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siddharth vaidya
कमल कोश में विश्राम मिथ्या मृत्यु का अपमान है इस तुक्ष आकर्षण के लिए किस त्याग का अभिमान है सिद्धार्थ वैद्य #छायावाद की ओर
HintsOfHeart.
"मधुर मधु-सौरभ जगत् को स्वप्न में बेसुध बनाता, वात विहगों के विपिन के गीत आता गुनगुनाता। मैं पथिक हूँ श्रांत, कोई पथ प्रदर्शक भी न मेरा, चाहता अब प्राण अलसित शून्य में लेना बसेरा।" ©HintsOfHeart. #महादेवी_वर्मा #जन्म_जयंती महादेवी वर्मा जी हिन्दी काव्य में छायावाद की एक प्रमुख स्तंभ थीं। जन्म: 26 मार्च 1907, फ़र्रुखाबाद, उत्तर प्रदे
Parasram Arora
निमंत्रण और आग्रह भरी उन नज़रो की उपेक्षा करना मेरे बस मे नही था और आज इसीलिए जिंदगी मे मस्ती और मदहोशी का आलम है भरोसे और प्रेम का गुदगुदाता हुआ वो प्रीत का मंत्र जीवन मे सुरम्य छंदो की बोँछार कर गया है तभी ये जिंदगी काव्य की परिक्रमा करते करते कविता बनने लगी है ©Parasram Arora काव्य की परिक्रमा
जगदीश्वर ' तश्नगी'
शशि- चांदनी -------- शशि किरणों में, मधुर गीत की राग,जैसे निर्झरिणी में नीर का अनुराग, अमा में चंद्र का विधान ,कृष्ण पक्ष में कला महान स्वबस बस कर बसु प्रेम जताए ,सुरपुर सी दुनिया बसाए। दुग्ध धवल सा रूप क्षण पाए ,रेशमी विभा में को कोई आए। रका में रजनीश मयुंखे , रजनी वासर जानाती। अवनि पर आकर रजत सी ,राज कन को आभा बनाती। अंबु नवीन सी वह धनी ,सभ्य जीवन जैसे सनी। रैन में चंद्र चांदनी,उजाला की रानी बनी। व्योम में मलयाज सस्मित हुआ , शशि चांदनी में सुधा भरा। चांदनी में जो अभिषेक किया ,सकल रूप शशि अमृत पिया। चारों तरफ़ आभा की लाली ,कृष्ण वस्तु पर लगे निराली। वह क्षणदा की दीप्ति साधनी ,बनी शशि की चांदनी। - जगदीश्वर कुशवाहा उत्कृष्ट भाषा शैली में "शशि- चांदनी" छायावाद की रचना की तरह with Ritisha Jain
sweta kumari
'साँवरी हूँ मैं' ............... कृष्ण-सा रंग,कृष्ण के संग बावरी हूँ मैं, हाँ साँवरी हूँ मैं। घनानंद के प्रेम के पीर पर बलिहारी हूँ मैं, हाँ साँवरी हूँ मैं। र्दुबुद्धि से उत्पन्न उसके बीज का संहारकारी हूँ मैं, हाँ साँवरी हूँ मैं। कदंब की अनोखी डाली-सी चमत्कारी हूँ मैं, हाँ साँवरी हूँ मैं। प्रकृति की नैसर्गिक छटा-सी मनोहारी हूँ मैं, हाँ साँवरी हूँ मैं। संपूर्ण जगत में प्रेम की संचारी हूँ मैं, हाँ साँवरी हूँ मैं। मानव की मानवीयता का प्रतिहारी हूँ मैं, हाँ साँवरी हूँ मैं। श्वेता कुमारी विशुनपूर(गायत्री नगर),धनबाद झारखंड। ©sweta kumari छायावाद को स्पर्श करती कविता #one session