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khusi
गर्मियों के दिन। वह भी क्या दिन हुआ करते थे, जबहम सभी एक साथ घर पर रहा करते थे ।आज भी साथ रहते हैं मगर अब वह वाली बात नहीं रही है गर्मियों में ।आज भी गर्मी आती है मगर पहले जैसी यादें दे कर नहीं जाती। बात उस समय की है जब हम छोटे हुआ करते थे । उतनी ज्यादा समझ ना थी ,ना थोड़ी सी भी कुछ ख्वाहिशें थी। एक साथ सारा परिवार गर्मियों की रात छत पर बिताता था ।एक साथ सब छत पर लेटे रहते प्यार से पापा मम्मी के पास बैठे रहते , और एक टक तारे को देखकर कहां करते हैं ,कि यह कितना दूर है? काश उसे हम छु पाते ? हमेशा सोचते की काश इतनी दूर पहुंच पाते और अब देखो भूल गए है वो सारी बातें। अब सब बड़े हो गए हैं अपने अपने दुनिया मै खो गए हैं । पास रहने का मौका ही नहीं मिलता सब अपने अपने मोबाइल फोन में बिजी हो गए है ।भूल गए है वह खट्टी मीठी सारी यादें ।धुंधली पड़ी हुई है कहीं वह सारी यादें। आज भी जब ऊपर आसमां को देखती हूं, याद करती हूं वह बचपन जहां एक साथ अपने भाई बहन के साथ बैठ करती थी ।जो सबसे ज्यादा हवाई जहाज देखेगा ओर दिखाएगा वह आज का विजेता कहलाएगा।यह सारी बाते ना जाने कहां खो गई है। यह उन दिनों की बात है जब हम छोटे हुआ करते थे ना कोई फोन था , ना कोई अपना सीक्रेट था। सब एक साथ मिलजुल कर हंसा करते थे। यह बात उन दिनों की है, जब हम छोटे हुआ करते थे। अब याद आते हैं वह दिन गर्मियों के। #गर्मियों के दिन#yosto wrimo#
Ek villain
जन्म के पल मनुष्य के जीवन के सर्वश्रेष्ठ पल होते हैं सभी को उत्सुकता से उसके आने की प्रतीक्षा होती है उसके जन्म लेने पर सभी को हर्ष होता है उसके जन्म से पूर्व ही उसके भविष्य को लेकर कई सुनहरे सपने देखे जाते हैं वह जैसे-जैसे बड़ा होता है जीवन की कठोर वास्तविकता जुड़ती जाती है आशाएं घटती जाती है आशीवाद सुख का सबसे बड़ा शोत्र है जीवन में आशा ललित होती है तो मनुष्य का मन स्वयं भी प्रफुल्लित रहता है उसकी क्षमता बढ़ती जाती है आशाओं से रहित मनुष्य कभी कार्य करता है किंतु उनमें प्रफुल्ला और रूचि का अभाव होता है कार्य एक विवशता और कर्तव्य बन जाता है ऐसे कार्य से भले ही धन अर्जित कर लिया जाए पद प्रतिष्ठा प्राप्त हो जाए किंतु आलस से नहीं उत्पन्न होता आशाओं का संबंध अंतर्मन से है आशा है जब पूरी तरह होती है मन को संतुष्ट संतृप्त करती हैं जबकि धन्यवाद शक्ति का अर्जन कामनाओं को उत्प्रेरित करता है और स्वयं बढ़ाता है मन को संतृप्त करने वाली आशाएं वास्तव में क्या है मन तब प्रफुल्ल होता है जब वह स्थिर हो जाए संतुष्ट हो जाए ऐसा संजय से ही अर्पण से होता है लेना एक से अधिक मनुष्य का चरित्र है जबकि देना ईश्वरीय तत्व है केवल ईश्वर ही है जो दे रहा है युगो युगो से दे रहा है लेकिन पाने की आशा नहीं कम हो रही देना कर्म नहीं है आत्म संतुष्टि की आशा है जब मनुष्य आत्म संतुष्टि की आशा के साथ जीता है तो दया क्षमा उदारता परोपकार संयम और सहजता जैसे गुण स्वयं ही विकसित होने लगते हैं किसी कार्य से मनुष्य को आत्म संतुष्टि मिल रही है यह उसे स्वयं ही समझना और तय करना होता है वह जीवन में जो भी कार्य करें इस विश्वास से ही करें कि यह उसे आत्मिक संतृप्त प्रदान करने वाला है जब यह भावना कार्य और जीवन का मुख्य उद्देश्य बन जाती है तो जीवन बदल जाता है मनुष्य हर भला करे उसे नया जीवन देने वाला सिद्ध होता है वह अन्य लोगों के लिए भी प्रेरणा के साथ ही सुख का सूत्र बन जाता है ©Ek villain # जीवन के स्वागतम फल #beinghuman
knhaiyalal Sain
फल लगने के बाद में वृक्ष डालियां नीचे कि और झुक जाती है वैसे ही सज्जन पुरुष धन और ज्ञान आते विनम्र हो जाते हैं ©knhaiyalal Sain फल लगने के बाद में #Thinking
मोहित श्रीवास्तव माही
आप कर्म करो फल भगवान के हाथ छोड़ो जो होगा अच्छे के लिए अच्छा हीं होगा ❤️🙏 ©मोहित श्रीवास्तव माही #Foggy फल भगवान के हाथ छोड़ो