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Bharat Bhushan pathak

#राम राम नाम ही जग से तारे। रूप अलौकिक जिनके प्यारे।। सुबह-शाम तू जपता जा रे। दशरथ नंदन राम दुलारे।। #Poetry

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राम नाम ही जग से तारे।
रूप अलौकिक जिनके प्यारे।।
सुबह-शाम तू जपता जा रे।
दशरथ नंदन राम दुलारे।।

©Bharat Bhushan pathak #राम
राम नाम ही जग से तारे।
रूप अलौकिक जिनके प्यारे।।
सुबह-शाम तू जपता जा रे।
दशरथ नंदन राम दुलारे।।

Instagram id @kavi_neetesh

विषय: सुभाष चन्द्र बोस जयंती या पराक्रम दिवस समस्त माताओं , बहनों एवं बंधुओं को सुभाष चंद्र बोस जयंती की हार्दिक शुभकामनाएँ । सुभाष चंद्र #subhashchandrabose #समाज

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समस्त माताओं , बहनों एवं बंधुओं को सुभाष चंद्र बोस जयंती की हार्दिक शुभकामनाएँ ।
सुभाष चंद्र बोस जी के नाम पर एक सुभाष चालिसा का प्रयास:
                   दोहा
अष्ट शताब्दी वर्ष तक ,
यह भारत रहा गुलाम ।
कभी मुगल कभी गोरे ,
रहे शासन ये अविराम ।।
                   चौपाई 
जय सुभाष तेरा अभिनंदन ।
चरण तुम्हारे कोटिशः वंदन ।।
जय जय हे वीर भारत नंदन ।
चीख पुकार सुने तुम क्रंदन ।।
मुगल शासन निरंतर कीन्हा ।
ब्रिटेन पुर्तगाल शासन लीन्हा ।।
अठारह शताब्दी औ सत्तावन ।
गोरे बने थे कंस बालि रावण ।।

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©Instagram id @kavi_neetesh विषय: सुभाष चन्द्र बोस जयंती या पराक्रम दिवस 

समस्त माताओं , बहनों एवं बंधुओं को सुभाष चंद्र बोस जयंती की हार्दिक शुभकामनाएँ ।
सुभाष चंद्र

katha Darshan

Samsara Page No 4 । समसारा - रघु नंदन #कविता

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katha Darshan

Samsara Page No 3 । समसारा - रघु नंदन #विचार

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₹0Hiत

दामोदर स्तुति करारविन्देन पदारविन्दं मुखारविन्दे विनिवेशयन्तम्, वटस्य पत्रस्य पुटे शयानं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि, श्रीकृष्ण गोविन्द हरे #Life

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AJAY NAYAK

ramayan मंगल भवन अमंगल हारी द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी अर्थ : जो मंगल करने वाले और अमंगल हो दूर करने वाले है , वो दशरथ नंदन श्री राम है व

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Vinod Mishra

संकर सुवन केसरी नंदन, तेज प्रताप महा जग वंदन #विनोद मिश्र रेसिटेशन #समाज

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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

1222    1222 विजात छन्द प्रणय करती तुम्हीं से मैं । बनूँ हरि आज दासी मैं ।। #कविता

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विजात छन्द
प्रणय करती तुम्हीं से मैं ।
बनूँ हरि आज दासी मैं ।।
करो अब मुक्त बंधन से ।
लगा है नेह नंदन से ।।

तुम्हारा हार हो जाऊँ ।
खुदी को हार जो जाऊँ ।।
हृदय मुझको बिठा लेना ।
नहीं फिर से दगा देना ।।

यही तो शुभ दिवस अपना ।
हुआ तय माँग तुम भरना ।।
चलूंगी साथ मैं तेरे ।
करूंगी सात जब फेरे ।।

दिखाये थे तुम्हें सपने ।
उन्हें पूरे किये हमने ।।
बिठाकर अब तुम्हें लाये ।
हृदय पट खोल दिखलाये ।।

वचन तुम सब निभाओगी ।
नहीं तुम छोड़ जाओगी ।।
चलेगी साँस यह जब तक ।
रहोगी साथ तुम तब तक ।।

भरोसा तुम यही करना ।
नही फिर आँह तुम भरना ।।
बनूँगी मैं सदा छाया ।
जगत की छोड़कर माया ।।

१३/१२/२०२३   -  महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR 1222    1222

विजात छन्द


प्रणय करती तुम्हीं से मैं ।

बनूँ हरि आज दासी मैं ।।

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

1222    1222 विजात छन्द प्रणय करती तुम्हीं से मैं । बनूँ हरि आज दासी मैं ।। #कविता

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विजात छन्द
प्रणय करती तुम्हीं से मैं ।
बनूँ हरि आज दासी मैं ।।
करो अब मुक्त बंधन से ।
लगा है नेह नंदन से ।।

तुम्हारा हार हो जाऊँ ।
खुदी को हार जो जाऊँ ।।
हृदय मुझको बिठा लेना ।
नहीं फिर से दगा देना ।।

यही तो शुभ दिवस अपना ।
हुआ तय माँग तुम भरना ।।
चलूंगी साथ मैं तेरे ।
करूंगी सात जब फेरे ।।

दिखाये थे तुम्हें सपने ।
उन्हें पूरे किये हमने ।।
बिठाकर अब तुम्हें लाये ।
हृदय पट खोल दिखलाये ।।

वचन तुम सब निभाओगी ।
नहीं तुम छोड़ जाओगी ।।
चलेगी साँस यह जब तक ।
रहोगी साथ तुम तब तक ।।

भरोसा तुम यही करना ।
नही फिर आँह तुम भरना ।।
बनूँगी मैं सदा छाया ।
जगत की छोड़कर माया ।।

१३/१२/२०२३   -  महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR 1222    1222

विजात छन्द


प्रणय करती तुम्हीं से मैं ।

बनूँ हरि आज दासी मैं ।।

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

1222    1222 विजात छन्द प्रणय करती तुम्हीं से मैं । बनूँ हरि आज दासी मैं ।। #कविता

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विजात छन्द

प्रणय करती तुम्हीं से मैं ।
बनूँ हरि आज दासी मैं ।।
करो अब मुक्त बंधन से ।
लगा है नेह नंदन से ।।

तुम्हारा हार हो जाऊँ ।
खुदी को हार जो जाऊँ ।।
हृदय मुझको बिठा लेना ।
नहीं फिर से दगा देना ।।

यही तो शुभ दिवस अपना ।
हुआ तय माँग तुम भरना ।।
चलूंगी साथ मैं तेरे ।
करूंगी सात जब फेरे ।।

दिखाये थे तुम्हें सपने ।
उन्हें पूरे किये हमने ।।
बिठाकर अब तुम्हें लाये ।
हृदय पट खोल दिखलाये ।।

वचन तुम सब निभाओगी ।
नहीं तुम छोड़ जाओगी ।।
चलेगी साँस यह जब तक ।
रहोगी साथ तुम तब तक ।।

भरोसा तुम यही करना ।
नही फिर आँह तुम भरना ।।
बनूँगी मैं सदा छाया ।
जगत की छोड़कर माया ।।

१३/१२/२०२३   -  महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR 1222    1222

विजात छन्द


प्रणय करती तुम्हीं से मैं ।

बनूँ हरि आज दासी मैं ।।
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