से अतीत होने के कारण विशुद्ध आत्मा हैं
637 विशोधनः अपने स्मरण मात्र से पापों का नाश करने वाले हैं
638 अनिरुद्धः शत्रुओं द्वारा कभी रोके न जाने वाले
639 अप्रतिरथः जिनका कोई विरुद्ध पक्ष नहीं है
640 प्रद्युम्नः जिनका दयुम्न (धन) श्रेष्ठ है
641 अमितविक्रमःजिनका विक्रम अपरिमित है
642 कालनेमीनिहा कालनेमि नामक असुर का हनन करने वाले
643 वीरः जो शूर हैं
644 शौरी जो शूरकुल में उत्पन्न हुए हैं
645 शूरजनेश्वरः इंद्र आदि शूरवीरों के भी शासक

🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय🌹

©Vikas Sharma Shivaaya' 🙏सुन्दरकांड🙏
दोहा – 16
प्रभु राम की कृपा से सब कुछ संभव
सुनु माता साखामृग नहिं बल बुद्धि बिसाल।
प्रभु प्रताप तें गरुड़हि खाइ परम लघु ब्याल॥16

Vikas Sharma Shivaaya'

🙏सुंदरकांड🙏 दोहा – 17 प्रभु श्री राम के चरणों में मन रखकर कार्य करें देखि बुद्धि बल निपुन कपि कहेउ जानकीं जाहु। रघुपति चरन हृदयँ धरि तात मधु #समाज

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🙏सुंदरकांड🙏
दोहा – 17
प्रभु श्री राम के चरणों में मन रखकर कार्य करें
देखि बुद्धि बल निपुन कपि कहेउ जानकीं जाहु।
रघुपति चरन हृदयँ धरि तात मधुर फल खाहु॥17॥
तुलसीदास जी कहते है कि हनुमान जी का विलक्षण बुद्धिबल देख कर सीता जी ने कहा कि हे पुत्र !जाओ, रामचन्द्र जी के चरणों को हृदय मे रख कर मधुर मधुर फल खाओ ॥17॥
श्री राम, जय राम, जय जय राम

हनुमानजी फल खाते है और कुछ राक्षसों का संहार करते है
चलेउ नाइ सिरु पैठेउ बागा।
फल खाएसि तरु तोरैं लागा॥
रहे तहाँ बहु भट रखवारे।
कछु मारेसि कछु जाइ पुकारे॥1॥
सीताजी के वचन सुन कर उनको प्रणाम करके हनुमान जी बाग के अन्दर घुस गए।फल फल तो सब खा गए और वृक्षों को तोड़ मरोड़ दिया॥जो वहां रक्षा के लिए राक्षस रहते थे उनमे से कुछ को मार डाला और कुछ ने जाकर रावण से पुकार की (रावण के पास गए और कहा)॥

राक्षस रावण को हनुमानजी के बारे में बताते है
नाथ एक आवा कपि भारी।
तेहिं असोक बाटिका उजारी॥
खाएसि फल अरु बिटप उपारे।
रच्छक मर्दि मर्दि महि डारे॥2॥
कि हे नाथ! एक बड़ा भारी वानर आया है ।उसने तमाम अशोकवन का सत्यानाश कर दिया है॥उसने फल फल तो सारे खा लिए है, और वृक्षोंको उखड दिया है।और रखवारे राक्षसों को पटक पटक कर मार गिराया है,उनको मसल-मसलकर जमीन पर डाल दिया है॥

रावण और राक्षसों को भेजता है
सुनि रावन पठए भट नाना।
तिन्हहि देखि गर्जेउ हनुमाना॥
सब रजनीचर कपि संघारे।
गए पुकारत कछु अधमारे॥3॥
यह बात सुनकर रावण ने बहुत से राक्षस योद्धा भेजे।उनको देखकर युद्ध के उत्साह से हनुमान जी ने भारी गर्जना की॥हनुमानजी ने उन तमाम राक्षसों को मार डाला।जो कुछ अधमरे रह गए थे,वे वहा से पुकारते हुए भागकर गए॥

अक्षयकुमार का प्रसंग
रावण अक्षय कुमार को भेजता है
पुनि पठयउ तेहिं अच्छकुमारा।
चला संग लै सुभट अपारा॥
आवत देखि बिटप गहि तर्जा।
ताहि निपाति महाधुनि गर्जा॥4॥
फिर रावण ने मंदोदरि के पुत्र अक्षय कुमार को भेजा।वह भी असंख्य योद्धाओं को संग लेकर गया॥उसे आते देखते ही हनुमानजी ने हाथ में वृक्ष लेकर उस पर प्रहार किया और
उसे मारकर फिर बड़े भारी शब्दसे (महाध्वनि से, जोर से) गर्जना की॥
आगे मंगलवार को ...,

विष्णु सहस्रनाम(एक हजार नाम) आज 682 से 693 नाम 
682 स्तुतिः स्तवन क्रिया
683 स्तोता सर्वरूप होने के कारण स्तुति करने वाले भी स्वयं हैं
684 रणप्रियः जिन्हे रण प्रिय है
685 पूर्णः जो समस्त कामनाओं और शक्तियों से संपन्न हैं
686 पूरयिता जो केवल पूर्ण ही नहीं हैं बल्कि सबको संपत्ति से पूर्ण करने भी वाले हैं
687 पुण्यः स्मरण मात्र से पापों का क्षय करने वाले हैं
688 पुण्यकीर्तिः जिनकी कीर्ति मनुष्यों को पुण्य प्रदान करने वाली है
689 अनामयः जो व्याधियों से पीड़ित नहीं होते
690 मनोजवः जिनका मन वेग समान तीव्र है
691 तीर्थकरः जो चौदह विद्याओं और वेद विद्याओं के कर्ता तथा वक्ता हैं
692 वसुरेताः स्वर्ण जिनका वीर्य है
693 वसुप्रदः जो खुले हाथ से धन देते हैं
🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय 🌹

©Vikas Sharma Shivaaya' 🙏सुंदरकांड🙏
दोहा – 17
प्रभु श्री राम के चरणों में मन रखकर कार्य करें
देखि बुद्धि बल निपुन कपि कहेउ जानकीं जाहु।
रघुपति चरन हृदयँ धरि तात मधु
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