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सुरेश सारस्वत
मैं हर रोज़ कोई नई कहानी खोजता हूँ अपने शहर अजनबी के दर्द में अपनापन बिखरा-बिखरा मिलता है चारों तरफ कोना-कोना दर्द को बयान करता हुआ अंदर से रोता हुआ पर बाहर एकदम खामोश ये मेरे शहर के खुदगर्ज़ खुदा के करीबी दोस्त मेरे अपनों से बिलकुल ज़ुदा, मेरे हम दर्द अपने दर्द से ज्यादा परवाह करते हैं अपना दर्द भूल कर दिखाते हैं मुस्कान की रोशनी नई राह भूल कर रिसते जख्म दिखाते हैं जज़्बा बनते हुए मैं .... शायद यही है सत्व दर्शन ©सुरेश सारस्वत #Flower यही है सत्व दर्शन
manoj kumar jha"Manu"
सत्व गुण जिस समय शरीर में तथा मन में और इंद्रियों में चेतनता और विवेक शक्ति उत्पन्न होती है, उस समय ऐसा जानना चाहिए कि सत्व गुण बढ़ा है।- श्रीमद्भगवद्गीता भगवान उवाच अ०१४/११ #गीता_ज्ञान सत्व गुण सबसे उत्तम है।
Neena Jha
ध्यायें माँ ब्रह्मचारिणी, पाएँ अभय वरदान, काम वासना से दूर हों, मिले सत्व ज्ञान। नीना झा #संजोगिनी ©Neena Jha #navratri #Neverendingoverthinking #नीना_झा #जय_श्री_नारायण #संजोगिनी जय माँ शारदे 🙏 ध्यायें माँ ब्रह्मचारिणी, पाएँ अभय वरदान, काम वासना से
Jyoti Prakash Kerwar
🥀वो दिन याद है तुम्हें, राह चलते, उस जमघट का ध्यान.. मेरी हील्स की टक-टक पे ठहरा था ! 🥀और मुझे पिपासा थी, माथे की बिंदी.. तुम्हारी आँखों से यथावत कर लूँ ! 🥀आहा..! वो पल, रसवती चुंबन का .. इन सीठे अधरों को जखड़ता गया ! 🥀ये अंतर्मन, आज भी आकंठ है.. तुम्हारे उस मधु सत्व की "आहा.. से" ! * जमघट - crowd * पिपासा - thirst * यथावत - exact * रसवती चुंबन - wet kiss * जखड़ता - holding * सीठे - flavourless * अंतर्मन - subconscio
Vandana
नदी किनारे बैठे हर सुबह देखती हूं। फिर ढलते हुए जादुई शाम देखती हूं। मैं सूरज के पलछिन को जल की तरंगों में उभरते ढलते देखती हूं। मैं रात दिन के इस मनोरम खेल को हर दिन देखती हूं। पल पल बीतता जाता है समय की धारा को प्रतिपल चलते देखती हूं। उम्र बढ़ती है मानव,आते और जाते, मैं इस परमसत्य को अंतर्मन होकर प्रतिक्षण देखती हूं। जो यहीं है,सदियों से उसके अक्स को महसूस करके देखती हूं। युगो युगो से आकाश पृथ्वी चांद सितारे यही विद्यमान है। कितने मानव आए और कितने मानव गये। कितनी पीढ़ियां आयी और कितनी पीढ़ियां गयी। पर जो कभी समाप्त नहीं हुआ उस तेज को देखती हूं। उस शक्ति की उर्जा को शरीर में बहते देखती हूं,,,, कितनी देर कर दी मैंने बाहरी आडंबरों में, कितना समय गंवा के,, इतने वक्त तक महरूम थी, तेरे आनंदमयी सत्व से,, यह आंखें देख नहीं पायी तेरे पंच ग
Sarita Prashant Gokhale
वृत्त:- स्त्रग्विणी लगावली:- गालगा,गालगा,गालगा,गालगा सौख्य ताटातले घेतले मी कुठे दु:ख दैवातले टाळले मी कुठे सत्व पाहू नको जीवना तू पुन्हा सांग माझे मला शोधले मी कुठे प्राण हरलास तू होउनी पारधी पिंजऱ्याला तुझ्या सोडले मी कुठे दूर जाऊ नको बोलताना मला वेदनांना तुझ्या ऐकले मी कुठे काय सलते मनी सांग तू एकदा दु:ख सारे तुझे वाचले मी कुठे सरिता प्रशांत गोखले ©Sarita Prashant Gokhale #SunSet वृत्त:- स्त्रग्विणी लगावली:- गालगा,गालगा,गालगा,गालगा सौख्य ताटातले घेतले मी कुठे दु:ख दैवातले टाळले मी कुठे
Sangeeta Kalbhor
आयुष्य... प्रकाशाच्या वाटेने चालत रहावे कायम आपलेच आपल्यासाठी बनवून नवे नियम रहात नाही अंधार तसाही आयुष्यात ठाण मांडून आयुष्य आहे हे वेड्या कधी कधी घ्यावे की कांडूण चोथा असला म्हणून काय झाले असते सत्व त्यात उजेड येतोचं येतो गर्भार करुन रात फुटतात कळ्या टचकन अलगद अलगद उमलत समजण्यातचं माणूस करत असतो गफलत विसाव्याला असला किनारा की आयुष्य चालत राहतं थोडं थांबलं तरी ठेवावं आयुष्यभर वाहतं..... मी माझी...... ©Sangeeta Kalbhor #Identity आयुष्य... प्रकाशाच्या वाटेने चालत रहावे कायम आपलेच आपल्यासाठी बनवून नवे नियम रहात नाही अंधार तसाही आयुष्यात ठाण मांडून
नितिन कुमार 'हरित'
पुरुष तुम, हो सकल रूप, हो गुणाधार, तुम हो सशक्त, तुम हो अपार । तुम दृढ़ - संयम, तुम तत्व हो, दीपित हो, तप हो, सत्व हो । तुम बोध हो, पर मौन
Rakhi Jain
आज कुछ सच भी बता नमस्कार लेखकों🌸 आज के #rzdearcharacters में हम लेकर आये हैं #rzप्रियदर्पण। दर्पण बिल्कुल समाज की तरह है, वो सिर्फ परत देखता है। परखता है
Dr Upama Singh
तूझसे क्या छुपा है तू तो सब जानती है प्रेम भाव समर्पण सब कुछ है तुझ पर और अपनों पर अर्पण। नमस्कार लेखकों🌸 आज के #rzdearcharacters में हम लेकर आये हैं #rzप्रियदर्पण। दर्पण बिल्कुल समाज की तरह है, वो सिर्फ परत देखता है। परखता है