Find the Latest Status about लोकाचार from top creators only on Nojoto App. Also find trending photos & videos about, लोकाचार.
Bharat Bhushan pathak
निश्चल धार जीवन उपहार। लोकाचार सुन्दर व्यवहार। प्रकृति सन्देश क्यों क्लेश। आप दूर हटें देख छद्मवेश। नहीं जरूरी बस जी धन। स्वस्थ रहे सदा भी तन। ©Bharat Bhushan pathak #LongRoad निश्चल धार जीवन उपहार। लोकाचार सुन्दर व्यवहार। प्रकृति सन्देश क्यों क्लेश। आप दूर हटें देख छद्मवेश। नहीं जरूरी बस जी धन। स्वस्थ र
Divyanshu Pathak
पहाड़ों में गूंजते झरनों के स्वर से शब्दों को अपनी कविता में पिरोती है ! शांत शीतल मलय सी है पर खुद को आवारा हवाओं सा कहती है !! दिल में मोहब्बत है इंतजार है इश्क़ भी फ़िर भी दर्द में डूबी दिखती है ! ये जो चश्मिश है ना चश्मेबद्दूर बनकर सबके दिल में रहती है !! Dedicating a #testimonial to Sudha Joshi जी सुथरी सी छवि में रहने वाली एक बेहतरीन अभिव्यक्ति की क्षमता लिए yq मंच पर ही मेरी मुलाकात हुई ।शा
Kajal The Poetry Writer
समाज संबंधों का जाल हैं।। मूल्यों, विश्वास, लोकाचार का आवरण ये विशाल हैं। कोई कहे गोलाकार हैं, इसकी चाल,, कोई कहे सर्पाकार हैं।। जातिवाद को श्रीनिवास कहे समाज का हिस्सा,, अंबेडकर कहे विकार हैं।। बी आर चौहान बताए राजस्थान के गांव की महिमा,, वहीं शर्मिला रेंगे बताए क्या महिलाओं का अधिकार हैं।। मूल यही जाना हैं समाज का बनकर इसका हिस्सा,, बात नहीं कोई तुच्छ सी ना कहो इसे कोई पुराना किस्सा।। ये तो नवीन ज्ञान का शास्त्र हैं। जिसे सीखने का हर नागरिक पात्र हैं।। ये सरल इतना जैसे देखू बहता जल,, इतना जटिल भी प्रकृति से, जो नियम आज बने, शायद ही उपयोगी होंगे कल।। शोध का एक अनूठा भंडार हैं।। सब जाना परखा पहचाना सा इस समाजशास्त्र का व्यवहार हैं।। ©KAJAL The poetry writer समाज संबंधों का जाल हैं। मूल्यों, विश्वास, लोकाचार का आवरण ये विशाल हैं। कोई कहे गोलाकार हैं, इसकी चाल,, कोई कहे सर्पाकार हैं। जातिवाद को श्
Abhishek Asthana
आईना पूछता है,दर्द तुम्हारे दिल के ऐसी भी क्या बात हुई,रोते हो हमसे मिल के |~ कुछ बतलाओ खुद से भी, हृदय को अपने प्रवीण करो लोकाचार की बातों से ना, मन को अपने क्षीण करो |~ आईना पूछता है,क्यों बैठे हो निढाल से भूल जाओ अतीत को,जियो ज़िन्दगी उबाल से |~ प्रकृति से सीख लो तुम भी,अम्बर सा खुद को वृहद करो मत बैठो थक हार के तुम भी,वायु सा खुद में वेग भरो |~ आईना पूछता है,क्या छुपा रखा है सांसों में नाहक ही क्यों अश्रु लिए हो, इन प्यारी सी आँखों में |~ दौड़ रहा है समय का पहिया,तुम व्यर्थ समय ना नष्ट करो उठकर दौड़ चलो मंजिल पर,खुद को ना पथ-भ्रष्ट करो |~ आईना पूछता है,दर्द तुम्हारे दिल के ऐसी भी क्या बात हुई,रोते हो हमसे मिल के |~ आईना पूछता है... आईना पूछता है,दर्द तुम्हारे दिल के ऐसी भी क्या बात हुई,रोते हो हमसे मिल के |~ कुछ बतलाओ खुद से भी, हृदय को अपने प्रवीण कर
ABHISHEK SWASTIK
आईना पूछता है,दर्द तुम्हारे दिल के ऐसी भी क्या बात हुई,रोते हो हमसे मिल के |~ कुछ बतलाओ खुद से भी, हृदय को अपने प्रवीण करो लोकाचार की बातों से ना, मन को अपने क्षीण करो |~ आईना पूछता है,क्यों बैठे हो निढाल से भूल जाओ अतीत को,जियो ज़िन्दगी उबाल से |~ प्रकृति से सीख लो तुम भी,अम्बर सा खुद को वृहद करो मत बैठो थक हार के तुम भी,वायु सा खुद में वेग भरो |~ आईना पूछता है,क्या छुपा रखा है सांसों में नाहक ही क्यों अश्रु लिए हो, इन प्यारी सी आँखों में |~ दौड़ रहा है समय का पहिया,तुम व्यर्थ समय ना नष्ट करो उठकर दौड़ चलो मंजिल पर,खुद को ना पथ-भ्रष्ट करो |~ आईना पूछता है,दर्द तुम्हारे दिल के ऐसी भी क्या बात हुई,रोते हो हमसे मिल के |~ आईना पूछता है... आईना पूछता है,दर्द तुम्हारे दिल के ऐसी भी क्या बात हुई,रोते हो हमसे मिल के |~ कुछ बतलाओ खुद से भी, हृदय को अपने प्रवीण कर
Yashpal singh gusain badal'
तेरा और मेरा सत्य हर किसी का सच उसकी अनुभव एवं इसके द्वारा अर्जित ज्ञान और उसकी विवेक क्षमता पर होती है । जैसे यदि मैं यह कहूं कि पृथ्वी घूमती है तो एक साधारण व्यक्ति उसको सिरे से खारिज कर देगा और एक पढ़ा-लिखा व्यक्ति कहेगा कि हां मैंने पढ़ा है किताबों में । लेकिन एक वैज्ञानिक उसे सिद्ध करके दिखाएगा कि पृथ्वी घूमती है बल्कि वह यह भी बताएगा कि सूर्य भी आकाश गंगा के केन्द्र की परिक्रमा करता है। इसको परिक्रमा करनें में २२ से २५ करोड़ वर्ष लगते हैं, इसे एक निहारिका वर्ष भी कहते हैं। इसके परिक्रमा करने की गति २५१ किलोमीटर प्रति सेकेंड है। इस प्रकार तीन तरह के इंसानों के तीन उत्तर सकते हो सकते हैं । इसी प्रकार हमारे कई रूढ़िवादी सोच रीति रिवाज धार्मिक तौर तरीके हमारे आस्था और विश्वास से अर्जित ज्ञान को हमारे विचारों में समाहित करके हमारे सत्य के रूप में प्रतिष्ठित कर देते हैं । हालांकि वह पूर्ण सत्य नहीं होते मगर हम उन्हें सत्य मानकर ही चलते हैं इसी सत्य को हम जब वैज्ञानिकों प्रबुद्ध जनों विद्वानों एवं गुरुओं के द्वारा परिष्कृत की हुई भाषा में सुनते हैं तब हम समझ पाते हैं की वास्तविक सत्य क्या है । क्योंकि विद्वान लोग किसी भी विचार को उसके मूल रूप में स्वीकार नहीं करते जब तक वह इसे अपने विवेक से परिष्कृत न कर लें वे अपने हर विचार का अपने विवेक से मंथन करते हैं तदुपरांत वह मूल सत्य तक पंहुचते हैं । आज की सबसे बड़ी समस्या यही अर्ध सत्य है जो हमारे अंदर परिस्थितियों लोकाचारों, आस्था और विश्वास ,रीति रिवाज के द्वारा डाल दी जाती है और हम इन्हीं को अंतिम सत्य मानकर अपने विचार बना लेते हैं क्योंकि हर किसी का विचार उसके रीति रिवाज, आस्था -विश्वास, परिस्थितियों ,लोकाचारों, का परिणाम है . इसलिए वैचारिक भिन्नता के कारण आपस में द्वेष और कलह की स्थिति बन जाती है । और अन्ततः यही संघर्ष का कारण होता है । कुछ लोगों का इन आस्था विश्वास और रीति -रिवाज ,परंपराओं पर इतना अधिक अटूट विश्वास होता है कि वह हर रोज इसे अंतिम सत्य के रूप में प्रचारित करते हैं और इसमें किसी भी तरह का अविश्वास नहीं देखना चाहते हैं । और इसके लिए वे सबकुछ खत्म करने तक आ जाते हैं वह कभी नहीं चाहते कि इस विचार में कोई संशोधन हो या इस को परिष्कृत किया जाए। इसी से कट्टरवाद का जन्म होता है । इसी तरह तेरा सच मेरा सच का यह विवाद हमेशा अनवरत चलता रहता है । आज इंसान और इंसानों के बीच जो संघर्ष है और देश और देशों के बीच जो संघर्ष है । इसका मूल कारण विचार भिन्नता ही है । दुनिया का हर संघर्ष इसी विचार भिन्नता सत्यता - असत्यता, तेरा सच मेरा सच के कारण फल फूल रहा है। अब समस्या यह है कि अंतिम सत्य तक कैसे पहुंचा जाए और कैसे सभी को इससे जोड़ा जाए । ताकि सत्य को सम्यक विचार विचार बनाया जा सके ताकि सब का सत्य एक ही सत्य हो ताकि विश्व में जो भी वैचारिक संघर्ष है उसको खत्म किया जा सके । यदि विश्व के सारे वैचारिक संघर्ष वैचारिक भिन्नता खत्म हो जाएंगी तो विश्व में अंततः शांति स्थापित हो सकेगी । मेरे विचार मेरी कलम से - यशपाल सिंह बादल ©Yashpal singh gusain badal' तेरा और मेरा सत्य हर किसी का सच उसकी अनुभव एवं इसके द्वारा अर्जित ज्ञान और उसकी विवेक क्षमता पर होती है । जैसे यदि मैं यह कहूं कि पृथ्वी घूम