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Bharat Bhushan pathak
बीत रहा फिर वर्ष सुनहरा,नूतन आने वाला। इसने हमको यही बताया,जीवन अच्छी शाला।। पढ़ा यहाँ पे जो भी इसमें,अनुभव उसने पाया। प्रथम सदा वह ही होता है,जो कभी न भरमाया।। आना-जाना वर्षों का तो,सुनें खेल ये बहुत पुराना। जो हम सीखे और सिखाए,इसको बस अपनाना।। ©Bharat Bhushan pathak सार छंद चार चरणों का अत्यंत गेय मात्रिक छंद है। प्रति चरण 28 मात्रा होती है। यति 16 और 12 मात्रा पर है। दो दो चरण तुकान्त । 16 मात्रिक पद ठ
सार छंद चार चरणों का अत्यंत गेय मात्रिक छंद है। प्रति चरण 28 मात्रा होती है। यति 16 और 12 मात्रा पर है। दो दो चरण तुकान्त । 16 मात्रिक पद ठ
read moreहिमांशु Kulshreshtha
नहीं जानता क्या रिश्ता है मेरी रूह से तुम्हारी रूह का जो भी है ये, मगर खूब है ये अधूरा सा रिश्ता हमारा तन के रिश्ते, ना थे पहचान कभी मेरे इश्क की…. रूहों के मिलन से से होगा नायाब ये अधूरा सा रिश्ता हमारा ©हिमांशु Kulshreshtha क्या रिश्ता है..
क्या रिश्ता है..
read moreParasram Arora
White धर्म! आखिर ये धर्म है क्या? मैंने तो सिर्फ जीवन को ही जाना है जीवन के अलावा मैंने किसी को नहीं जाना है. और मेरी दृष्टि मे जीवन का अर्थ है. खेत हल कुवा और लहल्हाती फसल जीवन का अर्थ है पत्नी बच्चे और सुखद सफल दाम्पत्य ©Parasram Arora आखिर ये धर्म है क्या?
आखिर ये धर्म है क्या?
read moreShiv Narayan Saxena
White ताटंक छंद नाम जपे से जन्मों के अघ, कटें कृपा तब पाता है। प्रभु ऐसे भक्तों से मिलने, खुद चलकर के आता है।। भाव भक्ति में जब आता है, इष्ट सखा बन जाता है। किसी और पर भक्त नहीं बस, प्रभु आश्रित हो जाता है।। 'शौक' अनोखा खेल अनोखा, प्रभु से अपना नाता है। यही मान जो जिये जगत में, प्रभु का प्रिय हो जाता है।। ©Shiv Narayan Saxena #rajdhani_night छंद रचना poetry in hindi
#rajdhani_night छंद रचना poetry in hindi
read moreMatangi Upadhyay( चिंका )
प्रेम क्या है..? मन की व्यथा जब कहनी ना पड़े, तन की पीड़ा जब बतानी ना पड़े, आँसू गिरे तो किसी की हथेली नर्म कर दे, निगाहें उठे तो गुस्सा शांत कर दे, मन जब उस मुकाम पर किसी के कंधे पर सर रख कर मुस्कुराए और आँखें भीग जाए, वो एहसास वो मुकाम प्रेम है..! ©Matangi Upadhyay( चिंका ) प्रेम क्या है?? #matangiupadhyay #Nojoto
प्रेम क्या है?? #matangiupadhyay
read moreShiv Narayan Saxena
White ताटंक छंद राजनीति में जनता कपिला, कैसा खेल निराला है। कभी न लात उठाती कपिला, नेता भरता हाला है।। अपनी इस चालाकी पर वह, मन ही मन इठलाता है। पकड़े जाने के डर से वह, खाता और खिलाता है।। नेता अफसर में बस केवल, इतना सा ही नाता है। खुद खाओ और हमें खिलाओ, भारत भाग्य विधाता है।। ©Shiv Narayan Saxena #sad_quotes छंद रचना poetry in hindi
#sad_quotes छंद रचना poetry in hindi
read morekatha Darshan
White धुआं लकड़ी का हो या यादों का आँखे तो जलती ही हैं ©katha Darshan #Nojoto क्या बदलता है ! Katha Darshan
क्या बदलता है ! Katha Darshan
read morekatha Darshan
White कौन झाँक रहे है इधर उधर सब। अपने अंदर झांकें कौन ? ढ़ूंढ़ रहे दुनियाँ में कमियां । अपने मन में ताके कौन ? दुनियाँ सुधरे सब चिल्लाते । खुद को आज सुधारे कौन ? पर उपदेश कुशल बहुतेरे । खुद पर आज विचारे कौन ? हम सुधरें तो जग सुधरेगा यह सीधी बात स्वीकारे कौन? ©katha Darshan #Nojoto क्या बदलना है ! Katha Darshan
क्या बदलना है ! Katha Darshan
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