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Dileep Bhope

Mohan Somalkar

Sanskar

Gurudeen Verma

कविता

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White शीर्षक- अपनी भूल स्वीकार करें वो
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कल तक बता रहे थे वो, 
अपनी परेशानियां मुझको,
जब तैयार था मैं भी,
लेने को उनसे कर्ज उधार,
वो मुझको समझाते थे,
कि इस पर इतना खर्चा है।

और अब वो निकालकर देते हैं,
उत्सुकता से मुझको उधार रुपये,
बिना मांगे बैंक से निकालकर,
बिना सोचे अपने खर्चे के बारे में,
आँख बन्दकर मुझ पर विश्वास करके।

क्योंकि आज मुझको मिला है,
मेरी नौकरी का पहला वेतन,
और अब वो नहीं करते हैं,
मुझ पर कोई शक किसी प्रकार का,
और उनके उधार को चुकाने का संदेह।

मगर मेरी भी तो है मजबूरियाँ,
मुझको भी तो बनाना है अपना घर,
शायद नहीं दे सकूँ मैं भी उनको,
उनके माँगने पर रुपये उधार,
जबकि मालूम है उनको भी,
मैं भी तो शौकीन हूँ ,
उनके जैसी जीवन शैली का,
अपनी भूल स्वीकार करें वो।।




शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)

©Gurudeen Verma #कविता

Gurudeen Verma

कविता

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White शीर्षक- इस ठग को क्या नाम दे
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बड़े नम्बरी होते हैं वो आदमी,
जो करते हैं शोषण छोटे आदमी का,
और छीन लेते हैं उधारी चुकाने के नाम पर,
गरीब आदमी की जमीन और आजादी।

लेते हैं काम छोटे आदमी को,
कोल्हू के बैल की तरह दिनरात,
एक वर्ष की मजदूरी बीस हजार देकर,
जबकि होते हैं खर्च पाँच हजार एक माह में।

लेता है ब्याज बहुत वो आदमी,
छोटे आदमी को देकर उधार रुपये,
बड़े ही ठाठ होते हैं इन आदमियों के,
जिनके होते हैं मकां महलनुमा।

होती है उनकी जिंदगी राजा सी,
जिनके एक ही आदेश पर,
हो जाते हैं सारे काम,
और हाजिर नौकर चाकरी में।

कमाता होगा इतने रुपये वह आदमी,
मेहनत की कमाई से कभी भी नहीं,
बनाता है वह अपनी इतनी सम्पत्ति,
भ्रष्टाचार और दो नम्बर की कमाई से।

लेकिन एक ऐसा आदमी भी है,
जो लेता है बड़े आदमी से भी ज्यादा दाम,
करता नहीं रहम वो अपने भाई पर भी,
और कोसता है वह बड़े आदमी,
इस ठग को क्या नाम दे।।




शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)

©Gurudeen Verma #कविता

Shiv gopal awasthi

कविता #शायरी

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Harsh Sharma

कविता

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©Harsh Sharma #कविता

Monika jayesh Shah

कविता

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Shahid0007

कविता

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Rajendrakumar Jagannath Bhosale

आंतरराष्ट्रीय महिला दिन स्फूर्ती गीत #मराठीकविता

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आंतरराष्ट्रीय महिला दिना निमित्त प्रबोधन गीत

सोसूनी शिक्षा आजवर रुढीची 
ठेच विषमता अमानवी फडीची 
चालवले तूच संसाराचे जग रहाट 
स्त्रीस्वातंत्र्याची उजळ तू पहाट || धृ।।

मैत्रिय गार्गी विदुषी केंद्र स्त्री शक्तीचे
 शूर रजियाने उघडले दार स्त्री मुक्तीचे
 पारतंत्र्यात महिलांची झाली बंद वाट || 1||

सती प्रथा, स्त्री दास्यत्व लादले रुढीने 
झाकला स्वाभिमान दास्यत्व बुरख्याने 
बेगडी चौकटित बांधले गुलामीची गाठ || 211

जिजाऊ, मनीकर्णीका, अहिल्या, साहू 
दुष्ट चालीरीती तोडण्या उसळले बाहू
 फोडीले झुगारूनी कुप्रथेचे अमानवी माठ ॥ 3||

इंदिराजी, मायाबहेन, धगधगती तलवार 
स्त्री शक्ती पुन्हा उठा लावोनी ज्ञान धार 
जमू लागलेत पुन्हा गुलामीचे ढग दाट || 4||

सोसूनी शिक्षा आजवर रुढीची 
ठेच विषमता अमानवी फडीची 
भेकड गिधाडांना फोड आता दहाड ll 5ll 

कवी गायक संगीत श्री राजेंद्रकुमार जगन्नाथ भोसले

Rajendrakumar Jagannath Bhosale

©Rajendrakumar Jagannath Bhosale आंतरराष्ट्रीय महिला दिन स्फूर्ती गीत
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