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Bharat Bhushan pathak
राम नाम ही जग से तारे। रूप अलौकिक जिनके प्यारे।। सुबह-शाम तू जपता जा रे। दशरथ नंदन राम दुलारे।। ©Bharat Bhushan pathak #राम राम नाम ही जग से तारे। रूप अलौकिक जिनके प्यारे।। सुबह-शाम तू जपता जा रे। दशरथ नंदन राम दुलारे।।
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समस्त माताओं , बहनों एवं बंधुओं को सुभाष चंद्र बोस जयंती की हार्दिक शुभकामनाएँ । सुभाष चंद्र बोस जी के नाम पर एक सुभाष चालिसा का प्रयास: दोहा अष्ट शताब्दी वर्ष तक , यह भारत रहा गुलाम । कभी मुगल कभी गोरे , रहे शासन ये अविराम ।। चौपाई जय सुभाष तेरा अभिनंदन । चरण तुम्हारे कोटिशः वंदन ।। जय जय हे वीर भारत नंदन । चीख पुकार सुने तुम क्रंदन ।। मुगल शासन निरंतर कीन्हा । ब्रिटेन पुर्तगाल शासन लीन्हा ।। अठारह शताब्दी औ सत्तावन । गोरे बने थे कंस बालि रावण ।। READ IN CAPTION........ ©Instagram id @kavi_neetesh विषय: सुभाष चन्द्र बोस जयंती या पराक्रम दिवस समस्त माताओं , बहनों एवं बंधुओं को सुभाष चंद्र बोस जयंती की हार्दिक शुभकामनाएँ । सुभाष चंद्र
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गोविन्द दामोदर माधवेति श्रोतम् दामोदर स्तुति करारविन्देन पदारविन्दं मुखारविन्दे विनिवेशयन्तम्, वटस्य पत्रस्य पुटे शयानं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि, श्रीकृष्ण गोविन्द हरे मुरारे हे नाथ नारायण वासुदेव, जिव्हे पिबस्वामृतमेतदेव गोविन्द दामोदर माधवेति, विक्रेतुकामा किल गोपकन्या मुरारिपादार्पितचित्तवृत्ति:, दध्यादिकं मोहवशादवोचद् गोविन्द दामोदर माधवेति, गृहे गृहे गोपवधूकदम्बा: सर्वे मिलित्वा समवाप्य योगम्, पुण्यानि नामानि पठन्ति नित्यं गोविन्द दामोदर माधवेति, सुखं शयाना निलये निजेऽपि नामानि विष्णो: प्रवदन्ति मर्त्या, ते निश्चितं तन्मयतां व्रजन्ति गोविन्द दामोदर माधवेति, जिव्हे सदैवं भज सुन्दराणि नामानि कृष्णस्य मनोहराणि, समस्त भक्तार्ति विनाशनानि गोविन्द दामोदर माधवेति, सुखावसाने इदमेव सारं दु:खावसाने इदमेव ज्ञेयम्, देहावसाने इदमेव जाप्यं गोविन्द दामोदर माधवेति, श्रीकृष्ण राधावर गोकुलेश गोपाल गोवर्धन नाथ विष्णुः, जिव्हे पिबस्वा मृतमेतदेव गोविंद दामोदर माधवेति, जिव्हे रसज्ञे मधुर प्रिया त्वं सत्यं हितं त्वां परमं वदामि, अवर्णयेथा मधुराक्षराणि गोविन्द दामोदर माधवेति, त्वामेव याचे मम देहि जिह्वे समागते दण्डधरे कृतान्ते, वक्तव्यमेवं मधुरं सुभक्त्या गोविन्द दामोदर माधवेति, श्रीनाथ विश्वेश्वर विश्व मूर्ते श्री देवकी नंदन दैत्य शत्रु , जिव्हे पिबस्वामृतमेतेव गोविंद दामोदर माधवेति , गोपी पते कंसरिपो मुकुंद लक्ष्मी पते केशव वासुदेव जिव्हे पिबस्वामृतमेतेव गोविंद दामोदर माधवेति , ©₹0Hiत दामोदर स्तुति करारविन्देन पदारविन्दं मुखारविन्दे विनिवेशयन्तम्, वटस्य पत्रस्य पुटे शयानं बालं मुकुन्दं मनसा स्मरामि, श्रीकृष्ण गोविन्द हरे
AJAY NAYAK
मंगल भवन अमंगल हारी द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी अर्थ : जो मंगल करने वाले और अमंगल हो दूर करने वाले है , वो दशरथ नंदन श्री राम है वो मुझपर अपनी कृपा करे। ।।जय श्री राम।। ©AJAY NAYAK #ramayan मंगल भवन अमंगल हारी द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी अर्थ : जो मंगल करने वाले और अमंगल हो दूर करने वाले है , वो दशरथ नंदन श्री राम है व
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
विजात छन्द प्रणय करती तुम्हीं से मैं । बनूँ हरि आज दासी मैं ।। करो अब मुक्त बंधन से । लगा है नेह नंदन से ।। तुम्हारा हार हो जाऊँ । खुदी को हार जो जाऊँ ।। हृदय मुझको बिठा लेना । नहीं फिर से दगा देना ।। यही तो शुभ दिवस अपना । हुआ तय माँग तुम भरना ।। चलूंगी साथ मैं तेरे । करूंगी सात जब फेरे ।। दिखाये थे तुम्हें सपने । उन्हें पूरे किये हमने ।। बिठाकर अब तुम्हें लाये । हृदय पट खोल दिखलाये ।। वचन तुम सब निभाओगी । नहीं तुम छोड़ जाओगी ।। चलेगी साँस यह जब तक । रहोगी साथ तुम तब तक ।। भरोसा तुम यही करना । नही फिर आँह तुम भरना ।। बनूँगी मैं सदा छाया । जगत की छोड़कर माया ।। १३/१२/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR 1222 1222 विजात छन्द प्रणय करती तुम्हीं से मैं । बनूँ हरि आज दासी मैं ।।
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
विजात छन्द प्रणय करती तुम्हीं से मैं । बनूँ हरि आज दासी मैं ।। करो अब मुक्त बंधन से । लगा है नेह नंदन से ।। तुम्हारा हार हो जाऊँ । खुदी को हार जो जाऊँ ।। हृदय मुझको बिठा लेना । नहीं फिर से दगा देना ।। यही तो शुभ दिवस अपना । हुआ तय माँग तुम भरना ।। चलूंगी साथ मैं तेरे । करूंगी सात जब फेरे ।। दिखाये थे तुम्हें सपने । उन्हें पूरे किये हमने ।। बिठाकर अब तुम्हें लाये । हृदय पट खोल दिखलाये ।। वचन तुम सब निभाओगी । नहीं तुम छोड़ जाओगी ।। चलेगी साँस यह जब तक । रहोगी साथ तुम तब तक ।। भरोसा तुम यही करना । नही फिर आँह तुम भरना ।। बनूँगी मैं सदा छाया । जगत की छोड़कर माया ।। १३/१२/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR 1222 1222 विजात छन्द प्रणय करती तुम्हीं से मैं । बनूँ हरि आज दासी मैं ।।
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
विजात छन्द प्रणय करती तुम्हीं से मैं । बनूँ हरि आज दासी मैं ।। करो अब मुक्त बंधन से । लगा है नेह नंदन से ।। तुम्हारा हार हो जाऊँ । खुदी को हार जो जाऊँ ।। हृदय मुझको बिठा लेना । नहीं फिर से दगा देना ।। यही तो शुभ दिवस अपना । हुआ तय माँग तुम भरना ।। चलूंगी साथ मैं तेरे । करूंगी सात जब फेरे ।। दिखाये थे तुम्हें सपने । उन्हें पूरे किये हमने ।। बिठाकर अब तुम्हें लाये । हृदय पट खोल दिखलाये ।। वचन तुम सब निभाओगी । नहीं तुम छोड़ जाओगी ।। चलेगी साँस यह जब तक । रहोगी साथ तुम तब तक ।। भरोसा तुम यही करना । नही फिर आँह तुम भरना ।। बनूँगी मैं सदा छाया । जगत की छोड़कर माया ।। १३/१२/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR 1222 1222 विजात छन्द प्रणय करती तुम्हीं से मैं । बनूँ हरि आज दासी मैं ।।