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AbhiJaunpur
White लोकतंत्र के महापर्व के दूसरे चरण का मतदान 26/04/2024 प्रारम्भ। लोकतंत्र के महापर्व मे अपनी सहभागिता वोट देकर दर्ज करें। आपका वोट ।। आपकी ताकत।। ©AbhiJaunpur #VoteForIndia #AbhiJaunpur #voting #2roundvoting #Vote Sm@rty divi P@ndey शिवम् सिंह भूमि आशुतोष पांडेय (Aashu) सनातनी अदनासा- Anshu write
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White खुद को गलत ठहरा कर, कहानी से निकल गए हम। ©5million Followers #GoodMorning "सीमा"अमन सिंह
#काव्यार्पण
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MAHENDRA SINGH PRAKHAR
दोहा :- अनपढ़ ही वे ठीक थे , पढ़े लिखे बेकार । पड़कर माया जाल में , भूल गये व्यवहार ।।१ मातु-पिता में भय यही , हुआ आज उत्पन्न । खाना सुत का अन्न तो , होना बिल्कुल सन्न ।।२ वृद्ध देख माँ बाप को , कर लो बचपन याद । ऐसे ही कल तुम चले , ऐसे होगे बाद ।।३ तीखे-तीखे बैन से , करो नहीं संवाद । छोड़े होते हाथ तो , होते तुम बरबाद ।।४ बच्चों पर अहसान क्या, आज किए माँ बाप । अपने-अपने कर्म का , करते पश्चाताप ।।५ मातु-पिता के मान में , कैसे ये संवाद । हुई कहीं तो चूक है , जो ऐसी औलाद ।।६ मातु-पिता के प्रेम का , न करना दुरुपयोग । उनके आज प्रताप से , सफल तुम्हारे जोग ।।७ हृदयघात कैसे हुआ , पूछे जाकर कौन । सुत के तीखे बैन से, मातु-पिता है मौन ।।८ खाना सुत का अन्न है , रहना होगा मौन । सब माया से हैं बँधें , पूछे हमको कौन ।।९ टोका-टाकी कम करो , आओ अब तुम होश । वृद्ध और लाचार हम , अधर रखो खामोश ।।१० अधर तुम्हारे देखकर , कब से थे हम मौन । भय से कुछ बोले नही , पूछ न लो तुम कौन ।।११ थर-थर थर-थर काँपते , अधर हमारे आज । कहना चाहूँ आपसे , दिल का अपने राज ।।१२ मातु-पिता के मान का , रखना सदा ख्याल । तुम ही उनकी आस हो , तुम ही उनके लाल ।।१३ २५/०४/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR दोहा :- अनपढ़ ही वे ठीक थे , पढ़े लिखे बेकार । पड़कर माया जाल में , भूल गये व्यवहार ।।१ मातु-पिता में भय यही , हुआ आज उत्पन्न ।
poonam atrey
White मैं और मेरी क़लम ,अक़्सर साँझे ख़्वाब देखते हैं, भरके कल्पना की उड़ान ,बारिश में धूप सेंकते हैं, करते हैं खूबसूरत लफ़्ज़ों से मुलाक़ात जब जब, करते हैं सज़दा उनको, सम्मान में माथा टेकते हैं, बना लेते हैं यदा कदा , लज़ीज़ पुलाव ख्याली, बनाकर लफ़्ज़ों के व्यंजन,क़ागज़ पे तंदूर सेंकते हैं, सजाते हैं चाँद तारों को ,कोरे क़ागज़ के आसमान पे, उड़ जातें हैं हाथ थामे कभी,अंबर से नीचे देखते हैं, अधूरे हैं एक दूसरे के बिन ,मुक़म्मल होकर भी, उदास और तन्हा लम्हो में,पानी मे पत्थर फेंकते हैं, लिखतें हैं ग़ज़ल ख़ुशियों की ,नज़्म बातों की बनाकर, लफ़्ज़ों की लंबी डोर को ,क़लम पर लपेटते हैं।। मैं और मेरी कलम , जब मिल बैठते हैं तन्हाई में, सारे लफ्ज़ मुस्कुराकर ,तब हमारी ओर देखते हैं ।। -पूनम आत्रेय ©poonam atrey #मैंऔरक़लम #पूनमकीकलमसे #नोजोटो_हिंदी Sethi Ji Ashish Khare Mahi अब्र (Abr) Bhardwaj Only Budana Mili Saha RAVINANDAN Tiwari 0 Suresh Gu
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White समय किसी का आता नही, समय अपना लाना पड़ता है। ©5million Followers #mountain "सीमा"अमन सिंह
Rishu singh
White कोई किसी के लिए फ्री में कुछ नही करता जिसका जितना स्वार्थ उसकी उतनी जी हुजूरी फर्क सिर्फ इतना है कि हम स्वार्थ को प्रेम का नाम दे देते हैं ©Rishu singh #Dosti कोई किसी के लिए फ्री में कुछ नही करता जिसका जितना स्वार्थ उसकी उतनी जी हुजूरी फर्क सिर्फ इतना है कि हम स्वार्थ को प्रेम का नाम दे देत
Meena Singh Meen
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
चौपाई छन्द :- पीर पराई बनी बिवाई । हमको आज कहाँ ले आयी ।। मन के अपनी बात छुपाऊँ । मन ही मन अब रोता जाऊँ ।। चंचल नैनो की थी माया । जो कंचन तन हमको भाया ।। नागिन बन रजनी है डसती । सखी सहेली हँसती तकती ।। कौन जगत में है अब अपना । यह जग तो है झूठा सपना ।। आस दिखाए राह न पाये । सच को बोल बहुत पछताये ।। यह जग है झूठों की नगरी । बहु तय चमके खाली गगरी ।। देख-देख हमहूँ ललचाये । भागे पीछे हाथ न आये ।। खाया वह मार उसूलो से । औ जग के बड़े रसूलों से ।। पाठ पढ़ाया उतना बोलो । पहले तोलो फिर मुँह खोलो ।। आज न कोई उनसे पूछे । जिनकी लम्बी काली मूछे । स्वेत रंग का पहने कुर्ता । बना रहे पब्लिक का भुर्ता ।। बन नीरज रवि रहा अकाशा । देता जग को नित्य दिलाशा । दो रोटी की मन को आशा । जीवन की इतनी परिभाषा ।। लोभ मोह सुख साधन ढूढ़े । खोजे पथ फिर टेढे़ मेंढ़े । बहुत तीव्र है मन की इच्छा । भरे नहीं यह पाकर भिच्छा ।। राधे-राधे रटते-रटते । कट जायेंगे ये भी रस्ते । अपनी करता राधे रानी । जिनकी है हर बात बखानी । प्रेम अटल है तेरा मेरा । क्या लेना अग्नी का फेरा । जब चाहूँ मैं कर लूँ दर्शन । कहता हर पल यह मेरा मन ।। २४/०४/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR चौपाई छन्द :- पीर पराई बनी बिवाई । हमको आज कहाँ ले आयी ।। मन के अपनी बात छुपाऊँ । मन ही मन अब रोता जाऊँ ।। चंचल नैनो की थी माया । जो कंच