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dilkibaatwithamit
White बड़े दिन बाद, कोई ज़बाब आया ये शुक्र है, उसे मेरा ख्याल आया क्यूं ना निकलें, नींद में आंसू मेरे बहुत दिन बाद तेरा,ख़्वाब आया हर एक बूंद में है, एक घर रोशन मेरे हिस्से में चांद का दाग आया तुम से नफ़रत भी, लाज़वाब थी तुम पे इश्क़ भी, बेहिसाब आया .. ©dilkibaatwithamit बड़े दिन बाद, कोई ज़बाब आया ये शुक्र है, उसे मेरा ख्याल आया क्यूं ना निकलें, नींद में आंसू मेरे बहुत दिन बाद तेरा,ख़्वाब आया हर एक बूंद मे
बड़े दिन बाद, कोई ज़बाब आया ये शुक्र है, उसे मेरा ख्याल आया क्यूं ना निकलें, नींद में आंसू मेरे बहुत दिन बाद तेरा,ख़्वाब आया हर एक बूंद मे
read moreAnusha choudhary
Unsplash कभी तो ,कुछ तो वैसा हो जैसा मैंने सोचा हैं ©Anusha choudhary #traveling Shikha Sharma रोशन वर्मा Yishu Tiwari sana naaz Sri...
#traveling Shikha Sharma रोशन वर्मा Yishu Tiwari sana naaz Sri...
read morePraveen Jain "पल्लव"
White पल्लव की डायरी दर्दो को लोग आँसू बहाकर कम कर लेते है ताने और दोष देकर हल्का मन कर लेते है गिना देते है गृहस्थी के काम कद मर्द का कम कर देते है परवरिश की पीड़ा चैन लेने नही देती है जोखमो में जिंदगी डालते मुस्कराकर डिमांडे पूरी करते है सूरज की तरह होते है पति और पिता खुद जलकर रोशन परिवार करते है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #Sad_shayri खुद जलकर रोशन परिवार करते है
#Sad_shayri खुद जलकर रोशन परिवार करते है
read moretheABHAYSINGH_BIPIN
White बैठे-बैठे उदास मन से उसे सोच रहा, गैर-महफ़िलों में खुद को व्यस्त कर रहा। भैया-भाभी, मम्मी-पापा को सुन रही होगी, तकिए के ओट में चादर भिगो रही होगी। कितने अरमानों को सजाया था दिल ने, दोनों दिलों में अधूरी मोहब्बत दम तोड़ रही है। उठ रहे हैं दिल में ना जाने कितने सवाल, दो जवां दिलों में ख्वाहिशें दफ़्न हो रही हैं। रोशन हो रही थी मुहब्बत चंद की रोशनी में, यह कैसी घड़ी है जहां उम्मीदें बिखर रही हैं। परवान चढ़ने पर था ख्वाबों सा मुंतजिर, जैसे चांद से चकोर अलग हो रही है। ©theABHAYSINGH_BIPIN #good_night बैठे-बैठे उदास मन से उसे सोच रहा, गैर-महफ़िलों में खुद को व्यस्त कर रहा। भैया-भाभी, मम्मी-पापा को सुन रही होगी, तकिए के ओट मे
#good_night बैठे-बैठे उदास मन से उसे सोच रहा, गैर-महफ़िलों में खुद को व्यस्त कर रहा। भैया-भाभी, मम्मी-पापा को सुन रही होगी, तकिए के ओट मे
read moreनवनीत ठाकुर
इक उमर की चाहत थी, इक लम्हे की दस्तक, दरवाज़ा खुला तो ख्वाबों का सफर निकला। जो दिन था मुक़द्दर का, वो भी कुछ यूँ बीता, जैसे काग़ज़ पर गिरा, पानी का असर निकला। अरमान सजे थे जिनसे रोशन मेरी दुनिया, वो चिराग़ जला लेकिन हवा का असर निकला। मिलन की घड़ी आई तो जुदाई के साए थे, जिसे चाहा था अपना, वो भी बेख़बर निकला। ख़्वाबों की हक़ीक़त में जो देखा था कभी हमने, आईना दिखाया तो हर शक्ल बदल निकला। ©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर इक उमर की चाहत थी, इक लम्हे की दस्तक, दरवाज़ा खुला तो ख्वाबों का सफर निकला। जो दिन था मुक़द्दर का, वो भी कुछ यूँ बीता, जैसे का
#नवनीतठाकुर इक उमर की चाहत थी, इक लम्हे की दस्तक, दरवाज़ा खुला तो ख्वाबों का सफर निकला। जो दिन था मुक़द्दर का, वो भी कुछ यूँ बीता, जैसे का
read moreनवनीत ठाकुर
सपने देखें, उन्हें पूरा होने दे, सपनों की दुनिया में खुद को खोने दे। जो रास्ते अभी तक अनदेखे थे, उन पर बच्चों को कदम रखने दे। उनकी आँखों में जो चमक है, वो अंधेरों को भी रोशन कर देगी, जो ख्वाब दिल में पल रहे हैं, उन्हें हकीकत बनने दे। छोटे कदम, मगर इरादे बड़े हैं, जो हर मुश्किल को आसान बना देंगे, इनकी मेहनत से नया आसमान सजेगा, गिरकर ही ये नए रास्ते बना देंगे। ©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर सपने देखें, उन्हें पूरा होने दे, सपनों की दुनिया में खुद को खोने दे। जो रास्ते अभी तक अनदेखे थे, उन पर बच्चों को कदम रखने दे।
#नवनीतठाकुर सपने देखें, उन्हें पूरा होने दे, सपनों की दुनिया में खुद को खोने दे। जो रास्ते अभी तक अनदेखे थे, उन पर बच्चों को कदम रखने दे।
read moreनवनीत ठाकुर
Unsplash लफ़्ज़ दिल में थे, वो कागज़ पे आ न सके, ख़ामोशी में ही दबी सारी कहानी हो गईं। शाम-ए-ग़म में जलाए थे जो उम्मीद के चराग़, वो भी बुझते-बुझते बस एक निशानी हो गईं। इश्क़ में लिखते रहे हम हज़ारों किस्से, मगर सच्चाई में वो सब बेमानी हो गईं। वो कसमें, वो वादे, वो लम्हों की गहराइयाँ, अब किताबों की तरह बंद कहानी हो गईं। जो हमने देखा था कभी चाँद की रोशनी में, वो उम्मीदें भी अब धुंधली कहानी हो गईं। जिनसे रोशन था कभी हर एक कोना-ए-दिल, वो रोशनी भी अंधेरों की मेहरबानी हो गईं। ©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर लफ़्ज़ दिल में थे, वो कागज़ पे आ न सके, ख़ामोशी में ही दबी सारी कहानी हो गईं। शाम-ए-ग़म में जलाए थे जो उम्मीद के चराग़, वो भी
#नवनीतठाकुर लफ़्ज़ दिल में थे, वो कागज़ पे आ न सके, ख़ामोशी में ही दबी सारी कहानी हो गईं। शाम-ए-ग़म में जलाए थे जो उम्मीद के चराग़, वो भी
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