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theABHAYSINGH_BIPIN
मय कसी में डूबकर मैं कहीं तो पहुँचा, तुझ तक ना सही, कहीं और तो पहुँचा। इश्क़ में डूबने पर होश किसको रहता, होश में हूँ जो, अपने घर तक तो पहुँचा। कहाँ आती अब मुझे वो पहले की नींद, यादों में खोकर, मैं तुझ तक तो पहुँचा। सवरने के दिन थे और मैं इश्क़ में डूबा, साहिल की तलाश में, बीच नदी तो पहुँचा। मुकम्मल इश्क़ की गुज़ारिश थी मुझे, इश्क़ में, उसके घर तक तो पहुँचा। तलाश थी मुझे उसके दिल के रास्ते की, मय कसी में ख़ुद की नीलामी में तो पहुँचा। ©theABHAYSINGH_BIPIN #सफ़र मय कसी में डूबकर मैं कहीं तो पहुँचा, तुझ तक ना सही, कहीं और तो पहुँचा। इश्क़ में डूबने पर होश किसको रहता, होश में हूँ जो, अपने घर तक त
#सफ़र मय कसी में डूबकर मैं कहीं तो पहुँचा, तुझ तक ना सही, कहीं और तो पहुँचा। इश्क़ में डूबने पर होश किसको रहता, होश में हूँ जो, अपने घर तक त
read moreGhumnam Gautam
White कहाँ हम कुछ कहीं भी बो रहे हैं झुकी है पीठ ख़ुद को ढो रहे हैं बहुत खुश हैं वो जिनका दिल है टूटा जिन्हें दिलवर मिला वो रो रहे हैं ©Ghumnam Gautam #love_shayari #दिलवर #कहीं #पीठ #ghumnamgautam
#love_shayari #दिलवर #कहीं #पीठ #ghumnamgautam
read moreनवनीत ठाकुर
ज़ख़्म भरते ही नहीं इस दिल के हालातों के, और बढ़ जाता है दर्द, आराम हो जाने के बा'द। ख़्वाब टूटे हैं कई पलकों के दरवाज़े पे, कुछ नहीं बचता कोई अंज़ाम हो जाने के बा'द। रूह में जलती रहीं यादों की परछाइयाँ, और ख़ाली हो गया पैग़ाम हो जाने के बा'द। एक मंज़र है अधूरे चाँद सा दिल में कहीं, और गहरा हो गया अंधेरा तमाम हो जाने के बा'द। ©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर ज़ख़्म भरते ही नहीं इस दिल के हालातों के, और बढ़ जाता है दर्द, आराम हो जाने के बा'द। ख़्वाब टूटे हैं कई पलकों के दरवाज़े पे, क
#नवनीतठाकुर ज़ख़्म भरते ही नहीं इस दिल के हालातों के, और बढ़ जाता है दर्द, आराम हो जाने के बा'द। ख़्वाब टूटे हैं कई पलकों के दरवाज़े पे, क
read moreParasram Arora
Unsplash वो दिन याद करो ज़ब ये आदमी पहले "आदम " था और स्त्री "ईव " थीं तब न आखर था न शब्द न लिपि न कोई आपस मे संवाद था तब केवल ध्वनि थीं तरंग थीं लय थीं इसके बाद वो ध्वनि कब संगीत बनी कब सरगम मे तब्दील हुई कोई नहीं जानता लेकिन वो "आदम " तब तक आदमी और वो ईव स्त्री मे रूपांतरित हो गए थे ©Parasram Arora आदम और ईव
आदम और ईव
read moreRevashankar Nathani
White बिकती है ना कहीं खुशी ना कहीं गम बिकता है लोग गलत फेमी में है कि शायद कहीं महरम बिकता है इन्सान उम्मीदों से बंधा हुआ एक जिदी परिंदा है वो उम्मीदों से ही धायल है और उम्मीदों पर ही जिंदा है ©Revashankar Nathani न कहीं की खुशी बिकती है ना कही गम
न कहीं की खुशी बिकती है ना कही गम
read morekevat pk
White "मैं हूँ और वह है, मिलना चाहते हैं, पर दूरी इतनी है, जैसे धरती और आसमान।" "कभी लगता है, चूर-चूर हो जाऊँ, फिर लगता है, मिलना तो तय ही है।" ©kevat pk #मैं और वो
#मैं और वो
read moreParasram Arora
White अब सुख और सुकून की नींद कहा नसीब होती हैँ आज के इंसान को आदमी दिन भर व्यस्त रहता हैँ रोज़ी रोटी कमाने की ज़ददो ज़हद मे उसे सुकून और सुख की फ़िक्र करने.का वक़्त ही कहा मिलता हैँ? ©Parasram Arora सुख और सुकून
सुख और सुकून
read moreRabindra Kumar Ram
" इक रोज़ तुझसे कहीं ना कहीं वाकिफ यार हो ही जाऊंगा , तु मुहब्बत की कुछ गुंजाइश तब्बजो कर मैं तेरा साकी हो ही जाऊंगा , फिर फ़िरदौस जो हो सो हो ऐसे में कहीं ना कहीं , मैं तेरा मुन्तजिर यार दीदारे-ए-ख़्वाब हो जाऊंगा . " --- रबिन्द्र राम ©Rabindra Kumar Ram " इक रोज़ तुझसे कहीं ना कहीं वाकिफ यार हो ही जाऊंगा , तु मुहब्बत की कुछ गुंजाइश तब्बजो कर मैं तेरा साकी हो ही जाऊंगा , फिर फ़िरदौस जो हो सो
" इक रोज़ तुझसे कहीं ना कहीं वाकिफ यार हो ही जाऊंगा , तु मुहब्बत की कुछ गुंजाइश तब्बजो कर मैं तेरा साकी हो ही जाऊंगा , फिर फ़िरदौस जो हो सो
read moreSatish Kumar Meena
White इंसान का चिंतन और मनन वातावरण पर निर्भर करता है वो भी स्वयं के। ©Satish Kumar Meena चिंतन और मनन
चिंतन और मनन
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