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Shubhro K
मेरा जिस्म नहीं हो, ज़हन नहीं हो, दिल नहीं हो, अना नहीं हो, क्या हो तुम, ऐ रूह, बताओ, ये बताना छोड़ के कि क्या नहीं हो! ©Shubhro K #Soul #Aatma
RAVAN RAVAN
सितंबर का महीना था। काली अँधेरी रात थी। धीरे धीरे से हवा की ठंडी लहरें आ रही थी, आकाश में बिजली चमक रही थी। महेन्द्रचाचा अपने घर से दूर अपने खेतमें खाट में सोए हुए थे। उनका खेत गाँव के तालाब के पास था। बारिश के कारन पूरा तालाब भर गया था और खेत में घास भी ज्यादा हो गई थी। उसके करन अंधेरेमें यह सब ज़्यादा डरावना लग रहा था। उस तालाब के किनारे आम के 6 -7 बड़े बड़े पेड़ थी। आम के पेड़ की डालियो के आवाज भी काफी डरावना लगता था। अचानक खेतमें बंधी हुई भैंसो ने चिल्लाना शरु कर दिया। महेन्द्रचाचा को पता ही नहीं चल रहा थी की आखिर यह भैंसे ऐसा क्यों कर रही है। उन्हें लगा की शायद ठंडी के कारन यह भैंसे ऐसा कर रही होगी। इसी लिए महेन्द्रचाचा के खेत में चिमनी जलाई। उस चिमनी के उजाले में महेन्द्रचाचा की नजर उनके खाट पे पड़ी। उन्होंने देखा की एक स्री उनकी खाट पे बैठी है। यह देख कर उनका शरीर दर के मारे कांपने लगा। उसी वक्त आकाश में बिजली का तेज झटका हुआ। वैसे तो महेन्द्रचाचा बहादुर थे, लेकिन आज उन्हेभी थोड़ा डर लग रहा था। उसी वक्त काका ने आग में शुकी घास डाली और आग को ज्यादा बढ़ाया इसकी वजह से वो औरत ठीक से दिखाई दे रही थी। महेन्द्रचाचा ने तापने के साथ बैठे बैठे ही बूम लगाईं “कोन है? “पर सामने से कोई प्रतिक्रिया नई मिली। इसीलिए काका अचंबित रह गए। उनकी समज में कुछ नई आया। काका खड़े हो गए। इसीलिए महेन्द्र काका ने सोचा की अब डरने से कुछ नई होगा , मुझे हिम्मत से काम लेना पड़ेगा , क्यूकी जो डर गया वो समजो मर गया। चाचा ने एक बड़ी लकड़ी हाथ में लेली और बोले कौन हो तुम? तुम्हे क्या लगता है, की मैं तुमसे डर गया हु? लेकिन सच तो यही था की चाचा अंदर से पूरी तरह से डर के मरे कांपने लगे थे। चाचा का यह गुस्से वाला रूप देखकर वो स्री खड़ी हो गई और जोर से बोली, “क्या तुम मुझसे नहीं डरते…?” चाचा ने हिम्मत की और बोले, “यहां से चली जाओ वरना यह लाठी से मार मार के तेरा सिर फोड़ दूंगा”। इतना ही बोलता महेन्द्रचाचा ने लाठी उठाई और उसी वक्त उस औरत ने आवाज उठाई। “अब तू मुझे मेरे ही घर से बाहर निकालेगा? यहां पर तो मेरा बचपन गुजरा है। यह मेरा ही घर है मैं यहां सालों से रह रही हूं। अगर मैं इस औरत को जानता हूं तो आखिर यह इतनी भयानक और विकराल रूप में क्यों है? अचानक, अरे यह तो ज्योति है, मेरी बड़ी बहन। बचपन में मैं और ज्योति साथ में ही खेत में चार काटने का काम करते थे। अब महेन्द्रचाचा को पूरी बात समझ में आ गई। यह ज्योति के बचपन की बात है। जब ज्योति 14 साल की थी तब इसी खेत में गांव के कुछ बच्चों के साथ खेल रही थी। दूसरे बच्चों की तरह ज्योति भी पेड़ पर चढ़कर एक डाल से दूसरे में डाल पर छलांग लगा रही थी। अचानक ज्योति जिस डाल पर बैठी थी वह डाल टूट गई और ज्योति मुंह के बल नीचे गिर गई। यह देखकर सारे बच्चे डर के मारे चिल्लाने लगे। बच्चोंके चिल्लाने की आवाज सुनकर बड़े लोग वहाँ पहोंचे ओर ज्योतिको उठाके हस्पताल ले गए लेकिन तबतक काफी देर हो चुकी थी। ज्योति की मौत हो गई थी। महेन्द्रचाचा को ये सारी बाते याद आ गई, और वह सीधा ज्योति के पास जाके रोने लगे। जब यह बात गाँव वालों को पता चली तो सारे गाँव वाले चोंक उठे थे। वास्तव में वह ज्योति ही थी। गाँव के एक बड़े बुजुर्ग ने कहा कि, “जब ज्योति मौत हुई थी तब वो एक बच्ची थी। इसी लिए उसे बालक समझ के उसे दफ़नाया गया था। लेकिन वास्तव में उसका अंतिम संस्कर करने की जरूरत थी।” इसी लिए ज्योति की आत्मा आज तक भटक रही है। महेन्द्रचाचा ने तुरंत ही ज्योति को जहा दफ़नाया गया था वहां से उसे निकाला। किस की भी हिमत नही हो रही थी कि कोई उसके पास भी जा सके। उसी वक्त ज्योति की आत्मा ने गाँव वालों के सामने आके कहा कि, “हाँ, आपकी बात सही है, मैं मर चुकी हूं, आपलोगो को मुझसे डर ने की जरूरत नही है, मैं अभी भी इसी गाँव की बेटी हु, लेकिन मैं आज दिन तक भटक रही हु, मुजे मुक्ति दीजिये। बाद में महेन्द्रचाचा ने ज्योति के शब का अग्नि संस्कार किया और उसकी आत्मा को शांति दिलाई। ©RAVAN RAVAN ek aatma
ek aatma #Mythology
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wo koun sa panchi tha jo mere upar se gujar rha tha kya... ye whi aabsaar hai jo mere palko se jhar rha tha aur chiraag leke to chal hi rha tha mai phir wo koun tha jo bina chiraag mere har dard har rha tha परम्+आत्मा ©Viaan.ki.poetry param+aatma
param+aatma #Motivational
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