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Aprasil mishra
" मौन " **************** मौन की जो वेदना है मौन से ज्यादा मुखर है, मौन में है विश्व का तम मौन पर किसका असर है. मौन ने हैं प्राण खोये मौन में है मृत्यु का स्वर, मौन में है युद्ध छाया
**************** मौन की जो वेदना है मौन से ज्यादा मुखर है, मौन में है विश्व का तम मौन पर किसका असर है. मौन ने हैं प्राण खोये मौन में है मृत्यु का स्वर, मौन में है युद्ध छाया
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"जलप्लावन : शैवालिनि(नदी) पीड़ा" ( अनुशीर्षक👇) ********************************* पीड़ायें तो पीड़ायें हैं विह्वल पीड़ायें क्या जाने, है हिमनद में यों तपी देह कि वह बह बह कर ही माने. कल-कल निनाद की तानों में यह कैसा भाव पला है, समझ रही संगीत जिसे दुनिया वो रुदन - कला है. न थके नेत्र न रुकी अश्रु की यह अविरल जलधारा,
********************************* पीड़ायें तो पीड़ायें हैं विह्वल पीड़ायें क्या जाने, है हिमनद में यों तपी देह कि वह बह बह कर ही माने. कल-कल निनाद की तानों में यह कैसा भाव पला है, समझ रही संगीत जिसे दुनिया वो रुदन - कला है. न थके नेत्र न रुकी अश्रु की यह अविरल जलधारा,
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"उदारवाद बनाम रुढ़िवाद : एक जीवट समावेशी संस्कृति के सन्दर्भ में " 1.सांस्कृतिक अंतर्परिवर्तन- संस्कृति के बाहर किसी अन्य में संस्कृति में होने वाले बदलाव. 2.सांस्कृतिक अंत:परिवर्तन- किसी संस्कृति के भीतर होने वाले बदलाव. ******************************************* संस्कृति किसी समाज में लोगों की संज्ञानात्मक एवं भौतिकीय प्रक्रियात्मकता के मानकीकरण का साधन होती है, जो उस समाज के बीच ही सीखी और विकसित की जाती है|संस्कृतियों की तीन आयाम - 'संज्ञानात्मक (श्रव्य/दृश्य), मानकीय(व्यवहृत आचरण), भौतिकीय (उपभोग)' ही वे उपागम हैं, जो उसकी प्रकृति ए
1.सांस्कृतिक अंतर्परिवर्तन- संस्कृति के बाहर किसी अन्य में संस्कृति में होने वाले बदलाव. 2.सांस्कृतिक अंत:परिवर्तन- किसी संस्कृति के भीतर होने वाले बदलाव. ******************************************* संस्कृति किसी समाज में लोगों की संज्ञानात्मक एवं भौतिकीय प्रक्रियात्मकता के मानकीकरण का साधन होती है, जो उस समाज के बीच ही सीखी और विकसित की जाती है|संस्कृतियों की तीन आयाम - 'संज्ञानात्मक (श्रव्य/दृश्य), मानकीय(व्यवहृत आचरण), भौतिकीय (उपभोग)' ही वे उपागम हैं, जो उसकी प्रकृति ए
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"जीवन का प्रत्येक कर्म एक उचित कालखण्ड में ही संपादित होने पर फलीभूत होता है। उदाहरण - यदि अधेड़ उम्र अक्षर ज्ञान प्राप्त किया जाये एवं उद्यमवृत्ति का प्रयास जीवन के अंतिम क्षणों में हो तो वह फलसाध्य नहीं रह जाता कारण असमय प्रबंधन। अवसरों के कालक्रमों के अनुकूल कार्ययोजनाओं का शून्य हस्तक्षेप के साथ संपादन होना चाहिए, संतति जीवन के विकासपथ में किसी भी पूर्वाग्रही विचारधारा के कारण अवरोध बनने से बचे रहना उसके संरक्षकों का नैतिक दायित्व होता है जिसके अनुपालन को अनिवार्यतः सुनिश्चित किया जाना चाहिए।" मत राहों में अवरोध बनो गंतव्य पुत्र को चुनने दो, अपने अतृप्त अभिलाषाओं का ग्रास उसे मत बनने दो। उसके भी ख्वाबों की दुनिया शायद बिखरी है यहीं कहीं, तुम जिसको मूढ़ समझते हो वो है चेतन का वृक्ष कहीं।। उसके स्वप्नों की उर्वरता के पोषक तत्व तुम्हीं तो हो, उसकी अलका के शिल्पहार हर जीवनरंग तुम्हीं तो हो।
मत राहों में अवरोध बनो गंतव्य पुत्र को चुनने दो, अपने अतृप्त अभिलाषाओं का ग्रास उसे मत बनने दो। उसके भी ख्वाबों की दुनिया शायद बिखरी है यहीं कहीं, तुम जिसको मूढ़ समझते हो वो है चेतन का वृक्ष कहीं।। उसके स्वप्नों की उर्वरता के पोषक तत्व तुम्हीं तो हो, उसकी अलका के शिल्पहार हर जीवनरंग तुम्हीं तो हो।
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"नारी अस्मितायें एवं सामाजिक सुरक्षा" एक वीभत्स अपराध के साये में आज हमारा शहर भी जीने को अग्रसर हो रहा है।अशिक्षा एवं बेरोजगारी में उर्ध्वगामी सर्क तो था ही परन्तु बीते दिवस पाश्विकता में भी नवीन कीर्तिमानों की होड़ में मदान्ध होता दिख रहा है। उत्तर प्रदेश की निठल्ली बौराई निगाहों में मानों कामुकता का दावानल अब नोएडा, गाजियाबाद, मेरठ, इलाहाबाद से सीमस्थ क्षेत्र बलरामपुर तक मनुष्यता के विध्वंस को आमन्त्रित कर रहा है। प्रशासन भी शक्ति स्वतन्त्रता के भाँग में कानून व्यवस्था की धज्जियों को धूल फँका रहा ह
एक वीभत्स अपराध के साये में आज हमारा शहर भी जीने को अग्रसर हो रहा है।अशिक्षा एवं बेरोजगारी में उर्ध्वगामी सर्क तो था ही परन्तु बीते दिवस पाश्विकता में भी नवीन कीर्तिमानों की होड़ में मदान्ध होता दिख रहा है। उत्तर प्रदेश की निठल्ली बौराई निगाहों में मानों कामुकता का दावानल अब नोएडा, गाजियाबाद, मेरठ, इलाहाबाद से सीमस्थ क्षेत्र बलरामपुर तक मनुष्यता के विध्वंस को आमन्त्रित कर रहा है। प्रशासन भी शक्ति स्वतन्त्रता के भाँग में कानून व्यवस्था की धज्जियों को धूल फँका रहा ह
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"नारी अस्मितायें एवं सामाजिक सुरक्षा" एक वीभत्स अपराध के साये में आज हमारा शहर भी जीने को अग्रसर हो रहा है।अशिक्षा एवं बेरोजगारी में उर्ध्वगामी सर्क तो था ही परन्तु बीते दिवस पाश्विकता में भी नवीन कीर्तिमानों की होड़ में मदान्ध होता दिख रहा है। उत्तर प्रदेश की निठल्ली बौराई निगाहों में मानों कामुकता का दावानल अब नोएडा, गाजियाबाद, मेरठ, इलाहाबाद से सीमस्थ क्षेत्र बलरामपुर तक मनुष्यता के विध्वंस को आमन्त्रित कर रहा है। प्रशासन भी शक्ति स्वतन्त्रता के भाँग में कानून व्यवस्था की धज्जियों को धूल फँका रहा ह
एक वीभत्स अपराध के साये में आज हमारा शहर भी जीने को अग्रसर हो रहा है।अशिक्षा एवं बेरोजगारी में उर्ध्वगामी सर्क तो था ही परन्तु बीते दिवस पाश्विकता में भी नवीन कीर्तिमानों की होड़ में मदान्ध होता दिख रहा है। उत्तर प्रदेश की निठल्ली बौराई निगाहों में मानों कामुकता का दावानल अब नोएडा, गाजियाबाद, मेरठ, इलाहाबाद से सीमस्थ क्षेत्र बलरामपुर तक मनुष्यता के विध्वंस को आमन्त्रित कर रहा है। प्रशासन भी शक्ति स्वतन्त्रता के भाँग में कानून व्यवस्था की धज्जियों को धूल फँका रहा ह
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"स्त्रीत्व के प्रति हमारें दृष्टिकोंण संकीर्ण है अवश्य कहिये परन्तु जब तक नारीत्व की सुरक्षा स्वच्छंदता में सुनिश्चित न हो तब उसे स्वयं कुछ पुराने मापदण्डों का समय व स्थितियों के अनुरूप परिवार के श्रेष्ठों की सलाह का पालन अनिवार्यतः करना ही चाहिए। आधुनिक समाज के वीभत्सता का शिकार होने से तो यही उत्तम है।" *************************** क्यों नहीं तुम्हारे दिखती है चिंता रेखा, क्यों व्यर्थ तुम्हें मेरा समझाना लगता है? क्यों अक्ल तुम्हारी मरुथल में चरती चारा, क्यों नहीं समझती भाई तुम्हारा कहता है??.1 सूरज ढलने तक चार घड़ी मत जाया कर, तू काम अधूरा छोड़ मगर घर आया कर।
*************************** क्यों नहीं तुम्हारे दिखती है चिंता रेखा, क्यों व्यर्थ तुम्हें मेरा समझाना लगता है? क्यों अक्ल तुम्हारी मरुथल में चरती चारा, क्यों नहीं समझती भाई तुम्हारा कहता है??.1 सूरज ढलने तक चार घड़ी मत जाया कर, तू काम अधूरा छोड़ मगर घर आया कर।
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"कृष्ण जीवन में राधा और रुक्मिणी तुलनात्मक साहित्य : एक कलंक" हमारे समाज के नायकों के अतीतीय जीवन वृत्तान्तों को साहित्य अथवा लेखन जगत उनके वास्तविक व गरिमापूर्ण जीवन के मौलिक अथवा मूल अधिकारों को लेकर रूढ़िवादी मनोदशाओं में पूर्वाग्रहों का शिकार क्यों बनाता रहा है? सत्य के कटु होने को साहित्यिक स्वीकार्यता प्रदान करना जायज़ है, परन्तु उसे मिथ्यावाद के शिलखण्डों पर किसी विशिष्ट वर्चस्ववाद के अभिलाषाओं की प्रतिपूर्ति हेतु बलात्लेखित किया जाना कदापि नहीं। बात आदिकाल की हो या रीतिकाल की हो अथवा मध्य आधुनिक एवं वर्तमान की हो, समस्त कालखण्डों के
हमारे समाज के नायकों के अतीतीय जीवन वृत्तान्तों को साहित्य अथवा लेखन जगत उनके वास्तविक व गरिमापूर्ण जीवन के मौलिक अथवा मूल अधिकारों को लेकर रूढ़िवादी मनोदशाओं में पूर्वाग्रहों का शिकार क्यों बनाता रहा है? सत्य के कटु होने को साहित्यिक स्वीकार्यता प्रदान करना जायज़ है, परन्तु उसे मिथ्यावाद के शिलखण्डों पर किसी विशिष्ट वर्चस्ववाद के अभिलाषाओं की प्रतिपूर्ति हेतु बलात्लेखित किया जाना कदापि नहीं। बात आदिकाल की हो या रीतिकाल की हो अथवा मध्य आधुनिक एवं वर्तमान की हो, समस्त कालखण्डों के
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" वह राम हैं.. वह राम हैं। " >>> "वनितsर्पणा = प्राणप्रिया (पत्नी) का समर्पण करने वाले " ******************************* संघर्ष पथ में प्रेरणा के एक ही तो नाम हैं, वह राम हैं.. वह राम हैं.. वह राम हैं.. वह राम हैं।। आदर्श के प्रतिबिम्ब हैं आदर्श की जो खान हैं, वह राम हैं.. वह राम हैं.. वह राम हैं.. वह राम हैं।।1 जो एक राजा के हृदय हैं तीन माँ के प्राण हैं,
>>> "वनितsर्पणा = प्राणप्रिया (पत्नी) का समर्पण करने वाले " ******************************* संघर्ष पथ में प्रेरणा के एक ही तो नाम हैं, वह राम हैं.. वह राम हैं.. वह राम हैं.. वह राम हैं।। आदर्श के प्रतिबिम्ब हैं आदर्श की जो खान हैं, वह राम हैं.. वह राम हैं.. वह राम हैं.. वह राम हैं।।1 जो एक राजा के हृदय हैं तीन माँ के प्राण हैं,
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"अन्तर्द्वण्द एवं चिरसमाधि पथ प्रशस्तिकरण" (In the caption) ************************ मृत्यु आलिंगन मेरा करती नहीं है प्राण को मैं स्वर्ग करना चाहता हूँ। प्रभु ! एक ही पथ है हमारे हाथ में, नरदेह का उत्सर्ग करना चाहता हूँ।।. एक दीपक रोशनी का जल रहा था, एक आँधी भी तिमिर में बह रही थी। कल अचानक रागिनी ने राग छेड़ा,
************************ मृत्यु आलिंगन मेरा करती नहीं है प्राण को मैं स्वर्ग करना चाहता हूँ। प्रभु ! एक ही पथ है हमारे हाथ में, नरदेह का उत्सर्ग करना चाहता हूँ।।. एक दीपक रोशनी का जल रहा था, एक आँधी भी तिमिर में बह रही थी। कल अचानक रागिनी ने राग छेड़ा,
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