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Pushpendra Pankaj
सच्ची प्रेम साधना है ----------------------- सुमधुर और सुरमय आवाज़ में , जब गाओ एक लयबद्ध गीत । और साथ मे संगत भी दे प्रिय मध्यम सुरलहरी संगीत । यदि कहोगे दिल की बातें सीधे -सादे शब्दों मे, तब यह सच है ,बिन गुलाब ही मिल जाएगी प्रिय की प्रीत।। बीच चौराहे, ओछी हरकत से केवल उपहास मिलेगा, मानो या ना मानो अपनी गलती का अहसास मिलेगा । संस्कार संस्कृति का आखर , पढकर अपनाओ पुरातन रीत, यही सच्ची प्रेम साधना, पावन प्रिय प्रेम की जीत ।। पुष्पेन्द्र पंकज ©Pushpendra Pankaj सच्ची प्रेम साधना ----------------------
लेखक ओझा
ईश्वर की आराधना धन वैभव ऐश्वर्य के लिए नही बल्कि आत्म परिष्करण और विश्व कल्याण के लिए होनी चाहिए।। ©लेखक ओझा ईश्वर की साधना
Sangeeta
जिस तरह सोच समझकर बोलना एक कला हैं.... तो मौन रहना भी किसी साधना से कम नहीं ©Sangeeta साधना कम नहीं
Pushpendra Pankaj
शांत रहो और साधले मन को , योग करके अटल कर प्रण को, अहं मे तुच्छ ना कह तृण को, युद्ध कर और जीत ले रण को, पुष्पेन्द्र "पंकज" ©Pushpendra Pankaj मौन भी साधना है
Dr. Bhagwan Sahay Meena
विधा - लघुकथा शीर्षक - श्रम साधना चिमनी की टिमटिमाती रोशनी में रामू चटनी के साथ बाजरे की रोटी का कोर मुंह में चबाते हुए पत्नी से शिकायत भरे लहजे में कहा 'यह लगातार तीसरा महिना है, जिसमें हमारी बनाई ईंटों में ठेकेदार ने कमी निकालकर पैसे काट लिए' गौरी मेरे समझ में नहीं आता, हमारे बाद आकर भट्टे पर लगी भंवरी की ईंटें हमारी बनाई ईंटों से अच्छी कैसे हो सकती है। गौरी चूल्हे पर रोटी सेंकतीं हुई अपने पति की बातें बड़े इत्मीनान से सुन रही थी। वो फिर खीझ और झुंझलाहट से बोला, तुझे रोज कहता हूं घारा (गीली मिट्टी) अच्छी तरह मिलाया कर लेकिन तू मेरी सुनतीं कहां है, अब देख सारा पैसा कट गया, बैंक की किस्त फिर बाकी रहेगी, बैंक का ब्याज दिनों दिन बढ़ता ही जा रहा है। रामू फिर बोला 'ठेकेदार भंवरी की ईंटों का पूरा भुगतान किया है, वो कह रहा था 'भंवरी गारा अच्छी तरह मिलाती है इसलिए उसकी ईंटें बहुत अच्छी बनती है। और एक तू है जो ऐसा गारा मिलाती है।' बहुत देर से पति का उलाहना सुन रही गौरी आखिर में कांपती सी आवाज़ में बोल उठी...."ईंटें तो मेरी भी अच्छी हो जायेगी, मेरे द्वारा बनाया जा रहा गारा भी मुलायम रहेगा मगर... गौरी आगे नहीं बोल पाई, उसने कांपते होंठ दांतों से दबा लिए। रामू कुछ गुस्से में बोला... मगर क्या, बोल मगर क्या.... गौरी - "मगर पिछले तीन महीने से ठेकेदार की कोठरी से जो बुलावा आ रहा, जिस पर भंवरी जाती है, मुझे भी जाना पड़ेगा।" इतना कहकर गौरी फूट-फूटकर रोने लग गई। यह सुनते मानों रामू पर वज्रपात हो गया हो, वो भावशून्य हो कर गौरी के दोनों हाथ पकड़ लिया और बोला - "नहीं गौरी, नहीं। मुझे माफ़ कर दें। हम अन्य स्थान पर चलकर श्रम साधना कर लेंगे लेकिन अब यहां काम नहीं करेंगे। मैं सुबह ही इस दलदल से तुझे बाहर ले चलूंगा। मैं तेरे काम में कमी निकालता रहा, मुझे माफ़ कर दें गौरी! मुझे माफ़ कर दें। डॉ. भगवान सहाय मीना बाड़ा पदमपुरा जयपुर राजस्थान। ©Dr. Bhagwan Sahay Rajasthani #onenight लघुकथा - श्रम साधना