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Rishika Srivastava "Rishnit"
महफिल-ए-हुस्न थी, मयखाना था साकी का, शायरी "उरोज" पे पहुंँची तो, वो शर्मा इस क़दर गए, जैसे सामने रकीब आ बैठे... मिन्ही का कंचन सा साँचे में ढला उनका संगमरमरी बदन,, देख के हम तो देखते ही रह गए..!! ©Rishnit❤️ Erotica Quotes उरोज (स्तन, कुच) #Erotica #उरोज #NojotoWriters Pramodini Mohapatra Anamika Sharma Jyoti Duklan
dream saler
तेरी गीली ज़ुल्फों से टपकते ये मोती गीले बदन पर से बहती के शराब लरज़ते होठों पर अनकही प्यास तेरे उठे हुए उरोजों का ये शबाब इंतज़ार है तो बस टकराने का तेरे ज़िस्म के तूफान का मेरे से और फिर घनघोर बारिशों का.... तेरी गीली ज़ुल्फों से टपकते ये मोती गीले बदन पर से बहती के शराब लरज़ते होठों पर अनकही प्यास तेरे उठे हुए उरोजों का ये शबाब इंतज़ार है तो बस टकर
dream saler
आज की रात मेरे अरमानों को बहक जाने दो मुझे तेरे ज़िस्म की खुशबू से महक जाने दो मत रोको मुझे,चाहेआज दर्द बेइंतहा हो जाने दो मुझे तुम्हारे बदन की गहराई में उतर जाने दो तेरे मदमस्त उरोजों को आज हाथों में मचल जाने दो रात की खामोशी को मदभरी सीत्कारों से दहल जाने दो तेरी प्यासी जमीन पर आज मेरे प्यार का रस बरस जाने दो आज की रात मेरे अरमानों को बहक जाने दो मुझे तेरे ज़िस्म की खुशबू से महक जाने दो मत रोको मुझे,चाहेआज दर्द बेइंतहा हो जाने दो मुझे तुम्हारे बदन
Sachin Ratnaparkhe
ग़ज़ल: "हुस्न-ओ-शबाब" चाहता हूं तेरे लिए इमरोज़ कुछ न कुछ लिखूं, चाहता हूं तेरे लिए रोज़ कुछ न कुछ लिखूं। तेरी नर्गिसी आँखों में झलकता है ज़ाम-ए-इश्क़, चाहता हूं तेरी आँखो पर रोज कुछ न कुछ लिखूं। तेरी रेशमी जुल्फें सा अहसास है तुझसे मोहब्बत, चाहता हूं तेरी जुल्फों पर रोज कुछ न कुछ लिखूं। तेरी उभरे रुखसार से सजती है क़ातिल मुस्कुराहट, चाहता हूं तेरे रुखसार पर रोज कुछ न कुछ लिखूं। तेरे हुस्न-ए-उरोज पर मरती है कई जवानियाँ, चाहता हूं तेरे उरोज पर रोज कुछ न कुछ लिखूं। तेरे बोसा-ए-लब से ज्यादा सुरूर-ए-इश्क़ कहाँ, चाहता हूं तेरे लबों पर रोज कुछ न कुछ लिखूं। तेरी खूबसूरती-ए-जिस्म पर फ़िदा है सारा जमाना, चाहता हूं तेरे जिस्म पर रोज कुछ न कुछ लिखूं। तेरे कशिश-ए-हुस्न-ओ-शबाब से मदहोश है राही भी, चाहता हूं तेरे शबाब पर रोज कुछ न कुछ लिखूं। ग़ज़ल: "हुस्न-ओ-शबाब" चाहता हूं तेरे लिए इमरोज़ कुछ न कुछ लिखूं, चाहता हूं तेरे लिए रोज़ कुछ न कुछ लिखूं। तेरी नर्गिसी आँखों में झलकता है
Aprasil mishra
"स्त्रीत्व के प्रति हमारें दृष्टिकोंण संकीर्ण है अवश्य कहिये परन्तु जब तक नारीत्व की सुरक्षा स्वच्छंदता में सुनिश्चित न हो तब उसे स्वयं कुछ पुराने मापदण्डों का समय व स्थितियों के अनुरूप परिवार के श्रेष्ठों की सलाह का पालन अनिवार्यतः करना ही चाहिए। आधुनिक समाज के वीभत्सता का शिकार होने से तो यही उत्तम है।" *************************** क्यों नहीं तुम्हारे दिखती है चिंता रेखा, क्यों व्यर्थ तुम्हें मेरा समझाना लगता है? क्यों अक्ल तुम्हारी म
Md Sajjad Najami
काश !ऐसे देश भक्त की कहानी की हमारे देश के प्रधानमंत्री,और गृहमंत्री पढ़े होते तो....................। इसे जरूर पढ़ें
Md Sajjad Najami
काश !ऐसे देश भक्त की कहानी की हमारे देश के प्रधानमंत्री,और गृहमंत्री पढ़े होते तो....................। इसे जरूर पढ़ें