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Unknown
मैं राह चलते जब नहीं देखता हूँ तो बहुत सी आँखें देखने लगतीं उनसे मैं तपिश सी पाने लगता हूँ आखिर ये कौन सा रसयोग है जो अदृश्य रुप से हो जाता है कहीं भी कभी भी रात और दिन ये अनाचार है कि अतिसार तुम्ही बतला दो ना जगतार अनासक्त लोग
Abhinav Gaur
में ये मन सौंपता हु तुम्ही को प्रिये दीपमाला प्रणय की जलाये हुए मन की वीणा सजी तो ये धुन भी बजे प्रीत की कोई तान सुनाओ प्रिये न पराजित करो इस प्रणय युद्ध में मान जाओ कि तुम हार जाओ प्रिये प्राण को तुम पढो प्रेम पावन करो मुझको काम विजेता बनाओ प्रिये शब्दों में व्यक्त अनासक्त
डॉ वीणा कपूर "वेणु"...
Happy Rath Yatra हे जगन्नाथ! मेरे अवलम्बन हे विश्व सृजक! तेरा चिन्तन, हे विश्व रूप! प्रतीत प्रत्यक्चेतन हे विश्व पालक! अनासक्त अर्पण, हे अविद्धदृक्! साक्षी चेतन, हे अन्तर्यामी ! हे अपरिछिन्न! कोटि कोटि अभिनन्दन रथयात्रा का करता सृष्टि का प्रत्येक कण, विश्व का जन जन, ज्येष्ठ भ्राता, भगिनी सहित आपका कोटि कोटि चरण वंदन।। ©Veena Kapoor जगन्नाथ रथयात्रा# विश्व रूप अनासक्त अर्पण कोटि कोटि नमन #RathYatra2021
N S Yadav GoldMine
{Bolo Ji Radhey Radhey} जब बर्तन टूट जाता है, तो उसके भीतर की जगह असीमित हो जाती है, इसी प्रकार शरीर का अस्तित्व समाप्त हो जाता है, तो आत्मा सास्वत अनासक्त रहता है, कुछ भी जन्म नही लेता, और कुछ भी नहीं मरता, यही सत्य प्रमाण है।। गोबिंद राधे।। ©N S Yadav GoldMine {Bolo Ji Radhey Radhey} जब बर्तन टूट जाता है, तो उसके भीतर की जगह असीमित हो जाती है, इसी प्रकार शरीर का अस्तित्व समाप्त हो जाता है, तो आ
अब्र The Imperfect
माई बाप सब तुम से ही पाया आदि अंत सुख दुख हानि-लाभ जन्म मरण लोभ मोह काम क्रोध गुण अवगुण राग द्वेष आसक्ति अनासक्ति प्रेम अप्रेम मान अपमान यश अपयश अब जीवन की सांझ सब तुम्हें ही समर्पित कर रहा हूं क्योंकि लोक से परलोक कुछ भी ले जाना संभव नहीं माई बाप ©KumarAmitAbr माई बाप सब तुम से ही पाया आदि अंत सुख दुख हानि-लाभ जन्म मरण लोभ मोह काम क्रोध
Ruchi dixit
-2 मै पूरी अभिमानी नही हूँ, मै पूरी अभिमानरहित नही हूँ , मै पूरी आसक्त नही हूँ , मै पूरी अनासक्त नही हूँ | मै पूरी देह नही हूँ , मै पूरी देहाहीन नही हूँ | मै पूरी सुन्दर नही हूँ , मै पूरी असुन्दर भी नही हूँ | इस नही के स्थान हृदय की पीड़ा, और नेत्रो हे बहते निरन्तर असमय , अश्रु ने घेर रखा है | ©Ruchi dixit -2 #मै पूरी अभिमानी नही हूँ, मै पूरी अभिमानरहित नही हूँ , मै पूरी आसक्त नही हूँ , मै पूरी अनासक्त नही हूँ | मै पूरी देह नही हूँ , मै पूरी दे
Sarita Shreyasi
शब्दों से तुमको तौल लूँ, शब्दों से अपने मोल लूँ, कर दूँ, शब्दों से निःशब्द, मेरी पूंजी, चार शब्द। #मेरी पूंजी चार शब्द, शब्द ही अभिव्यक्ति मेरी, शब्द से ही आसक्ति, शब्द ही से हूँ सशक्त, मेरी पूंजी चार शब्द। शब्द औषधि शब्द व्याधि, शब्द शक
Tushar Singh (nashvar)
लोग अक्सर सवाल कर बैठते है मुझसे की कैसा सा हूँ मैं.. तो उनको बताना चाहता हूँ कि कुछ ऐसा सा हूँ मैं की... आसक्ति में चूर हो कर भी.. अनासक्त सा हूँ मैं पूर्णता व्यक्त हो कर भी.. अव्यक्त सा हूँ मैं लज्जा की चादर ओढ़ कर भी.. निर्लज्ज सा हूँ मैं गृहस्त हो कर भी.. वैराग्य सा हूँ मैं अकेला हो कर भी.. किसी का महभाग सा हूँ मैं दोषी हो कर भी.. निर्दोष सा हूँ मैं दंडनायक हो कर भी.. क्षमा दायक सा हूँ मैं लोभी हो कर भी.. दानवीर सा हूँ मैं अशक्त हो कर भी.. सशक्त सा हूँ मैं सैनिक हो कर भी.. बाघी सा हूँ मैं और क्या बतलाऊँ आपको की कैसा सा हूँ मैं.. झूठ हो कर भी.. सम्पूर्ण सत्य सा हूँ मैं... लोग अक्सर सवाल कर बैठते है मुझसे की कैसा सा हूँ मैं.. तो उनको बताना चाहता हूँ कि कुछ ऐसा सा हूँ मैं की... आसक्ति में चूर हो कर भी.. अन
Shree
"क्या पाप है और क्या पुण्य है, ..हर पुंज का बिंदु एक शून्य है!" /✍️.... क्या पाप है... और क्या पुण्य है, ..हर पुंज का बिंदु एक शून्य है! निराकार है साकार भी अद्वितीय योगीराज भी मोहपाश भी मुक्ति द्वार भी शिव शिवा
मुखौटा A HIDDEN FEELINGS * अंकूर *
===मैं हूँ समय === ( रचना: अंकुर मिश्रा ) मैं हूँ समय अद्भुत मेरी क्षमता,सदा अद्वितीय सर्वदा जागरूक,परिवर्तनशील कर्तव्य में लय मूक साक्षी अतीत का व भविष्य करता हूँ तय वर्तमान मेरा कार्यक्षेत्र ,नहीं किसी से वार्ता विनिमय । अखण्ड राज्य के अधिकारी, प्रभाव असीमित राजा बनता है रंक व बुद्धि करता हूँ भ्रमित कडक मेरा तेवर, रहता हूँ सदा निरपेक्ष व फर्ज में समर्पित अदम्य मेरा साहस, सदा अपराजेय व हर चुनौती स्वीकृत । शक्ति मेरा अपरिमित, लेकिन कर्तव्य मेरा बरकरार मुझे समझना जटिल , हमेशा नया अवतार जो मुझसे करे तिरस्कार,उनको करना होगा इन्तजार जो अनासक्त व निर्भीक, उनसे करता हूँ प्यार । नाम है मेरा विविध प्रकार, परिस्थिति के अनुसार मरीज के लिये आरोग्य, नारी के लिये श्रृंगार छात्रों के लिये प्रेरणा , सैनिक के लिए समर पुजारी के लिये दक्षिणा व संगीत के लिये आसर पति पत्नी के लिये विश्वास ,परिवार के लिये प्यार भिक्षुक के लिये बुरे वक्त , बेरोजगार के लिये इन्तजार राजा के लिये अवसाद, बुढों के लिये अवसर कलाकार के लिये निदर्शन व विद्वान के लिये ज्ञान का भंडार मैं हूँ सबके साथ, शाश्वत और निराकार सदियों से हूँ विद्यमान, हर युग में मेरा असर रहस्यमय मेरी स्थिति, रहता हूँ सर्वदा निर्लिप्त निर्विकार जो किया है मेरा अध्ययन, समाज में सम्मान बरकरार। क्षणस्थायी है हर घटना , जिन्दगी क्षणभंगुर हर पल बीते आनन्द में, स्मृति रहे मधुर ये रास्ते है प्यार के, यात्रा चलते रहे बेफिक्र, यादगार क्योंकि मैं हूँ समय, काल चक्र किसी का नहीं करता इन्तजार । । ©DEAR COMRADE (ANKUR~MISHRA) ===मैं हूँ समय === ( रचना: अंकुर मिश्रा ) मैं हूँ समय अद्भुत मेरी क्षमता,सदा अद्वितीय सर्वदा जागरूक,परिवर्तनशील कर्तव्य में लय म