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Stories related to शरीराचे अवयव इंग्रजीत

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Peeyush priydarshi

वृक्ष एक महत्वपूर्ण अवयव #UnlockSecrets

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Kavi Himanshu Pandey

ध्यान रूपी अवयव #beingoriginal Hindi #zindgi #Dard #Poetry #nojotohindi

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vishnu thore

घडीभराचे उत्सव .... हव्यास ही वासनाच असते. तिला रूप नसलं तरी ती मनाला कुरूप करते. मनाला शरीराचे रोग झाले की माणसं आसुरी होतात. कुठलीच भ #nojotophoto

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 घडीभराचे उत्सव ....

    हव्यास ही वासनाच असते. तिला रूप नसलं तरी ती मनाला कुरूप करते. मनाला शरीराचे रोग झाले की माणसं आसुरी होतात. कुठलीच भ

TheDavidPathak

‘’प्यार ही एकमात्र ऐसी आग है, जिसका कभी बीमा नहीं करवाया जा सकता‘’ #Night "अवयव" की कलम से Hariom@Kumawat...©️...🖋 Yash Verma #sudha007 S #विचार

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‘’प्यार ही एकमात्र ऐसी आग है,
जिसका कभी बीमा नहीं 
करवाया जा सकता‘’

                             देवाकथन... ‘’प्यार ही एकमात्र ऐसी आग है,
जिसका कभी बीमा नहीं करवाया जा सकता‘’
#Night   "अवयव" की कलम से  Hariom@Kumawat...©️...🖋 Yash Verma #sudha007 S

vishnu thore

एकाच वेळी शरीर आणि मन दोघेही हट्ट करतं. अशावेळी हट्ट पुरवायचा कुणाचा? तसे आपण शरीराचे चोचले पुरवण्यात माहीर असलो तरी हल्ली मी मनाचेच ऐकतोय

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एकाच वेळी शरीर आणि मन दोघेही हट्ट करतं.
अशावेळी हट्ट पुरवायचा कुणाचा? तसे आपण  शरीराचे चोचले पुरवण्यात माहीर असलो तरी हल्ली मी मनाचेच ऐकतोय खूप.  
खाऊन खाऊन चोथे झाले
हे शरीर कचऱ्याचे पोते झाले..! असंच वाटतंय सारखं.
मनाची भूक संयमी असते. मनाचं पोट भरलं काय अन रीतं राहिलं काय?  ते वेदना देत नाही. आक्रोश करत नाही .रितेपणातही पूर्णत्वाचा साक्षात्कार अनुभवायचा असेल तर मनाची कवाड सताड उघडी ठेवा.
मन खाटं त्याला हजार पोटं ! हेच खरं..
-विष्णू थोरे,चांदवड. एकाच वेळी शरीर आणि मन दोघेही हट्ट करतं.
अशावेळी हट्ट पुरवायचा कुणाचा? तसे आपण  शरीराचे चोचले पुरवण्यात माहीर असलो तरी हल्ली मी मनाचेच ऐकतोय

vishnu thore

एकाच वेळी शरीर आणि मन दोघेही हट्ट करतं. अशावेळी हट्ट पुरवायचा कुणाचा? तसे आपण शरीराचे चोचले पुरवण्यात माहीर असलो तरी हल्ली मी मनाचेच ऐकतोय

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एकाच वेळी शरीर आणि मन दोघेही हट्ट करतं.
अशावेळी हट्ट पुरवायचा कुणाचा? तसे आपण  शरीराचे चोचले पुरवण्यात माहीर असलो तरी हल्ली मी मनाचेच ऐकतोय खूप.  
खाऊन खाऊन चोथे झाले
हे शरीर कचऱ्याचे पोते झाले..! असंच वाटतंय सारखं.
मनाची भूक संयमी असते. मनाचं पोट भरलं काय अन रीतं राहिलं काय?  ते वेदना देत नाही. आक्रोश करत नाही .रितेपणातही पूर्णत्वाचा साक्षात्कार अनुभवायचा असेल तर मनाची कवाड सताड उघडी ठेवा.
मन खाटं त्याला हजार पोटं ! हेच खरं..
-विष्णू थोरे,चांदवड. एकाच वेळी शरीर आणि मन दोघेही हट्ट करतं.
अशावेळी हट्ट पुरवायचा कुणाचा? तसे आपण  शरीराचे चोचले पुरवण्यात माहीर असलो तरी हल्ली मी मनाचेच ऐकतोय

Satya Prakash Upadhyay

हम अपनों से दूर क्यों नहीं रह पाते? कोई भी जीव अपने जीवन के विभिन्न पहलुओं के हितों के रक्षार्थ एक आवरण या यों कहें एक सुरक्षा कवच तैयार कर #विचार

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हम अपनों से दूर क्यों नहीं रह पाते?

कोई भी जीव अपने जीवन के विभिन्न पहलुओं के हितों के रक्षार्थ एक आवरण या यों कहें एक सुरक्षा कवच तैयार करता जाता है इस कवच के सारे अवयव तब तक उसके अपने होते हैं जब तक उनसे किसी प्रकार का भय न हो,जब उसे किसी भी अंग से डर का अनुभव होता है ,उसे वो तुरत "अपने" से पराये बना देता है,चाहे सांसारिक बंधनों के अनुसार वो उसका सबसे क़रीबी हीं क्यों ना हो।

अब जब अपने के बारे में जानकारी हो चुकी तो यह भी स्पष्ट हो जाता है कि हम अपनों से दूर क्यों नहीं रह पाते। हम अपनों से दूर क्यों नहीं रह पाते?

कोई भी जीव अपने जीवन के विभिन्न पहलुओं के हितों के रक्षार्थ एक आवरण या यों कहें एक सुरक्षा कवच तैयार कर

CHANDRAKANT

श्रमायदान श्रमूता श्रमात्कमे lश्रज्ञे श्रमेज्ञ व्हावे श्रमुनी मिळावे l श्रमायदान हे ll१ll श्रमाची साडेसाती टळो l तया श्रमकर्म प्रीती म

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Vikas Sharma Shivaaya'

शुक्र गायत्री मंत्र : -ॐ भृगुजाय विद्महे दिव्य देहाय धीमहि तन्नो शुक्र: प्रचोदयात् || -ॐ भृगुपुत्राय विद्महे श्वेतवाहनाय धीमहि तन्नो कवि: #समाज

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शुक्र गायत्री मंत्र :

-ॐ भृगुजाय विद्महे दिव्य देहाय धीमहि तन्नो शुक्र: प्रचोदयात् ||

-ॐ भृगुपुत्राय विद्महे श्वेतवाहनाय धीमहि तन्नो कवि: प्रचोदयात् ||

-ॐ भृगुवंशजाताय विद्महे श्वेतवाहनाय धीमहि तन्नो शुक्रः प्रचोदयात ||

विष्णु सहस्रनाम-एक हजार नाम -(प्रतिदिन 11  नाम) आज 12से 22  नाम 

12 मुक्तानां परमा गतिः: सभी आत्माओं के लिए पहुँचने वाला अंतिम लक्ष्य
13 अव्ययः अविनाशी
14 पुरुषः पुरुषोत्तम
15 साक्षी बिना किसी व्यवधान के अपने स्वरुपभूत ज्ञान से सब कुछ देखने वाला
16 क्षेत्रज्ञः क्षेत्र अर्थात शरीर; शरीर को जानने वाला
17 अक्षरः कभी क्षीण न होने वाला
18 योगः जिसे योग द्वारा पाया जा सके
19 योगविदां नेता योग को जानने वाले योगवेत्ताओं का नेता
20 प्रधानपुरुषेश्वरः प्रधान अर्थात प्रकृति; पुरुष अर्थात जीव; इन दोनों का स्वामी
21 नारसिंहवपुः नर और सिंह दोनों के अवयव जिसमे दिखाई दें ऐसे शरीर वाला
22 श्रीमान् जिसके वक्ष स्थल में सदा श्री बसती हैं

🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय🌹

©Vikas Sharma Shivaaya' शुक्र गायत्री मंत्र :

-ॐ भृगुजाय विद्महे दिव्य देहाय धीमहि तन्नो शुक्र: प्रचोदयात् ||

-ॐ भृगुपुत्राय विद्महे श्वेतवाहनाय धीमहि तन्नो कवि:

Satya Prakash Upadhyay

श्रद्धा ,विश्वास और समर्पण दर्शाता है कि उसका किससे और कितना मजबूत बन्धन है। माँ का संतान से ,भक्त का भगवान से या प्रेमियों का आपस मे इन सार #विचार

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बंधन 

श्रद्धा ,विश्वास और समर्पण दर्शाता है कि उसका किससे और कितना मजबूत बन्धन है। माँ का संतान से ,भक्त का भगवान से या प्रेमियों का आपस मे इन सारे बंधनो के मूल में बस प्रेम ही होता है।
प्रकृति में भी हर एक अवयव दूसरे के बिना सम्पूर्ण नही और नाही उनका अस्तित्व ही रह पाएगा। इसमे स्वार्थ नही अपितु कुछ देने की भावना ही है,जैसे सूर्य की ऊर्जा धरती पर जीवन का आधार है।
प्रेम और प्रकृति का बन्धन तो स्वतः हो जाता है, परन्तु कुछ बन्धन मनुष्य के द्वारा समाज को व्यवस्थित ढंग से चलाने के लिए "सामाजिक बन्धन" लगाए जाते हैं। ये समय के साथ परिवर्तित होता जाता है वहीं प्राकृतिक बन्धन अपने आप मे सम्पूर्ण है उसमें थोड़ा भी परिवर्तन विनाशकारी ही होता है।
तात्पर्य यह है कि बन्धन आवश्यक है परंतु जिन बंधनो का निर्माण हमने किया है बस उसी में हम परिवर्तन करने के उतने हीं अंश में अधिकारी हैं जिसमें कि दूसरे पक्ष की भी रजामंदी हो ताकि उसकी भावनाएं आहत न हों।






satyprabha💕 श्रद्धा ,विश्वास और समर्पण दर्शाता है कि उसका किससे और कितना मजबूत बन्धन है। माँ का संतान से ,भक्त का भगवान से या प्रेमियों का आपस मे इन सार
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