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jay
लोगों ने गुस्से को अंदर की गलत बातो को व्यक्त करने के लिए गलत शब्द ,गलत तरीके और अब गलत इशारे खोज निकाले इसका प्रयोग बिना समझे आगे वाली पीढ़ी तक अमानत बतौर पहुंचाया जाता है यह एक पुरुष जाती की सबसे बड़ी विफलता है जिस स्त्री जाति का सम्मान उसे करना चाहिए बातो बातो में ही सहज ही उसका अपमान करता है और उस बात से वह अज्ञानता दर्शाता हैं जैसे व्यक्ति व्यक्त बातो में कुछ गलत नहीं कहा ©jay गाली गली गली की
Harblas singh
Pankaj Singh
*महक उठी गली-गली* बसंत की बयार में चहक उठी कली-कली। खिल उठे हैं मन कुसुम महक उठी गली-गली।। ब्योम सुर्ख लाल हुआ टेशू गुलाल सा, वन में पलाश खिला गोरी के गाल सा, सज धज के पनघट पे छोरियां चलीं चलीं। खिल उठे हैं मन कुसुम महक उठी गली-गली।। रंग की फुहार आके धड़कनें बढ़ा गई, भंग की तरंग उठ बिजलियां जगा गई, चूम कर पवन चला कि पत्तियां खिली-खिली। खिल उठे हैं मन कुसुम महक उठी गली-गली।। कंगना की प्यारी बोल मधु पराग घोलती, मंद मंद पायल धुन मन के द्वार खोलती, स्वप्न आस मन में लिए शाम भी ढली-ढली। खिल उठे हैं मन कुसुम महक उठी गली-गली।। कंचन सा मन हुआ चांदी ए तन हुआ, मधुरव से पूर्ण आज मेरा नयन हुआ, यू अनोखी प्रीत की पांखुरी खिली-खिली। खिल उठे हैं मन कुसुम महक उठी गली-गली।।" ©Pankaj Singh महक उठी गली गली #WalkingInWoods